Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૪૨૮
सशामृत मा-3 अब ग्यानकला जागी भरमकी दृष्टि भागी,
अपनी पराई सब सौंज पहिचानी है। जाकै उदै होत परवान ऐसी भांति भई, निहचै हमारी जोति सोई हम जानी है ||२८||
(लश-२७-७२)
જ્ઞાનીનો આત્માનુભવમાં વિચાર (સવૈયા એકત્રીસા) जैसै महा रतनकी ज्योतिमैं लहरि उठे,
जलकी तरंग जैसैं लीन होय जलमैं । तैसैं सुद्ध आतम दरब परजाय करि,
उपजै बिनसै थिर रहै निज थलमैं || ऐसै अविकलपी अजलपी अनंद रूपी,
अनादि अनंत गहि लीजै एक पलमैं । ताकौ अनुभव कीजै परम पीयूष पीजै, बंधकौ विलास डारि दीजै पुदगलमैं ||२९||
(खश-२८-७3)
આત્માનુભવની પ્રશંસા (સવૈયા એકત્રીસા) दरबकी नय परजायनय दोऊ,
श्रुतग्यानरूप श्रुतग्यान तो परोख है। सुद्ध परमातमाको अनुभौ प्रगट ताते,
अनुभौ विराजमान अनुभौ अदोख है। अनुभौं प्रवांन भगवान पुरुष पुरान,
ग्यान औ विग्यानघन महा सुखपोख है। परम पवित्र यौं अनंत नाम अनुभौके, अनुभौ विना न कहूं और ठौर मोख है |३०||
(लश-२८-७४)
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