Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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કલશામૃત ભાગ-૩
ग्यानवंत करनी करै पै उदासीन रूप,
ममता न धरै तातैं निर्जराकौ हेतु है । वह करतूति मूढ़ करै पै मगनरूप,
अंध भयौ ममतासौं बंध - फल लेतु है ॥२३॥ ( ऽलश-२२-६७ )
મિથ્યાત્વીના કર્તાપણાની સિદ્ધિ ૫૨ કુંભારનું દૃષ્ટાંત (છપ્પા ) ज्यौं माटीमैं कलस होनकी, सकति रहै ध्रुव । दंड चक्र चीवर कुलाल, बाहजि निमित्त हुव || त्यौं पुदगल परवांनु, पुंज वरगना भेस धरि । ग्यानावरनादिक स्वरूप, विचरंत विविध परि ॥ बाहजि निमित्त बहिरातमा,
गहि संसै अग्यानमति ।
जगमांहि अहंकृत भावस,
करमरूप है परिनमति ॥२४॥ ( Sलश-२३-९८ )
જીવને અકર્તા માનીને આત્મધ્યાન કરવાનો મહિમા. ( સવૈયા તેવીસા ) जे न करें नयपच्छ विवाद,
धरैं न विखाद अलीक न भाखेँ ।
जे उदवेग तजैं घट अंतर,
सीतल भाव निरंतर राखेँ ।
जे न गुनी गुन भेद विचारत,
-
आकुलता मनकी सब नाखँ ।
ते जगमैं धरि आतम ध्यान,
अखंडित ग्यान-सुधारस चाखँ ||२५||
( Sलश-२४-६८ )
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