Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 440
________________ ૪૨૬ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates કલશામૃત ભાગ-૩ ग्यानवंत करनी करै पै उदासीन रूप, ममता न धरै तातैं निर्जराकौ हेतु है । वह करतूति मूढ़ करै पै मगनरूप, अंध भयौ ममतासौं बंध - फल लेतु है ॥२३॥ ( ऽलश-२२-६७ ) મિથ્યાત્વીના કર્તાપણાની સિદ્ધિ ૫૨ કુંભારનું દૃષ્ટાંત (છપ્પા ) ज्यौं माटीमैं कलस होनकी, सकति रहै ध्रुव । दंड चक्र चीवर कुलाल, बाहजि निमित्त हुव || त्यौं पुदगल परवांनु, पुंज वरगना भेस धरि । ग्यानावरनादिक स्वरूप, विचरंत विविध परि ॥ बाहजि निमित्त बहिरातमा, गहि संसै अग्यानमति । जगमांहि अहंकृत भावस, करमरूप है परिनमति ॥२४॥ ( Sलश-२३-९८ ) જીવને અકર્તા માનીને આત્મધ્યાન કરવાનો મહિમા. ( સવૈયા તેવીસા ) जे न करें नयपच्छ विवाद, धरैं न विखाद अलीक न भाखेँ । जे उदवेग तजैं घट अंतर, सीतल भाव निरंतर राखेँ । जे न गुनी गुन भेद विचारत, - आकुलता मनकी सब नाखँ । ते जगमैं धरि आतम ध्यान, अखंडित ग्यान-सुधारस चाखँ ||२५|| ( Sलश-२४-६८ ) Please inform us of any errors on Rajesh@Atma Dharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451