Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 439
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ૪૨૫ શ્રી નાટક સમયસારના પદો आपुही आपु मिलै बिछुरै जड़, क्यौं करि मो मन संसय ऐसी ? सिष्य संदेह निवारन कारन, बात कहैं गुरु है कछु जैसी ॥१९|| (लश-१८-53) ઉપર કરવામાં આવેલી શંકાનું સમાધાન (દોહરા) पुदगल परिनामी दरव, सदा परिनवै सोइ । यातें पुदगल करमकौ, पुदगल करता होइ ॥२०|| (तश-१८-६४) जीव चेतना संजुगत, सदा पूरण सब ठौर । तातें चेतन भावकौ, करता जीव न और ॥२१|| (सश-२०-६५) શિષ્યનો ફરીથી પ્રશ્ન. (અડિલ્લ છંદ) ग्यानवंतकौ भोग निरजरा-हेतु है। अज्ञानीकौ भोग बंध फल देतु है || यह अचरजकी बात हिये नहि आवही। पूछे कोऊ सिष्य गुरू समझावही ।।२२।। (लश-२१-55) ઉપર કરવામાં આવેલી શંકાનું સમાધાન (સવૈયા એકત્રીસા) दया-दान-पूजादिक विषय-कषायादिक, दोऊ कर्मबंध पै दुहूको एक खेतु है । ग्यानी मूढ़ करम करत दीसै एकसे पै, परिनामभेद न्यारौ न्यारौ फल देतु है || Please inform us of any errors on Rajesh@AtmaDharma.com

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