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શ્રી નાટક સમયસારના પદો
आपुही आपु मिलै बिछुरै जड़,
क्यौं करि मो मन संसय ऐसी ? सिष्य संदेह निवारन कारन, बात कहैं गुरु है कछु जैसी ॥१९||
(लश-१८-53)
ઉપર કરવામાં આવેલી શંકાનું સમાધાન (દોહરા) पुदगल परिनामी दरव, सदा परिनवै सोइ । यातें पुदगल करमकौ, पुदगल करता होइ ॥२०||
(तश-१८-६४)
जीव चेतना संजुगत, सदा पूरण सब ठौर । तातें चेतन भावकौ, करता जीव न और ॥२१||
(सश-२०-६५)
શિષ્યનો ફરીથી પ્રશ્ન. (અડિલ્લ છંદ) ग्यानवंतकौ भोग निरजरा-हेतु है। अज्ञानीकौ भोग बंध फल देतु है || यह अचरजकी बात हिये नहि आवही। पूछे कोऊ सिष्य गुरू समझावही ।।२२।।
(लश-२१-55)
ઉપર કરવામાં આવેલી શંકાનું સમાધાન (સવૈયા એકત્રીસા) दया-दान-पूजादिक विषय-कषायादिक,
दोऊ कर्मबंध पै दुहूको एक खेतु है । ग्यानी मूढ़ करम करत दीसै एकसे पै,
परिनामभेद न्यारौ न्यारौ फल देतु है ||
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