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'विमला' ग्याल्योपेता
१५ प-काराक्षर में धन का नाश, रोग और बन्धन हो । चित्त में उद्वेग, नित्य ही कलह निःसन्देह हो ॥ ३७ ।।
फ-काराक्षर में धन की और सब सम्पत्ति की प्राप्ति और सब कार्य की सिद्धि, शरीर में निरोगता, सुख लाभ हो ।। ३८ ॥ .
ब-काराक्षर में बन्धन, धन का नाश और रोगी के प्रश्न में मरण में निस्म व्याधि कहना ।। ३९ ॥
भ-काराक्षर में पहिले तो कार्य की हानि अनन्तर लाभ हो और पुत्र-प्राप्ति, मनोकामना की सिद्धि होती है इसमें संशय नहीं ।। ४० ।।
म-काराक्षर में निश्चय करके मृत्यु, परम आपत्ति कहना, भोग की प्राप्ति न हो, सर्व कर्म निष्फल हो ।। ४१ ।।
य-काराक्षर में अर्थ की प्राप्ति, धन-धान्य की सम प्राप्ति हो, शोभा हो, सर्व वस्तु का लाभ हो ॥ ४२ ॥ ww र-कारे सभयं कार्य विरोध: स्वजनैः सह ।
नित्यं च जायते हानिमरणं दुःखमेव च ॥ ४३ ॥ ल-कारे धनसम्प्राप्तिाभश्चापि भवेत्पुनः । विपुलं च महाभोग्यं लभते नात्र संशयः ॥ ४४ ।। वकारे कार्यनाशश्च धनहानिश्च जायते । दुःखं शोकं च सन्तापं महाभयमुपस्थितम् ॥ ४५ ॥ श-कारे कार्यसिद्धिश्च सफलं च दिने दिने । अर्थलाभो भवेन्नित्यं सर्व कार्य भविष्यति ॥ ४६ ॥ ष-कारे धन-धान्यं च सर्व कार्य च सिध्यति ।
कुशलं च सदा नूनं सर्व तस्य शुभं भवेत् ॥ ४७ ।। र-काराक्षर में भययुक्त कार्य और स्वजनों के साथ विरोध, निश्चय ही मरणदुःख हो । ४३ ॥
ल-काराक्षर में धन की सम्यक् प्राप्ति और वस्तुओं का लाभ, विपुल अर्थात् बड़े भोग का लाभ निःसन्देह हो ॥ ४४ ॥
व-काराक्षर में कार्य का नाश, धन की हानि हो, दुःख-शोक, चित्त में खेद भोर महान् भय प्राप्त हो ॥ ४५ ॥
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