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'विमला'म्याल्योपेता
अथ देवपूजाप्रश्नः ध्वजे भैरवपूजा स्याद् धूने च जगदम्बिकाम् । सिंहे च सूर्यभक्ति च श्वाने वायुसुतस्तथा ॥४८॥ वृषे रुद्रार्चनं चैव खरे वागीश्वरी तथा।
गणेशं गजराजाख्ये ध्वांक्षे च पितृपूजनम् ॥ ४९ ॥ अनन्तर देवपूजन रोगादिक में विचार के लिये-ध्वज में-भैरव का पूजन और धूम्र में जगन्माता की, सिंह में सूर्यदेव की आराधना करना और श्वान में वायुसुत श्री हनुमान जी की ।। ४८ ।।
वृष में शिव जी का पूजन, खर में वागीश्वरी देवी का और गज में गणेश जी का पूजन और ध्वांक्ष में पितृ गणों का पूजन करना ॥ ४९ ॥
अथ ग्रह-दानानि - . WWW
गोधमा वजे दद्याद धमे चैव तिलप्रदः। COLLL
पीतवस्त्रं च सिंहे च श्वाने च बलिविस्तरम् ॥ ५० ॥ तदनन्तर ग्रहों के दान-ध्वज में गोधूम ( गेहूँ ) का दान, धूम्र में तिल. सिह में पीला कपड़ा, श्वान में बलिदान विस्तार पूर्वक ।। ५० ।।
वृषे च तण्डुलं प्रोक्तं खरे च चणकं तथा ।
गजे गुडं सदा देयं ध्वांक्षे च यवनालकम् ॥ ५१॥ वृष में चावल दान करना, खर में चना दान, गज में गुड़ देना, ध्वांक्ष में यवनाल देना ।। ५१॥
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