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'विमला'ग्याख्योपेता
अथ व्यवहारप्रश्नः ध्वजे गजे वर्ष सिंहे व्यवहारः शुभावहः ।
ध्वांक्षे श्वाने खरे धूने कलहायशुभप्रदः ॥ ३८॥ अनन्तर व्यवहार का प्रश्न- ध्वज-गज-वृष-सिंह में व्यवहारविषयक शुभ कहना और वांक्ष-श्वान-खर-धूम्र में कलहादि-अशुभ कहना ॥ ३८ ॥
अथ नौकाप्रश्नः ध्वज-कुंजर-सिंहेषु वृषे च कुशलप्रदः ।
ध्वाक्ष धने खरे श्वाने नौका मज्जयति ध्रुवम् ॥ ३९ ॥ तदनन्तर नौका का प्रश्न-ध्वज-कुञ्जर-सिंह-वृष इनमें नाव के विषय में कल्याण कहना और ध्यांक्ष-धूम्र-खर-श्वान में नाव जल में निश्चय डूब जाय ॥ ३९ ॥
अथ राज्यप्राप्तिप्रश्नः WWW गजे ध्वजे चिरं प्राप्तिर्वषे सिहे च शीघ्रता। COLLL
श्वाने खरे न च प्राप्तिः शत्रुगृह्णाति सत्त्वरम् ॥ ४० ॥ ध्वांक्षे धूम्र पदं नास्ति कलहो भ्रातृजैः सह ।
राजयोगविचारेषु कथितो गणकोत्तमैः ॥ ४१ ॥ तदनन्तर राज मिलने का प्रश्न-ध्वज-गज में चिरकाल में प्राप्ति कहना और वृष-सिंह में शीघ्र ही प्राप्ति कहना और श्वान-खर में प्राप्ति न हो प्रत्युत शीघ्र ही शत्रु ग्रहण कर ले ।। ४० ।।
ध्वांक्ष-धूम्र में पद न हो-भाई के साथ झगड़ा हो। इस प्रकार राजयोग का विचार गणकोत्तम कहते हैं ।। ४१ ।।
अथाऽधिकारप्राप्तिप्रश्नः ध्वजे-गजे स्थिरं प्राप्तिवृषे सिंहे च शोघ्रतः ।
कलहश्च तथा श्वाने नास्ति च ध्वांक्ष-धूम्रयोः ॥ ४२ ॥ तदनन्तर अधिकार मिलने का प्रश्न-ध्वज-गज में विलम्ब से प्राप्ति कहना और वृष-सिंह में शीघ्र ही प्राप्ति कहना और खर-श्वान में झगड़ा कहना और प्राप्ति में विलम्ब और ध्वाक्ष-धूम्र में प्राप्ति नहीं कहना ॥ ४२ ॥
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