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ज्योतिषप्रश्न फलगणना
अथ ध्वजादि - स्वामिनः
ध्वजे सूर्यश्च विज्ञेयो धूम्रे - भोमस्तथैव च । सिंहे शुक्रश्च विज्ञेयः श्वाने सौम्यस्तथैव च ॥ ३ ॥ वृषे गुरुश्च विज्ञेयः खरे सूर्यसुतस्तथा ।
गजे ध्वांक्षे चन्द्रराहू एते च पतयः स्मृताः ॥ ४ ॥
आर्यों के स्वामी - ध्वज के स्वामी सूर्य, धूम्र के मंगल हैं । सिंह के अधि शुक्र को जानना, श्वान के बुध हैं || ३ ||
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वृष के स्वामी बृहस्पति को जानना । सर के स्वामी शनैश्वर हैं । गज के चन्द्रमा स्वामी हैं, ध्वांक्ष के राह ये सब इनके स्वामी हैं ॥। ४ ॥ अथास्ति नास्ति प्रश्नः
कुअर सहेषु वृषे चास्ति विनिश्वितम् ॥
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यं
तदनन्तर है या नहीं हैं इसका विचार - ध्वज, कुञ्जर, सिंह और वृष प्रश्न में आवें तो कहना है कि इनमे भिन्न जो चार हैं वे
तो
कि
। इनका प्रयोजन गुर्विणी आदि के प्रश्न में अस्ति नास्ति का विचार करना है ।। ५ ।।
अथ लाभालाभप्रश्नः
ध्वजे गजे वृषे सिहे शीघ्रं लाभो भवेद् ध्रुवम् ।
ध्वांक्षे श्वाने खरे धूम्रे नाशश्च कलहप्रदः ॥ ६ ॥
इसके अनन्तर लाभालाभ का प्रश्न कहते हैं । ध्वज, गज, वृष, सिंह ये आय प्रश्न के समय आत्रें तो शीघ्र ही निश्चय करके लाभ करे, ध्वांक्ष, दवान, स्वर और घूम्र में लाभ का नाश और कलह कहना ॥ ६ ॥
अथ नष्ट-लाभालाभप्रश्नः
ध्वजे गजे वृषे सिंहे गतलाभो भवेद् ध्रुवम् । ध्वांक्षे धूम्रे खरे श्वाने हानिर्भवति निश्चितम् ॥ ७ ॥ ध्वजे च ब्राह्मणचौरो धूम्रे क्षत्रिय एव च । सिंहे वैश्यश्च विज्ञेयः खरे च सेवकस्तथा ॥ ८ ॥ गजे वासी च विज्ञेया ध्वांक्षे च नायकस्तथा । वृषे श्वाने ज्ञेयश्वौरश्वान्त्यज संभवः ॥ ९ ॥
तथा
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