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५८ : मैत्री : आधार और स्वरूप
मैत्री क्या है
मैत्री क्या है? मैत्री है-अपना अधिकार-क्षेत्र सीमित करना। इसके बिना कोई भी मनुष्य भयमुक्त नहीं बन सकता, शांतिपूर्वक जीवन नहीं जी सकता, परंतु यह कोई सहज-सरल कार्य नहीं है, बल्कि बहुत कठिन है। क्यों? इसलिए कि इसका आधार त्याग है। व्यक्ति को त्याग करने का साहस जुटाना पड़ता है। हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्वार्थ छोड़ने का साहस बहुत कम लोगों में होता है। ज्यादातर व्यक्ति अधिकार और सत्ता की भाषा में सोचते हैं, बोलते हैं। यह एक सामान्य बात है कि जहां अधिकार और सत्ता का प्रश्न तीव्र हो जाता है, वहां मैत्री क्षीण हो जाती है। जहां एक वस्तु पर हर व्यक्ति अधिकार करना चाहे, वहां संघर्ष की स्थिति से नहीं बचा जा सकता।
आज औपचारिक सभ्यता बढ़ी है। बड़े-बड़े लोग आपस में मिलते हैं तो उनके चेहरे पर मुस्कान फूट पड़ती है, किंतु जब वर्ण, जाति, भाषा, प्रांत और राष्ट्र से संबद्ध स्वार्थों एवं अधिकारों के प्रश्न आते हैं, तब वातावरण मधुर नहीं रहता, परस्पर विद्वेष उत्पन्न हो जाता है। अनाक्रमण : अंतरराष्ट्रीय मैत्री का आधार
पं. नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में पंचशील की चर्चा चलाई। उसमें एक बात अनाक्रमण की है। मैं मानता हूं कि यदि यह अनाक्रमण का सिद्धांत सर्वमान्य हो जाए तो अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में मैत्री का सहज विकास हो सकता है, पर कठिनाई यह है कि अच्छी-से-अच्छी चर्चा थोड़ी-सी आगे बढ़ती है और फिर राजनीति बन जाती है। पंचशील की चर्चा के संदर्भ में भी कुछ ऐसा-सा हुआ प्रतीत होता है। प्रारंभ में अनेक राष्ट्रों ने पंचशील के सिद्धांतों के प्रति अपना समर्थन जताया था, पर उनकी व्यावहारिक क्रियान्विति की दिशा में कोई गति हुई हो, ऐसा
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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