Book Title: Jyoti Jale Mukti Mile
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 386
________________ पारिभाषिक कोश अगारधर्म-गृहस्थ-धर्म। अगार शब्द घर का वाचक है। घर को परिग्रह माना गया है। चूंकि साधु पूर्ण अपरिग्रही होता है, इसलिए वह गृहत्यागी होता है। जो लोग घर का त्याग नहीं कर सकते, साधु नहीं बन सकते, उनके लिए अगार-धर्म की व्यवस्था है। अगार-धर्म का पालन करनेवाले के जीवन में त्याग और भोग, संयम और असंयम अथवा व्रत और अव्रत दोनों का सम्मिश्रण होता है। इस दृष्टि से यह मध्यम श्रेणी की साधना है। इस श्रेणी को स्वीकार करनेवाला श्रावक या श्रमणोपासक कहलाता है। अघातीकर्म-जो कर्म आत्मा के मूल गुण-ज्ञान-दर्शन आदि का घात ___ नहीं करते, वे अघाती कर्म हैं। वे चार हैं-१. वेदनीय २. आयुष्य ३. नाम ४. गोत्र। अणगारधर्म-मुनि-धर्म। अगार शब्द घर का वाचक है। घर को परिग्रह माना गया है। चूंकि मुनि पूर्ण अपरिग्रह का साधक होता है, इसलिए वह गृहत्यागी होता है, अणगार कहलाता है। अणगार-धर्म पूर्ण संयम अथवा पूर्ण व्रत-महाव्रत की साधना की श्रेणी है। देखें-अगारधर्म। अणुव्रत-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-इन पांचों व्रतों का आंशिक रूप। अनार्यक्षेत्र-मनुष्यक्षेत्र का वह हिस्सा, जहां लोगों का जीवन असभ्य और अशिष्ट होता है तथा अर्हत द्वारा प्रदत्त उपदेश के श्रवण का लाभ प्राप्त करने की सुविधा नहीं होती। देखें-आर्यक्षेत्र। अभव्य-मोक्ष जाने की अर्हता से संपन्न प्राणी भव्य कहलाते हैं। इससे विपरीत जिन प्राणियों में यह अर्हता नहीं है, वे अभव्य हैं। भव्यत्वअभव्यत्व की यह स्थिति किसी कर्म का क्षय, क्षयोपशम, उपशम • ३६२ . - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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