Book Title: Jyoti Jale Mukti Mile
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 404
________________ आचार जीवन की मूल पूंजी है। इस धन से संपन्न व्यक्ति वास्तव में संपन्न है। जिसके पास यह पूंजी नहीं है, वह धनी नहीं है, महादरिद्र है, भले वह कितना ही बड़ा अर्थपति क्यों न हो। यह कितनी गंभीर चिंतनीय बात है कि आज मानव जीवन की इस मूल पूंजी को ठुकराकर एकमात्र पैसे के पीछे पागलसा बन रहा है। उसके समक्ष अपना एक ही लक्ष्य है। कि येन केन प्रकारेण अधिक-से-अधिक पैसा अर्जित और संगृहीत किया जाए। संयमः खलुः जीवनम्-संयम ही जीवन है, के स्थान पर 'पैसा ही जीवन है' को उसने अपना आदर्श-सूत्र बना लिया है। इस अर्थप्रधान या अर्थकंद्रित चिंतन ने समाज में अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्तियां एवं भ्रष्टाचार पनपने की उर्वरा तैयार की है। चरण . पभाक्खी विखोक भारतील Jain Education Internationel ISBN 81-7195-119-8 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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