Book Title: Jyoti Jale Mukti Mile
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 361
________________ और क्रीड़ा-क्रीड़ा में भंवरे-सहित कमल-कोष निगल गई। भंवरे की अनंत आशाओं पर पानी फिर गया। क्या यह आज की परिस्थिति नहीं है? लोगों ने सोचा था कि आजादी आएगी। दूध की नदियां बहेंगी। घर-घर दीपमालिका जलेगी। कोई किसी का शोषण नहीं करेगा। सब समान होंगे। भाई-भाई होकर रहेंगे। प्रेम से बोलेंगे। आत्मानंद का उपभोग करेंगे। पुत्र पिता का पराभव नहीं करेगा। भाई भाई के प्रेम का प्यासा होगा। न जाने कितनी आकांक्षाएं थीं। किस उत्कंठा और आशा से आजादी की प्रतीक्षा थी। ___आजादी आई तो सही, पर रिमझिम करती आई। परतंत्रता की जंजीरें टूटीं। जनता उन्मुक्त बनी, पर न जाने किस हथनी ने मानसभंवरे को निगल लिया। जनता की आशाओं पर पानी फिर गया। आशा निराशा में परिणत हो गई। आजादी बरबादी के रूप में बदल गई। सुख-स्वप्न दुःखांत बन गए। धनकुबेर-गरीब, शासक-शासित, छोटे-बड़े, मजदूर-किसान, व्यापारी-कर्मचारी सब दुखी हैं। गरीब हो तो आश्चर्य नहीं। उसके पास है भी तो क्या? खाने के लिए रोटी और तन ढकने के लिए चिथड़ा भी तो नहीं। मैंने सुन रखा था-शासन के अभाव में कुछ लोग जूठी पत्तले चाटकर दुर्दैव के दिन काटते हैं, पर कलकत्ते के भरे बाजार में मैंने आंखों से देखा-एक कल्पनातीत दृश्य! देखकर रोमांच हो गया। एक मानव जूठी पत्तलें बटोर-बटोरकर खा रहा था। हाय! हाय !! मानव इतना गरीब! इतना दुखी! भारत के लिए क्या यह लज्जा का विषय नहीं है? लोकनेता क्या भारत की ऐसी दुरवस्था का नंगा नृत्य नहीं देखते ? एक आदमी की जूठी पत्तल दूसरा आदमी खाए ! कुत्तों और कौवों से भी निकृष्ट आज का मानव! क्या यहां आकर मानवता की हत्या नहीं हो जाती? वे नेता क्या केवल कुर्सी के नेता हैं? भारत के अतिरिक्त शायद ही और कहीं ऐसा होता हो। क्या इसी को हम आजादी कहें ? पर गरीब दुखी हैं, इससे बढ़कर आश्चर्य तो यह है कि बड़े-बड़े धनकुबेर समस्त आधुनिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध होते हुए भी दुखी हैं! उनकी भूख हराम है। खाने बैठते हैं तो हाथ का ग्रास हाथ में और मुंह का मुंह में। टन-टन घंटी बजती है। सेठजी को फोन उठाना पड़ता है। हाय! यह क्या सुख की जिंदगी है! सोने के लिए मखमली गद्दे हैं, पंखे की हवा है, कमरे में सुगंध है, फिर भी नींद नहीं। रेडियो के मधुर-मधुर गायन सुनकर मनोरंजन करने पर भी नींद अपने-आपको सुधारें! .३३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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