Book Title: Jinabhashita 2009 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 10
________________ नहीं होती। हुण्डावसर्पिणीकाल में अक्षत-पुष्पादि में जिनेन्द्र की स्थापना का निषेध तथा आचार्य वसुनन्दी ने वसुनन्दी-श्रावकाचार में कहा है हुण्डावसप्पिणीए विइया ठवणा ण होदि कायव्वा। लोगे कलिंगमइमोहिए जदो होइ संदेहो॥ ३८५॥ अनुवाद- "हुण्डावसर्पिणीकाल में दूसरी असद्भाव अर्थात् अतदाकार स्थापना (संकल्पित-जिनपूजा) नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कुलिंगमतियों (अन्यधर्मों) से मोहित इस लोक में संदेह हो सकता है।" अर्थात् अतदाकार स्थापना का प्रेमी कोई जैन श्रावक अन्यधर्मी देव की मूर्ति में जिनेन्द्रदेव की स्थापना कर पूजा कर सकता है, तब लोगों को यह सन्देह हो सकता है कि यह अन्यधर्मी देव का भक्त है। वर्तमान पंचमकाल हुण्डावसर्पिणी का काल है। अतः वसुनन्दी के कथनानुसार भी अतदाकार अक्षत-पुष्यादि में जिनेन्द्र की स्थापना नहीं करनी चाहिए। ___सार यह कि जिनप्रतिमापूजा या संकल्पितजिन-पूजा में सिद्धशिला पर सिद्धरूप में स्थित जिनेन्द्र का आवाहन-स्थापन करना अंसगत है, क्योंकि उनका सिद्धशिला से नीचे आना संभव नहीं है। इसलिए वह जैनसिद्धान्त के प्रतिकल है, अत एव मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व त्याज्य है। सोमदेवसरि. देसवेन तथा पं० वामदेव ने जिनप्रतिमापूजा में स्थापन और सन्निधापन की जो विधियाँ बतलायी हैं, वे ही जैनसिद्धान्त-सम्मत हैं। जिनप्रतिमा को मूलपीठ से स्नानपीठ तक लाने और अभिषेक-पूजन के बाद उसे पुनः मूलपीठ पर स्थापित कर देने को आवाहन और विसर्जन कहना भी जैनसिद्धान्त-सम्मत माना जा सकता है। अतः जिनप्रतिमापूजा में इन्हीं पाँच उपचारों को सम्पन्न करना चाहिए। संकल्पित-जिनपूजा का हुण्डावसर्पिणीकाल में निषेध है तथा जिनबिम्ब के दर्शन-पूजन से जो सम्यग्दर्शन एवं वैराग्यभाव की उत्पत्ति होती है तथा निधत्त और निकाचित कर्मों का क्षय होता है, वह संकल्पित-जिनपूजा (अतदाकार स्थापना) में संभव नहीं है, क्योंकि उसमें जिनबिम्ब के दर्शन नहीं होते। अत एव वह निरर्थक है। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा के अभाव में जिनगुणस्तवनरूप भावपूजा ही जैनसिद्धान्त-सम्मत है, क्योंकि उससे चित्त पवित्र होता है, जैसा कि आचार्य समन्तभद्र ने कहा है- "तथापि ते पुण्यगुणस्मृतिर्नः पुनाति चित्तं दुरिताञ्जनेम्यः।" (स्वयम्भूस्तोत्र / ५७)। रतनचन्द्र जैन श्री विद्यासागर यात्रा संघ (राजस्थान) के तत्त्वाधान में रत्नत्रयतीर्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी ससंघ को राजस्थान में लाने हेतु श्रीफल भेंट सम्माननीय श्री अशोक जी पाटनी (आर० के० मार्बल्स), श्री राजेन्द्र जी गोधा (मुख्य संरक्षक संस्थापक सम्पादक दैनिक समाचार जगत जयपुर) श्री संतोष जी सिंघई, अध्यक्ष कुण्डलपुर तीर्थ व राजस्थान के ४०० श्रावकों के साथ श्री टीकमचन्द्र जी बड़जात्या के नेतृत्व में पाँच सदस्य श्री विनोद जी हूमड़, श्री प्रकाश जी दोषी, महेन्द्र जी बड़जात्या, अंकित बड़जात्या, पदयात्रियों द्वारा ३५० किलोमीटर की १२ दिन में यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न कर सकुशल भीलवाड़ा आगमन पर संयोजक प्रभारी प्रभाचन्द्र बाकलीवाल, आर० के० अध्यक्ष कैलाश चन्द्र शाह, एन सी जैन सचिव, मिश्रीलाल अग्रवाल, कमल नयन शाह, महेन्द्र सेठी एडवोकेट, घीसा लाल झाँझरी, पारस गंगवाल, प्रेमचन्द्र सेठी, व सभी दिगम्बर नैनसमाज के गणमान्य व्यक्तियों ने सभी को बधाई दी, और हार्दिक अभिनन्दन, करते हुए सुखद जीवन की कामना की और कहा कि आप पद यात्रियों ने भीलवाड़ा जैनसमाज का गौरव बढ़ाया है व आपनी यात्रा के दौरान मांसनिर्यात बंद करो, देश को बचाओ का जन-जन में प्रचार-प्रसार किया है। प्रभाचन्द्र बाकलीवाल, भीलवाड़ा 8 दिसम्बर 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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