________________ रजि नं. UPHIN/2006/16750 प्रकाशित हो गया है प.पू. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के तत्त्वावधान में प्रो. रतनचन्द्र जैन(भोपाल,म.प्र.) के द्वारा दस वर्षों के अनवरत परिश्रम से लिखित, तीन खण्डों एवं 2600 पृष्ठों में समाया चिरप्रतीक्षित ग्रन्थ : जैनपरम्परा और यापनीयसंघ, जिसमें दिगम्बरजैनमत के इतिहास, साहित्य, सिद्धांत एवं आचार पर डाले गये असत्य के आवरण को भेदने का सफल प्रयास किया गया है। जैनपरम्परा और पापनीयसंघ जैनपरम्परा और यापनीयसंघ जैनपरम्परा और यापनीयसंघ द्वितीय खण्ड जैनपरम्परा और यापनीयसंघी * अनेक श्वेताम्बर जैन मनियों एवं विद्वानों तथा कुछ दिगम्बरजैन विद्वानों ने दिगम्बरजैन-मत के इतिहास, साहित्य, सिद्धान्त और आचार को मिथ्यारूप में प्रस्तुत किया है। जैसे, वे लिखते हैं। कि - (1) दिगम्बर जैन-मत तीर्थंकरप्रणीत नहीं है, अपितु उसे ईसा की प्रथम शती में शिवभूति नाम के श्वेताम्बर साधु ने चलाया था अथवा ईसा की पाँचवीं शती में आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रवर्तित किया था, जो उस समय यापनीय (दिगम्बरवेश एवं श्वेताम्बरीय सिद्धान्तों के अनुयायी) संघ के साधु या भट्टारकसम्प्रदाय में भट्टारक थे। (2) कुन्दकुन्द ने यापनीयमत में संशोधन कर दिगम्बरमत चलाया था। (3) दिगम्बर जैनमत तीर्थंकरप्रणीत न होने से निह्नवमत (मिथ्यामत) है। (4) आचार्य कुन्दकुन्द ईसापूर्व प्रथम शताब्दी में नहीं, बल्कि ईसोत्तर पाँचवीं शताब्दी में हए थे।अतः दिगम्बरजैनमत प्राचीन नहीं है। (5) दिगम्बरजैन मुनियों का नग्नवेश लज्जाजनक, लोकमर्यादाविरुद्ध, संयमघातक और स्त्रीशीलदूषक है, अत एव मोक्ष में बाधक है। (6) दिगम्बरमुनियों को औषधि पिलाकर नपुंसक बनाया जाता है। (7) षट्खण्डागम, कसायपाहुड, भगवती-आराधना, मूलाचार, तत्त्वार्थसूत्र आदि 18 दिगम्बरमान्य ग्रन्थ दिगम्बरग्रन्थ नहीं है, अपितु यापनीय-ग्रन्थ हैं, क्योंकि उनमें सवस्वमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति आदि को मान्यता दी गयी है। इन समस्त एवं अन्य अनेक मिथ्यावादों का खण्डन प्रस्तुत ग्रन्थ जैनपरम्परा और यापनीयसंघ में किया गया है, उन अकाट्य प्रमाणों के द्वारा जो दिगम्बर-श्वेताम्बर-यापनीय-जैनसाहित्य, वैदिक एवं बौद्ध साहित्य, संस्कृत गद्य-पद्य-नाट्य-साहित्य तथा शिलालेखों और पुरातत्त्व के गहन अध्ययन से उपलब्ध हुए हैं। दिगम्बरजैन-मत के इतिहास आदि को मिथ्यारूप में प्रस्त। करनेवाले ग्रन्थों को पढ़कर उन दिगम्बर जैनों एवं जैनेतरों के द्वारा मिथ्या को सत्य समझ लेने की प्रबल संभावना है, जो सत्य को दर्शानेवाले प्रमाणों से अनभिज्ञ हैं। अतः इस अनिष्ट को टालने के लिए प्रत्येक दिगम्बर जैन श्रावक-श्राविका एवं मुनि-आर्यिका को उन प्रमाणों से अवगत होना अत्यन्त आवश्यक है। यह प्रस्तुत ग्रन्थ के अनुशीलन से ही संभव है। यह ग्रन्थ शोधार्थियों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी है। अतः प्रत्येक जैनमन्दिर, जैनशिक्षणसंस्थान, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय एवं शोधसंस्थान में संग्रहणीय है। जैनपरम्परा और यापनीयसंघ तृतीय खण्ड जैनपरम्परा और यापनीयसंघ पो(डॉ) रतनचन्द्र जैन * प्रकाशक एवं प्राप्तिस्थान : सर्वोदय जैन विद्यापीठ, 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 फोन: 0562-2852278, मो. 9412264445 मूल्य : प्रत्येक खण्ड 500 रु., पूरा सेट (तीनों खण्ड) 750 रु. एवं डाकव्यय 150 रु. = कुल 900 रु.। ड्राफ्ट प्रकाशक के पते पर भेजें। . स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org