Book Title: Jinabhashita 2009 09 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 3
________________ रजि. नं. UPHIN/2006/16750 सितम्बर 2009 वर्ष 8, अङ्क १ मासिक जिनभाषित ।। सम्पादक अन्तस्तत्त्व प्रो. रतनचन्द्र जैन * पृष्ठ काव्य : करुणारस और शान्तरस में भेद कार्यालय : आचार्य श्री विद्यासागर जी आ.पू.2 ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा , . कविता : इस तरह : मुनि श्री क्षमासागर जी आ.पृ.3 भोपाल-462 039 (म.प्र.) मुनि श्री योगसागर जी की कविताएँ फोन नं. 0755-2424666 आ.पृ.4 सम्पादकीय : असंजदं ण बंदे सहयोगी सम्पादक . प्रवचन : कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र का स्वरूप पं. मूलचन्द्र लुहाड़िया, मदनगंज किशनगढ़ - (तृतीय अंश) : आचार्य श्री विद्यासागर जी पं. रतनलाल बैनाड़ा, आगरा . लेख डॉ. शीतलचन्द्र जैन, जयपुर . डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत • जैनकर्म सिद्धान्त (गतांक से आगे) प्रो. वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ : स्व० पं० मिलापचन्द्र जी कटारिया 8 डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती', बुरहानपुर • दुलार के साथ रखें सार्थक नाम : डॉ० ज्योति जैन 10 • मांसाहार एवं पैशाचिक बुद्धिहीनता शिरोमणि संरक्षक श्री रतनलाल कँवरलाल पाटनी : डॉ० किशोरीलाल जी वर्मा 11 (मे. आर.के.मार्बल) जैनदर्शन की वर्तमान में प्रासंगिकता किशनगढ़ (राज.) : डॉ० पारसमल जैन श्री गणेश कुमार राणा, जयपुर • तत्त्वार्थसूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द का विश्लेषणात्मक विवेचन (सप्तम अंश) : पं० महेशकुमार जैन प्रकाशक सर्वोदय जैन विद्यापीठ • अतिशय क्षेत्र मदनपुर का वास्तु वैभव 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, : पं० विमलकुमार जैन सोरया आगरा-282 002 (उ.प्र.) |• जिज्ञासा-समाधान : पं. रतनलाल बैनाड़ा फोन : 0562-2851428, 2852278| • ग्रन्थ समीक्षा : 'मैं तुम्हारा हूँ' : मुनि क्षमासागर जी : प्रो० महेश दुबे सदस्यता शुल्क शिरोमणि संरक्षक 5,00,000 रु. . काव्य : स्वयम्भूस्तोत्र का हिन्दीपद्यानुवाद परम संरक्षक 51,000 रु. : पं० निहालचन्द्र जैन संरक्षक 5,000 रु. कविता : काँच के घट हम : मनोज जैन 'मधुर' आजीवन 1100 रु. वार्षिक 150 रु. समाचार 4, 13, 19, 26, 28, 29, 30, 31 एक प्रति 15 रु. . 'जिनभाषित' के नये आजीवन सदस्य सदस्यता शुल्क प्रकाशक को भेजें। लेखक के विचारों से सम्पादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। 'जिनभाषित' से सम्बन्धित समस्त विवादों के लिये न्यायक्षेत्र भोपाल ही मान्य होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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