Book Title: Jinabhashita 2009 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ पूजन के समय पाटनपुर के राजा-रानियों का मंगल स्मरण | शिलालेख हैं, जिन पर फागुनसुदि (शुक्ला) ४ सं. १६८८ किया जाता है, जो इस प्रकार है अंकित है। इसका मुख्य द्वार ६८ फुट ऊँचा और ४ “आमोती दामोती रानी पुरपट्टन गाँव मदनसेन | फुट चौड़ा है। से राजा वम्मन-वरुआ कहे कहानी, सुनो हो महालक्ष्मी इसके चारों तरफ ४ मढ़ होने के अवशेष टीलों देवी रानी, हमसे कहते तुमसे सुनते सोला बोल की एक | के रूप में पड़े हैं। दायेंवाला मढ़ धराशायी हो गया कहानी।" है, परन्तु भगवान् ऋषभदेव की ८ फुट उत्तुंग खड्गासन संभवतः परपट्टन के उजड जाने पर मदनसेन | मूर्ति एक वृक्ष की जड़ के आधार से झुकी हुई खडी राजा की स्मृति में १७वीं शताब्दी के बाद नीचेवाली | है। सैकड़ों वर्षों की वर्षा और धूप के कारण इस पर बस्ती का नाम मदनपुर पड़ा। किन्तु पाटनपुर नगर की | कालख व काई जम गयी है, फिर भी मूर्ति सर्वांग सुन्दर संस्कृति, सभ्यता और धार्मिक परम्परा के प्रतीक भग्नावशेष | है। शेष तीन स्थानों की मूर्तियों के चिह्न नहीं है। सम्भव आज भी अक्षय खड़े हैं। | है इन स्थानों की मूर्तियाँ इन मढ़ों के साथ धराशायी मोदी मढ़- पाटनपुर नगर के दक्षिण की ओर | दबी पड़ी हों। चम्पोमढ़ से कोई दो फलाँग की दूरी पर यह मोदी- | मढ़खेरा- मड़ावरा के दक्षिण-पश्चिम कोण में मढ़ है। इसका मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। इसका शिखर | बम्हौरी ग्राम से लगा यह स्थान रोनी नदी के किनारे जीर्णशीर्ण व खण्डहर अवस्था में है। अंदर गर्भालय का | पर है। यहाँ अनेक प्राचीन कलामय मंदिर थे। जिनमें हा है। मंदिर के आगे कोई छायावान | अब दो के भग्नावशेष और शेष के आसन के चिह्न वक्ष नहीं है। मढ की दीवाल ५ फट चौडी है और | मात्र रह गये हैं। यह स्थान भी अंचल का एक अनुपम इसकी ऊँचाई लगभग २५ फुट है। इसके अंदर ३ मूर्तियाँ | कला केन्द्र रहा होगा। हैं। मध्य में शान्तिनाथ की ७ फुट उत्तुंग एवं दायें प्रधान सम्पादकबायें कुन्थु और अरह स्वामी की प्रतिमाएँ हैं। तीनों पर | 'वीतरागवाणी' मासिक टीकमगढ़ (म.प्र.) काँच के घट हम मनोज जैन 'मधुर' काँच के घट हम, किसी दिन फूट जायेंगे। मोह हो तो रूप अगणित, धारती है। उम्र के तट हम किसी दिन, टूट जायेंगे। काल काठी काटती, दिन रात आरी। काल प्रत्यंचा लिए, कर में हमारी। प्राण के शर देह धनु से, . छूट जायेंगे। पुण्य का भ्रम बेल मद की, सींचता है। पाप भव के जाल में, मन खींचता है। नट विषय के क्या पता कब, लूट जायेंगे। सी. एस.-१३, इन्दिरा कॉलोनी बाग उमराव दूल्हा, भोपाल-१० देह नौका भव जलधि से, तारती है। सितम्बर 2009 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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