Book Title: Jinabhashita 2009 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ इस तरह एक उड़ते पखेरू ने मुझसे निरन्तर उड़ते रहने को कहा एक पेड़ ने तूफानों के बीच अडिग खड़े रहने को कहा ओर एक नदी - मुनि श्री क्षमासागर जी जूझने को कहा और एक नीली झील मुझे बाहर-भीतर एक सार निर्मल होने को कह गयी मुझसे निरन्तर बहते रहने को कह गयी सूरज ने सुबह आकर मुझसे दिन-भर रोशनी देते रहने को कहा चाँद-सितारों ने रात-भर अँधेरों से सागर ने धीरे लहरा कर कहासीमाओं में रहो आकाश ने अपने में सबको समा कर कहाअसीम होओ और एक नन्हीं बदली प्रेम से भर कर मुझसे निरन्तर बरसने को कह गयी मेरी जिन्दगी इस तरह सबकी हो गयी। 'पगडंडी सूरज तक' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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