Book Title: Jinabhashita 2009 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 23
________________ १० सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। इन कमरों के सभी खम्भे | शताब्दी की हैं। ६ प्रतिमाएँ धातु की हैं। जिनमें २ सोलहवीं, विशालकाय और तत्कालीन पाषाण कलाकृति से अलंकृत | १ सत्रहवीं एवं ३ अठारहवीं शताब्दी की हैं। सभी पर हैं, प्रत्येक गृह का एक खम्भा एक दूसरे के रूप, आकार | प्रशस्तियाँ अंकित हैं। मन्दिर में पूर्ण अव्यवस्था व जीर्णमें समानता लिए हुए है। बीच के गृह के चारों पायों | शीर्णता के कारण रौनक नाम मात्र की नहीं है। अब पर प्रशस्तियाँ अंकित हैं। इन भवनों के प्रत्येक पत्थर | मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया है तथा चौबीस प्रतिमाएँ पर तत्कालीन वास्तुकला के कलात्मक निदर्शन हैं। | विराजमान की गई हैं। इन भवनों के चारों तरफ बड़े विशालकाय नाना पर्वत मन्दिर प्रकार की कलाकृति युक्त अनेक पत्थर पड़े हैं, जिनको १. पचमढ़- ग्राम से उत्तर की ओर पर्वत श्रेणी मिलाकर एक ऐसा ही भवन बनाया जा सकता है। दूसरे | पर लगभग ५०० मीटर की दूरी पर यह स्थान है। जहाँ बैठक के पश्चिम में ३ मूर्तियाँ नृत्य करती हुईं अंकित | पर एक विशाल चबूतरे पर पाँच मढ़ (मन्दिर) बने हैं, इनके नीचे पूर्व की ओर पत्थर की खान है। संभवतः | हुए हैं। चबूतरे के चारों कोनों पर चार एवं एक बीच इन भवनों में लगे पत्थर यहीं से निकाले गये होंगे। | में बना हुआ है। प्रत्येक मढ़ में एक-एक खड्गासन इतिहास- ग्राम में प्रवेश करते हैं, तो देखते हैं | प्रतिमा देशी पत्थर की ५-५ फीट की ऊँची दीवाल कि अनेक भवन आज भी अतीत के गीत मूकभाषा से जोड़कर खड़ी की गई है। कुछ अज्ञान व्यक्तियों द्वारा में गा रहे हैं। ग्राम में एक सुन्दर वैष्णव मंदिर मिलता | उन पर फैंके गये पत्थरों के कारण शरीर पर निशान है, इसके बाद दीवान परिवार का निवास स्थल है। इनके | बने हुए हैं। कहीं-कहीं अंगभंग भी हो गया है। प्रत्येक पूर्वज दीवान प्यारेजू तत्कालीन महाराजा वखतवली सिंह | मूर्ति पर शिलालेख अंकित है। २ मूर्तियाँ संवत् १३१२ के सेनानी थे। सन् १८५८ में गदर के समय अंग्रेजों | की हैं, एक इससे भी प्राचीन है। जिसका संवत् पढ़ने के कर्नल हफरोज ने शाहगढ़ नरेश राजा वखतवली सिंह | में नहीं आया, शेष २ सं० १६१८ की हैं। चारों मढ़ों पर इस ओर से आक्रमण किया था। दीवान प्यारेजू के | की ऊँचाई १५ फीट व बीच के मढ़ की ऊँचाई २० पौत्र दीवान गजराज सिंह प्राचीन पुरपट्टन पर बहुत अनुरक्त | फीट है। सभी का मुख पूर्व की ओर है। इन मूर्तियों हैं। और समाज को इनके जीणोद्धार के लिए प्रेरित करते | के जीर्णोद्धार का कार्य सन् १९८६ में कराया गया तथा रहते हैं। सन् १९८९ में प्राणप्रतिष्ठा कराकर पूजन योग्य हुईं। जैन मन्दिर- मध्य ग्राम में एक शिखरबन्द विशाल | २. शान्तिनाथ मंदिर- जमीन तल से ३ फीट पुरातन जैन मंदिर है। यह जीर्णशीर्ण हो गया है। अन्दर ऊँची आसन पर एक विशालकाय शान्तिनाथ का मन्दिर २४ पत्थर के खम्भों पर आधारित पूरे मंदिर की छत | है, जो अहारक्षेत्रीय पुरातन शान्तिनाथ के एवं देवगढ़ की है, मध्य के छह खम्भों के बीच दीवालें खड़ी करके | पहाड़ी पर स्थित शान्तिनाथ मंदिर की स्मृति कराता है। मंदिर का गर्भालय बना हुआ है। गर्भालय के ऊपर मंदिर | यह २८ फीट ऊँचा, १८ फीट लम्बा व १३ फीट चौड़ा की लगभग ४० फीट ऊँची शिखर बनी हुई है। वेदी | है। मंदिर के शिखर में एक सुन्दर कोठरी है, मंदिर प्राचीन है। जिसमें किसी प्रकार का नवनिर्माण नहीं किया | से लगा हुआ मूलद्वार के सामने १३ वर्ग फुट का एक गया है। उत्तर में एक द्वार है, जिसे बंद कर दिया गया | चबूतरा है, जिस पर पत्थर के पायों पर बरामदानुमा है। दक्षिण में एक द्वार है, जिसके आगे १० खम्भों की | बना हुआ है। मंदिर का मुख पश्चिम की तरफ पचमढ़ों खुली दालान है। मंदिर के अंदर की परिक्रमा संकीर्ण की ओर है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए ८ फुट व अन्धकारमय है। मंदिर के आस-पास अनेक खण्डहर | ऊँचा, ४ फुट चौड़ा द्वार है। द्वार के ऊपरी भाग में भवन हैं। | एक पद्मासन मूर्ति बैठी हुई है। इस द्वार से प्रवेश कर मंदिर में ६ सफेद पत्थर की पद्मासन मूर्तियाँ हैं।। ४ फुट गहरे मंदिर का गर्भालय बना है। इसमें ३ जिसमें सं० १५४८ की एक प्रतिमा पद्मप्रभु की है। एक मूर्तियाँ खड्गासन ध्यानस्थ मुद्रा में अष्ट प्रातिहार्य युक्त सं० १५९५ वैशाख शुक्ला ३ को प्रतिष्ठापित सहस्रफणी | खड़ी हैं। मध्य में १० फुट उत्तुंग भगवान् शान्ति प्रभु पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। शेष २ सत्रहवीं व २ अठारहवीं | की खण्डित प्रतिमा है, जो सं. १२ सौ की है। मध्य -सितम्बर 2009 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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