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समाचार अमरकंटक में आचार्य श्री विद्यासागर जी । आचार्यश्री ने बताया कि दूध में मलाई, घी का
अमरकंटक में 'मूकमाटी' महाकाव्य के रचयिता | अस्तित्व विद्यमान है, किन्तु दिखता नहीं, विधिवत् प्रक्रिया सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी ने भावों की महत्ता | के उपरान्त मलाई भी मिल जाती है और घी भी प्राप्त समझाते हुए कहा कि भाषा की अपेक्षा भावों की गूंज | हो जाता है। दूध ठण्डा हो, तो मलाई नहीं मिलेगी तथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भावों का खेल भव-भव को प्रभावित | गर्म हो तो भी नहीं। दूध को गर्म कर ठण्डा करने पर करता है। पर को परखने में पल-पल व्यतीत किए, निज | ही मलाई की मोटी परत जम जाती है। गर्म होने पर विकार को परखने का प्रयत्न ही नहीं किया। समता का सन्देश | बाहर हो गए, विकार निकलने पर शान्त दूध से मलाई देते हुए आचार्यश्री ने बताया कि सबका अस्तित्त्व समान | मिलेगी। अशान्त और उबलता दूध मलाई नहीं देगा। इस है, यह धारणा धारण करते ही संघर्ष शांत हो जाता है। दृष्टांत के द्वारा मन को निर्मल करने की विधि समझाते दो रोगी मिलकर परस्पर वेदना को कम कर लेते हैं। | हुए आचार्यश्री ने बताया कि मन से भावों का तादात्म्य
आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि संसार में | स्थापित करने के लिए प्रशान्त होना अनिवार्य है। भावों सूर्योदय अनिवार्य है। सूर्योदय होते ही कमल खिल जाते | का खेल भव-भव तक परिणाम देता है। धर्म की सभा हैं, पशु पक्षी, मानव में गतिविधियाँ प्रारंभ हो जाती हैं। में धन की विवेचना नहीं होती। यह धर्म सभा है धन सभा दूरस्थ सूर्य के उदय से कमल खिल जाते हैं। अन्य क्रियायें | नहीं। काया पलट हो सकती है, आयुर्वेद चिकित्सा में आरंभ हो जाती हैं। सूर्य से प्राप्त ऊष्मा से प्राकृतिक क्रिया | कायाकल्प का विधान है। आधुनिक ज्ञान आविष्कार में आरंभ हो जाती है। मानव का पाचन तंत्र सक्रिय हो जाता | लगा है। वर्षा ऊपर से होती है, हल नीचे चलता है, हलधर है। यह मान्यता विज्ञान ने भी स्वीकार कर ली है। शरीर के हल से समस्यायों का हल हो जाता है। ऊपर वर्षा न की रचना सूर्य तत्त्व से सम्बन्धित है, सूर्य की ऊर्जा से | हो तो समस्या विकराल हो जाती है, ऊपर की क्रिया का संसार गतिमान् होता है। उर्जा का स्रोत दूर होते हुए भी | प्रभाव भीतर होता है, यह प्रतीति कराते हुए बताया कि हम ऊर्जा को ग्रहण कर लेते हैं, संचारित हो जाते हैं। रामचन्द्र जी सीता की तलाश में वन-वन भटक रहे थे आचार्यश्री ने कहा कि सूर्य से हमारा सम्बन्ध बना हुआ | कि सुग्रीव अपनी पत्नी की समस्या लेकर उपस्थित हो है, इसीलिये समस्त कार्य सम्पादित होते रहते हैं, ऐसा ही गए। लक्ष्मण ने कहा, भइया पहले स्वयं की समस्या का सम्पर्क दिव्य पुरुषों से स्थापित होते ही भवसागर का तीर | निदान कर लें तब दूसरे की समस्या देखेंगे, किन्तु राम भी दिख जाता है। आचार्यश्री ने बताया कि न तो सूर्य उदित | तो राम थे। सुग्रीव को ढाँढस देते हुए कहा चिन्ता मत होता है न हि अस्त। भ्रान्तिवश सूर्योदय और सूर्यास्त कहा | करो। परस्पर सहयोग और सह-अस्तित्व से पचास प्रतिशत जाता है। ऐसा ही भ्रम अन्य क्षेत्रों में भी व्याप्त है। विज्ञान | निदान पहले ही हो जाता है। आचार्यश्री ने समता की दिव्य पुरुषों की दिव्यध्वनि की तलाश कर रहा है। अभी | सार्थकता समझाते हुए बताया कि संग्राम समाप्त हो जाता तक विज्ञान ऐसी क्षमता के यंत्र का आविष्कार नहीं कर | है, यदि सब अपनी सीमा में रहते हैं, अन्यथा संग्राम में सका है, वह ध्वनि लुप्त नहीं है गुप्त है। अनन्ताकाश में | अनेक ग्रामों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। सबका वह ध्वनि झंकृत हो रही है, आवश्यकता सम्पर्क स्थापित | अस्तित्व समान है, यह समझ में आते ही संघर्ष शान्त हो करने की है। जागरूक क्षमता हो, तो सम्पर्क हो जाता है, | जाता है। अधिकार दूसरे पर रखने की लालसा रखते हैं, यह दिशाबोध देते हुए आचार्य श्री विद्यासागर ने बताया | स्वयं पर अधिकार रख नहीं सकते, इस भाव को अभिव्यक्त कि भाषा की अपेक्षा भावों की गूंज अधिक महत्त्वपूर्ण है। | करते हुए बताया कि पर को परखने के साधनों का बाहुल्य शब्द कर्ण का विषय है जबकि भाव मन से संबंध रखता | है, किन्तु निज को परखने का प्रयत्न कभी नहीं किया। है। हमारे पास योग्य मन भर होना चहिए। जब तक मन | टार्च के प्रकाश से पर को प्रकाशित करनेवालों को सावधान भोग, विषयकषाय के सम्पर्क में रहेगा. भाव प्रणाली से | करते हुए आचार्यश्री ने कहा-ऐसी टार्च जलाओ जिससे सम्बन्ध नही हो सकेगा।
स्वयं प्रकाशित हो सकें। वेदचन्द्र जैन (पत्रकार) गौरेला, पेण्ड्रारोड
-सितम्बर 2009 जिनभाषित 29
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