Book Title: Jinabhashita 2009 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ शब्द की व्याख्या नहीं की है। । समुच्चयार्थः। . सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्दोऽनुक्ततद्विस्तर- | अर्थ- 'च' शब्द अनुक्त के विस्तार के समुच्चय समुच्चयार्थः। के लिए कहा गया है। अर्थ- सूत्र में आया 'च' शब्द, जो नहीं कहे हैं तत्त्वार्थवृत्ति- चकारात् पूर्वसूत्रोक्तचकारगृहीतउन आस्रवों का ग्रहण करने के लिए है। विपर्ययश्चात्र गृह्यते। तथाहितत्त्वार्थवृत्ति-चकाराज्जातिमदः कुलमदः बलमदः ज्ञानं पूजां कुलं जातिं बलमृद्धिं तपोवपुः। रूपमदः श्रुतमदः आज्ञामदः ऐश्वर्यमदः तपोमदश्चेत्य अष्टावाश्रित्य मानित्वं, स्मयमाहुर्गतस्मयाः॥ ष्टमदाः, परेषामपमाननम्, परोत्प्रहसनम्, परप्रतिवादनम्, इति श्लोकोक्ताष्टमदपरिहरणम् परेषामनपमाननम्, गुरूणां विभेदकरणम्, गुरूणामस्थानदानम्, गुरूणामव- | अनुत्प्रहसनम्, अपरीवादनम्, गुरूणामपरिभवनमनुट्टनं, माननम्, गुरूणां निर्भर्त्सनम्, गुरूणामजल्प्योटनम् गुरूणां गुणख्यापनम्, अभेदविधानं स्थानापर्ण, सन्माननं, मृदुस्तुतेरकरणम्, गुरूणामनभ्युत्थानं चेत्यादीनि नीचैर्गोत्र- | भाषणं चाटुभाषणं चेत्यादयः उच्चैर्गोत्रस्यास्त्रवा भवन्ति। स्यास्त्रवा भवन्ति। अर्थ- चकार से पूर्व सूत्र में कहे चकार से गृहीत अर्थ- सूत्र मे आये 'च' शब्द से जातिमद, कुलमद, | विपर्यय का यहाँ ग्रहण करना चाहिए। तथाहि-ज्ञान, पूजा, बलमद, रूपमद, श्रुतमद, आज्ञामद, ऐश्वर्यमद और तपमद | कुल, जाति, बल, ऋद्धि तप और शरीर इन आठ का आश्रय ये आठ मद, दूसरों का अपमान, दूसरों की हँसी करना, | लेकर गर्वित होने को गर्व से रहित गणधरादिक मद कहते दूसरों का परिवादन, गुरुओं का विभेदन (मतभेद उत्पन्न) | हैं। इस प्रकार श्लोक में कहे गये अष्ट प्रकार के मदों करना, गुरुओं को स्थान न देना, गुरुओं का अपमान, गुरुओं का परिहार करना, दूसरों का अपमान न करना, हँसी न की भर्त्सना, गुरुओं से असभ्य वचन कहना, गुरुओं की | करना, परिवाद न करना, गुरुओं का तिरस्कार नहीं करना, स्तुति न करना, और गुरुओं को देखकर खड़े नहीं होना | गुरुओं से टकराना नहीं, गुरुओं के गुणों को कहना, भेद आदि नीच गोत्र के आस्रव होते हैं। को नहीं कहना, स्थान समर्पित करना, सम्मान करना, भावार्थ- ज्ञान आदि का मद करने, दूसरों का | मुदुभाषण करना और प्रियभाषण करना आदि से उच्चगोत्र अपमान तथा हँसी करने से एवं गुरुओं का तिरस्कार करने | का आस्रव होता है। से भी नीच गोत्र का आस्रव होता है। इसी के समुच्चय भावार्थ- ज्ञानादि का गर्व नहीं करना, दूसरों का के लिए चकार पद दिया है। अपमान नहीं करना, दूसरों की हँसी न करना तथा गुरुओं तद्विपर्ययो नीचैर्वृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य॥ २६॥ | का तिरस्कार नहीं करना उनकी विनय करना ये सब भी सर्वार्थसिद्धि राजवार्तिक व श्लोकवार्तिक में 'च' | उच्च गोत्र के आस्रव में कारण हैं। शब्द की व्याख्या नहीं की है। श्री दि० जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्दोऽनुक्ततद्विस्तर सांगानेर, जयपुर (राज.) वाणीभूषण पं० बिहारी लाल मोदी का देहावसान __ बड़ा मलहरा। जैन जगत के सुपसिद्ध विद्वान् कवि, लेखक तथा शंका समाधान कर्ता पं० बिहारीलाल जी मोदी का ७९ वर्ष की अवस्था में निधन हो गया है। आपने अनेक लेखों, कविताओं के साथ-साथ नियमसार का पद्यानुवाद किया है। आप प्रसिद्ध विद्वान् डॉ० नरेन्द्र कुमार जैन सनावद के श्वसुर जी थे। श्री बिहारीलाल मोदी के देहावसान पर म.प्र. की विधायक रेखा यादव, पूर्व विधायक कपूरचन्द्र घुवारा, विद्वत् परिषद के पूर्व अध्यक्ष डॉ० रमेश चन्द्र जैन मंत्री, डॉ० सुरेन्द्र जैन भारती बुरहानपुर, श्री शील डेवडिया बड़ा मलहरा सहित अनेक समाजसेवियों, विद्वानों तथा राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने गहरा दुःख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी। नरेन्द्रकुमार जैन सितम्बर 2009 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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