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। जब कि वह स्वभावमृदुपना शुभाशुभ ध्यानों से मिश्रित हो रहे ध्यान से अन्वित होकर उपज रहा हो, तब मनुष्यआयु का आस्रावक हो जायेगा, अन्यथा नहीं ।
भावार्थ- स्वभाव की मृदुता से मनुष्य आयु एवं देव आयु दोनों का आस्रव होता है, इसी का समुच्चय करने की के लिए सूत्र में 'च' शब्द दिया गया है। निः शीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् ॥ ९ ॥
सर्वार्थसिद्धि- 'च' शब्दोऽधिकृतसमुच्चयार्थः । अल्पारम्भपरिग्रहत्वं च निःशीलव्रतत्वं च ।
अर्थ- सूत्र में जो 'च' शब्द है वह अधिकार प्राप्त आस्रवों के समुच्चय के लिए है, इससे यह अर्थ निकलता है कि अल्प आरम्भ और अल्पपरिग्रहरूप भाव तथा शील और व्रतरहित होना सब आयुओं के आस्रव हैं।
राजवार्तिक- 'च' शब्दोऽधिकृतसमुच्चयार्थः । १ । अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्यायुषः निःशीलव्रतत्वं चेत्यधिकृतसमुच्चयार्थश्चशब्दः क्रियते ।
अर्थ- 'च' शब्द समुच्चय ग्रहण के लिए है । 'च' शब्द से प्रयोजन यह है कि अल्पारम्भ और अल्पपरिग्रहत्व भी मनुष्य आयु के आस्रव के कारण हैं तथा निःशीलत्व और व्रतरहितत्व भी मनुष्य आयु के आस्रव के कारण हैं। इस अधिकार प्राप्त मनुष्यायु के समुच्चय के लिए चकार ग्रहण किया है।
तत्त्वार्थवृत्ति - चकारादल्पारम्भपरिग्रहत्वं च सर्वेषां नारकतिर्यड्मनुष्यदेवानाम् आयुर्ष आस्रवो भवति ।
अर्थ- सूत्र में आये चकार से अल्पारम्भ और अल्पपरिग्रह का भाव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव सभी आयुओं के आस्रव का कारण है।
सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्दोऽधिकृतस्याऽल्पारम्भपरिग्रहत्वस्य समुच्चयार्थः । ततो न केवलं निःशीलव्रतत्वं मानुषस्यास्स्रवः, किं तर्ह्यल्पारम्भपिरिग्रहत्वं चेत्यर्थः सिद्धो भवति ।
अर्थ- 'च' शब्द से अधिकृत अल्प आरम्भ और अल्पपरिग्रह का समुच्चय होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि केवल नि:शीलव्रतत्व ही मनुष्यायु का आस्रव नहीं है, अपितु अल्प आरम्भ और अल्पपरिग्रह भी हैं ।
श्लोकवार्तिक- 'च' शब्दोऽधिकृतसमुच्चयार्थः । अर्थ- सूत्र में कहा गया 'च' शब्द तो अधिकार
और अल्पपरिग्रह भी चारों आयु के आस्रव का कारण है । इसी के समुच्चय के लिए सूत्र में 'च' शब्द दिया है। सम्यक्त्वं च ॥ २१॥
सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक व तत्त्वार्थवृत्ति में 'च' शब्द व्याख्या नहीं है ।
श्लोकवार्तिक- किमर्थश्चशब्द इति चेदुच्यतेसम्यक्त्वं चेति तद्धेतु समुच्चयवचोबलात् । तस्यैकस्यापि देवायुः कारणत्वविनिश्चयः ॥ १॥ अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द कहने का प्रयोजन क्या है? ऐसा पूछने पर कहते हैं- 'सम्यक्त्वं च' इस सूत्र में उस देव - आयु के हेतुओं का समुच्चय करनेवाले वचन के बल से उस एक सम्यक्त्व को भी देव आयु के कारणपन का विशेषतया निश्चत हो जाता है। अर्थात् 'च' शब्द से सराग संयम आदि का समुच्चय हो जाता है।
सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति - 'च शब्दः पूर्वोक्तसमुच्चयार्थ।' अविशेषाभिधानेऽप्यत्र सौधर्मादिविशेष-गतिर्भवति पृथग्योगकरणसामर्थ्यात् ।
अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द पूर्वोक्त समुच्चय के लिए है। सामान्य से देवायु का आस्रव करने पर भी पृथक् सूत्र करने से सिद्ध होता है कि सम्यक्त्व सौधर्म आदि वैमानिक देवायु का आस्रव है ।
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भावार्थ- सम्यक्त्वसहित जीव यदि देव आयु का बन्ध करते हैं, तो वे नियम से वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं एवं सरागसंयम आदि के धारक जीव भी वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं, इन्हीं सब का समुच्चय करने के लिए सूत्र में 'च' शब्द दिया गया है।
योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ॥ २२ ॥ सर्वार्थसिद्धि - 'च' शब्देन मिथ्यादर्शनपैशुन्यास्थिरचित्तताकूटमानतुलाकरण- परनिन्दात्मप्रशंसादिः समुच्चीयते।
अर्थ- सूत्र में आये 'च' पद से मिथ्यादर्शन, चुगलखोरी, चित्त का स्थिर न रहना, मापने और तौलने के बाँट घट-बढ़ रखना, दूसरों की निन्दा करना और अपनी प्रशंसा करना आदि आस्रवों का समुच्चय होता है ।
राजवार्तिक- 'च' शब्दोऽनुक्तसमुच्चयार्थः । ४ । च शब्दः क्रियते अनुक्तास्त्रवस्य समुच्चयार्थः कः पुनरसौ ? मिथ्यादर्शन- पिशुनताऽस्थिरचित्तस्वभावता - कूटमानतुलाकरण- सुवर्णमणिरत्नाद्यनुकृति कुटिलसाक्षित्वाऽड्गो
प्राप्त अल्पारम्भपरिग्रहत्व का समुच्चय करने के लिए है । पाड्गच्यावन-वर्णगंधरसस्पर्शान्यथा-भावन-यन्त्रपंजरक्रिया भावार्थ- नि:शील और व्रत रहित के साथ अल्पारम्भ । द्रव्यान्तरविषयसम्बन्धनिकृतिभूयिष्ठता-परिनिन्दात्मप्रशंसा
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सितम्बर 2009 जिनभाषित 17
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