Book Title: Jinabhashita 2009 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 10
________________ प्रथम अंश कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र का स्वरूप आचार्य श्री विद्यासागर जी श्री सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर (दमोह, म.प्र.) में मई २००७ में आयोजित श्रुताराधना शिविर में १४ मई २००७ के द्वितीयसत्र में विद्वानों की शंकाओं के समाधानार्थ आचार्यश्री द्वारा किये गये प्रवचन का प्रथम अंश प्रस्तुत है। शंका- आचार्यश्री! अभी तक की संगोष्ठियों में | यह एक विशेष बात है। विद्वानों को यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आयतन, पहले वह बिना निर्देशन के पढ़नेवाला छात्र था। अनायतन, कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र का क्या स्वरूप | वह अध्यापक या अध्यापन की शैली को अ था, तभी वह आलोड़न करता-करता, तत्संबंधी ग्रन्थों १. शिथिलाचारी दिगम्बर जैनमुनि कुगुरु में आते | का आलोड़न करता चला जाता था। वह अपने पाठ्यक्रम हैं या नहीं? से सम्बंधित पुस्तकों को देखने के लिए पुस्तकालय चला २. चतुर्णिकाय देवों में कौन कुदेव और कौन | जाता था। अब उसके लिए पाठ्यक्रम नहीं, किन्तु देव में आते हैं? पुस्तकालय है। पुस्तकों का निषेध नहीं हुआ है, किन्तु इस विषय पर मार्गदर्शन देने की कृपा करें, जिससे पाठ्यक्रम का निषेध हो चुका है। अब उसे कोई अध्यापक हम लोग सही रास्ते पर चल सकें। नमोऽस्तु। नहीं कहता कि तुम अपने पाठ्यक्रम को छोड़कर यह समाधान- आगम और अध्यात्म पद्धति के कथन क्या पढ़ रहे हो? नहीं, अब उसको जो कुछ पढ़ना किया जाता है। आगमपद्धति में देव, शास्त्र, गुरु, छह होता है, वह पढ़ लेता है। द्रव्य, नव पदार्थ, संयम, तप आदि का उल्लेख है और अब वह किसी भी पुस्तकालय में किसी भी अध्यात्मपद्धति में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र का | भाषागत कोई भी विषय देखता रहता है। इसी प्रकार उल्लेख है। इनकी उत्पत्ति के कारण अपने को उपलब्ध आप धारणा बनाकर सुन लीजिये, विषय आपको समझ हो जाते हैं। आगमपद्धति और अध्यात्मपद्धति क्या वस्तु में आ जायेगा कि आगमपद्धति देव-गुरु-शास्त्र, छह द्रव्य, हैं, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। कोई भी पद्धति हो, | नव पदार्थ आदि को लेकर चलती है। अध्यात्म में अपने को तो सम्यग्दर्शन प्राप्त करना है, ऐसा नहीं। एक | सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान के विषय प्रस्तुत किये हैं। पाठ्यक्रम होता है, एम. ए. की कक्षा तक क्रमिक चलता | धवला जी आदि के माध्यम से कह रहा हूँ, है। स्कूलों में पहली क्लास का पाठ्यक्रम अलग, दूसरी सम्यग्दर्शन का विषय क्या है? जो सम्यग्दर्शन के विषय क्लास का पाठ्यक्रम अलग, इस प्रकार एम. ए. तक छह द्रव्य, नव पदार्थ आदि का श्रद्धान नहीं होने देता पाठ्यक्रम चलता जाता है। तत्संबंधी प्रश्नों के उत्तर आपको है, उसका नाम दर्शनमोहनीय है। दर्शनमोहनीय के उदय दिये जाते हैं। पाठ्यक्रम इस प्रकार चलता है। आगे के कारण छह द्रव्यों का समीचीन श्रद्धान नहीं हो पाता, शोधछात्र होता है, वह भी पढ़ता है, लेकिन उसका कोई उसका नाम मिथ्यादर्शन है। पाठ्यक्रम नहीं होता है। जब दर्शनमोह हट जाता है, तो सम्यग्दर्शन प्रकट वह छात्र तो है, लेकिन शोधकर्ता है। अब वह | हो जाता है। षट्खण्डागम और कषायपाहुड़ ये सिद्धांतशोध क्या करेगा? शोध-पूर्ण कक्षा में पास होकर के | ग्रन्थ हैं। इनमें कहीं भी शद्धात्मा की बात नहीं कही बोध प्राप्त करता है। किसी एक विषय में शोध करके | है। 'अन्ते सिद्ध इति सिद्धान्तः' सिद्ध की बात हम अन्त वह गहराई के साथ कुछ प्रस्तुत करना चाहता है, तो | में करेंगे। अभी हम मार्ग से चलेंगे। इस प्रकार वहाँ उसके लिए कोई पाठ्यक्रम निर्धारित नहीं है। जहाँ एक | पर आपको एक शब्द मिलेगा 'वीतरागता'. लेकिन कब भाग निर्धारित हो जाता है, उसके लिए तो कुछ कर | मिलेगा- 'रागाभावात' वीतरागता. राग के अभाव में सकते हैं, करा सकते हैं। अब पढ़ने के लिए दिया | वीतरागता प्रकट होती है। जाता है निर्देश, पहले पढ़ने के लिए निर्देश की 'छद्मस्थ वीतराग परिहार विशुद्धि संयत' यह संज्ञा आवश्यकता नहीं होती थी। आज अनिवार्य हो गया है, | ग्यारहवें बारहवें गुणस्थान की है। वीतराग सम्यग्दर्शन, 8 जुलाई 2009 जिनभाषित

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