Book Title: Jinabhashita 2009 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 36
________________ रजि नं. UPHIN/2006/16750 मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ NAAMAN माटी अपने को पूरा गला कर माटी भगवान् बन गयी दुनिया उसके चरणों में झुक गयी बनाने-वाले-की आँख अभी भी खोजती है कि उसमें कहाँ क्या कमी रह गयी। अतृप्त कामनाओं-का-कलश ऊपर से सोने-सा दमकता है सुराख उसमें कहीं नीचे पैंदी में होता है कोई इसे कितना भी भरे वह सदा अतृप्त रहता है। कल वह रोज की तरह आज भी अपने कमरे का द्वार खोलेगा सीढ़ियाँ चढ़ेगा थका-हारा वह बेचारा कल के इंतजार में आज फिर सोयेगा कल कोई और द्वार खोलेगा। घर यहाँ आदमी पहले अपने मन का एक घर बनाता है जो बनते वक्त बहुत बड़ा पर रहते-रहते बहुत छोटा लगने लगता है फिर मजबूरन उसे एक घर और बनाना पड़ता है आदमी वही रहता है बदल जाता है। SON 'पगडंडी सूरज तक' से साभार स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन।

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