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मुनि श्री योगसागर जी की कविताएँ
भो चेतन मदन का सदन
है वदन
नित्य करता
वंदन अभिनंदन
आलिंगन
चंदन सा
संवेदन तू मानता
पर जहाँ निशदिन
कर्मों का मर्दन और
गठबंधन
और अंत में
होता
रुदन और आक्रंदन ।
२
जिस हँसी के साथ खुशी है बन्ध लस्सी की अनुभूति होती है पर जहाँ हँसी के साथ खुशी नहीं वहाँ हँसी नहीं हँसिया है।
३
दिल है जिसका साफ वहाँ झलकता है इंसाफ जहाँ पर कपट की लपट से संतप्त है जिसका दिल वहाँ वो उगलता है दिन-रात अभिशाप ।
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हे प्रभु पारसनाथ
आया हूँ आपके पास
यह दीन आत्मा दुखित स्वयं से
कह रहा
में कौन हूँ?
४
हुआ चमत्कार
गगन में गूँज उठा तू कोन है ?
यूँ ध्वनि ध्वनित हुआ
क्षण में विलीन हुआ
पर
इस पतित आत्मा के
दिल में
प्रस्तुति प्रो० रतनचन्द्र जैन
भेदज्ञान की
बिजली कौंध गई ज्ञात हुआ इसे मुझमें ऋजुता का अभाव है।
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