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________________ சி 100 मुनि श्री योगसागर जी की कविताएँ भो चेतन मदन का सदन है वदन नित्य करता वंदन अभिनंदन आलिंगन चंदन सा संवेदन तू मानता पर जहाँ निशदिन कर्मों का मर्दन और गठबंधन और अंत में होता रुदन और आक्रंदन । २ जिस हँसी के साथ खुशी है बन्ध लस्सी की अनुभूति होती है पर जहाँ हँसी के साथ खुशी नहीं वहाँ हँसी नहीं हँसिया है। ३ दिल है जिसका साफ वहाँ झलकता है इंसाफ जहाँ पर कपट की लपट से संतप्त है जिसका दिल वहाँ वो उगलता है दिन-रात अभिशाप । - हे प्रभु पारसनाथ आया हूँ आपके पास यह दीन आत्मा दुखित स्वयं से कह रहा में कौन हूँ? ४ हुआ चमत्कार गगन में गूँज उठा तू कोन है ? यूँ ध्वनि ध्वनित हुआ क्षण में विलीन हुआ पर इस पतित आत्मा के दिल में प्रस्तुति प्रो० रतनचन्द्र जैन भेदज्ञान की बिजली कौंध गई ज्ञात हुआ इसे मुझमें ऋजुता का अभाव है। क क
SR No.524341
Book TitleJinabhashita 2009 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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