Book Title: Jinabhashita 2009 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ कुंभोज शिविर से सद्धर्म-प्रभावना गत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कुंभोज बाहुबलि में वृहत् स्तर पर, श्री सम्यग्दर्शन संस्कार शिविर आयोजित हुआ। पहले दिनांक २० मई, - २००९ से २९ मई २००९ तक महिलाओं का शिविर था, तथा बाद में दिनांक ३१ मई २००९ से ९ जून, २००९ तक पुरुषों का शिविर आयोजित था। महिला शिविरार्थियों की संख्या लगभग २८०० रही, जिसने एक कीर्तिमान स्थापित किया। महिलाओं में लौकिक शिक्षा प्राप्त युवतियों की संख्या अधिक रही इतनी बड़ी संख्या में आए शिविरार्थियों की भोजन आदि की प्रशसंनीय व्यवस्था के लिए शिविर प्रबंधकगण वस्तुतः धन्यवाद के पात्र हैं। पुरुष शिविरार्थियों की संख्या शिक्षण संस्थाएँ चालू हो जाने के कारण कम रही, किंतु फिर भी संख्या १५०० के लगभग पहुँच गई। शिविर में प्रातःकाल ५.०० बजे से रात्रि १०.०० बजे अल्पाहार के बाद ८.३० से १० बजे तक पू० मुनिराज की सामूहिक कक्षा के बाद १०.०० बजे से १२.०० बजे तक विभिन्न कक्षाओं में विभिन्न मुनिराज एवं विद्वान द्वारा विभिन्न ग्रंथों , शिक्षण होता था। मुख्यतः बालबोध, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, तत्त्वार्थ सूत्र, आलाप पद्धति आदि का शिक्षण होता । मध्याह के भोजन के बाद पुनः २.०० बजे से ३.३० बजे तक विभिन्न कक्षाओं में शिक्षण दिया जाता था। ३.३० बजे से ५.०० तक पू. मुनिराज द्वारा छहदाण का सामूहिक शिक्षण होता था । ५ बजे से ७ बजे तक भोजनावकाश रहता था । पुनः ७ बजे से रात्रि १० बजे तक आरती, भजन, शंका समाधान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। प्रातः से रात्रि तक इस प्रकार की गहन व्यस्तता में शिविरार्थी ऐसा अनुभव करते थे, मानों वे किसी विशिष्ट शिक्षण लोक में रह रहे हैं। सामूहिक शिक्षण एवं कुछ कक्षा का शिक्षण भी पू. वीतरागी मुनिराजों के द्वारा प्राप्त कर शिविरार्थी अपने को पुण्यशाली अनुभव कर रहे थे। कक्षाओं का शेष शिक्षण प्रख्यात विद्वान् पं० रतन लाल जी बैनाड़ा के नेतृत्व में सांगानेर श्रमण संस्कृति संस्थान के योग्य विद्वानों एवं अन्य विद्वानों द्वारा प्रदान किया गया था। सभी शिविरार्थियों का उपयोग शिक्षण प्राप्त करने एवं स्वयं के अध्ययन चिंतन में केन्द्रीभूत होकर इस प्रकार तल्लीन रहता था कि मौसम की ग्रीष्मता एवं व्यवस्था संबंधी असुविधाओं की ओर जाता ही नहीं था। शिविर में अर्जित ज्ञान के बल से शिविरार्थियों की श्रद्धा और आचरण में गुणात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहा था। जैनधर्म के उदात्त वैज्ञानिक सिद्धांतों के अध्ययन से सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति उनके हृदयों में, जो श्रद्धा जाग्रत हुई उसका उनके साथ हुए वार्तालाप से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। शिविरार्थियों की एवं कक्षाओं की सारी व्यवस्थाएँ ० तात्याभैया के नेतत्व में ब्रह्मचारी भाईयों का दल अत्यंत सेवाभाव से इतने सुंदर एवं व्यवस्थित ढंग से करते थे कि कभी किसी को किसी प्रकार की असंतुष्टि नहीं रही। आचार्य समंतभद्र स्वामी ने प्रभावना का स्वरूप यह बताया है कि अज्ञान अंधकार को दूर कर जिन शासन (जैन तत्त्व ज्ञान) के महत्व को समझाना बताना ही प्रभावना है । ऐसे शिविरों के माध्यम से ही जैनधर्म की सच्ची प्रभावना हो सकती है। आज की यह महती आवश्यकता है कि जैन कहलानेवालों को जैनधर्म के मूल सिद्धांतों का परिचय प्राप्त हो। उनके हृदय उस समीचीन तत्त्व प्ररूपण के प्रति श्रद्धा जाग्रत हो और वे उस युक्ति युक्त वैज्ञानिक धर्म को जानकर मानकर स्वयं को गौरावन्वित अनुभव करें। हमें विश्वास है कि उक्त शिविर में शिक्षण प्राप्त भाईबहिनों में घनीभूत हुए धार्मिक - संस्कार इस भव में अथवा अगले भव में सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में अवश्य निमित्त बनेंगे । इस प्रकार जैनशासन की समीचीन प्रभावना के कारण इस शिविर के आयोजकगण अनेक साधुवाद के पात्र हैं। ऐसे धार्मिक शिक्षण शिविर अधिकाधिक संख्या में सभी स्थानों पर आयोजित हो ऐसी अपेक्षा है। मूलचंद लुहाड़िया केन्द्रीय राज्यमंत्री श्री प्रदीप जैन को बधाई केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में प्रदीप जैन आदित्य जो झाँसी से विधायक थे और अल्प समय में ही अपने कार्य, व्यवहार लगन, कर्त्तव्यनिष्ठा के आधार पर सांसद बने और मंत्रिमण्डल में राज्यमंत्री के रूप में स्थान पाया। कांग्रेस के जिला महामंत्री एवं भारत वर्षीयतीर्थ क्षेत्र कमेटी के कार्यकारिणी सदस्य पवन घुवारा ने बधाई दी। पवन घुवारा जुलाई 2009 जिनभाषित 31

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