Book Title: Jinabhashita 2009 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ न द्रुह्येत् सर्वभूतानि निर्द्वन्द्वो निर्भयो भवेत्। । है किन नक्तं चैव भक्षीयाद् रात्रौ ध्यानपरो भवेत्॥ | हन्नाभिपद्मसको चश्चंडरोचिरपायतः। २७ वां अध्याय ६४५ वां पृष्ठ अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि॥ अर्थ- मनुष्य सब प्राणियों पर द्रोह रहित रहे। भावार्थ- सूर्य छिप जाने के बाद हृदय कमल निद्व और निर्भय रहे तथा रात को भोजन न करे और और नाभिकमल दोनों संकुचित हो जाते हैं और सक्ष्म ध्यान में तत्पर रहे। और भी ६५३ वें पृष्ठ पर लिखा | जीवों का भी भोजन के साथ भक्षण हो जाता है इसलिये है कि रात में भोजन न करना चाहिये। ___ 'आदित्ये दर्शयित्वान्नं भुंजीत प्राडमुखे नरः।' । रात्रि भोजन का त्याग करना कुछ भी कठिन नहीं भावार्थ- सूर्य हो उस समय तक दिन में गुरु | है। जो महानुभाव यह जानते हैं कि- 'जीवन के लिए या बड़े को दिखाकर पूर्व दिशा में मुख करके भोजन | भोजन है भोजन के लिए जीवन नहीं' वे रात्रि भोजन करना चाहिये। को नहिं करते हैं। इस विषय में आयुर्वेद का मुद्रा लेखा भी यही । 'जैननिबन्ध रत्नावली' (द्वितीय भाग) से साभार प्रो० (डॉ०) रतनचन्द्र जैन (सम्पादक-जिनभाषित) महाकवि रइधू पुरस्कार से सम्मानित फीरोजाबाद। 'पं० श्यामसुन्दर लाल शास्त्री श्रुत प्रभावक न्यास' के तत्त्वावधान में स्थानीय नशियाजी दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित समारोह में देश के यशस्वी जैन विद्वान् प्रो० (डॉ०) रतनचन्द्र जैन (बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व रीडर) एवं सम्प्रति सम्पादक 'जिनभाषित' को महाकवि रइधू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समाज के मूर्धन्य विद्वानों को दिए जानेवाले इस पुरस्कार में २१००० रु० की श्रद्धानिधि, प्रशस्तिपत्र, शाल एवं उपहारादि के साथ प्रदान की जाती है। न्यास के अध्यक्ष श्री उदयभान जैन एडवोकेट ने यह राशि प्रदान की। 'अनेकान्तविद्या वाचस्पति' की मानद उपाधि से अलंकृत करते हुए प्रशस्तिपत्र, न्यास के सदस्य अभयकुमार जैन (मामा), प्रमोद जैन (राजा), अनूपचन्द जैन एडवोकेट एक वीरेन्द्रकुमार जैन (रेमजावालों) ने संयुक्तरूप से प्रदान किया। न्यास द्वारा प्रदत्त यह बारहवाँ पुरस्कार था। मुख्य अतिथि श्री मनीष असीजा (चेयरमैन- नगरपालिका परिषद्) ने कहा कि यह पुरस्कार सम्पूर्ण नगर के लिए एक गौरवपूर्ण प्रसंग बन गया है। न्यास के मंत्री ने बताया कि आदरणीय डॉ० सा० को यह पुरस्कार पिछले दस वर्षों की लगातार श्रम-साधना से लिखित उनकी जम्बो कृति 'जैनपरम्परा और यापनीयसंघ' के लिए समर्पित किया जा रहा है। इस कालजयी कृति का प्रस्ताव 'भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रिपरिषद्' का था, जिसे बाद में युग-प्रभावक सन्त पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पुनीत आशीर्वाद एवं प्रशस्त प्रेरणा से आगे बढ़ाया गया। ९००-९०० पृष्ठों के तीन खण्डों में प्रकाश्य यह कृति मुद्रणाधीन है। इस कृति में जैन इतिहास के अब तक के अनेक अनछुए एवं विलुप्त तथ्यों को प्रकाश में लाया गया है। समारोह की अध्यक्षता प्रमुख उद्योगपति श्री मदनलाल बैनाड़ा (आगरा) ने की। इस अवसर पर समाज के सैकड़ों प्रतिष्ठित महानुभाव उपस्थित थे। नरेन्द्रप्रकाश जैन, (मंत्री - न्यास) श्री दिगम्बर जैन रेवातट सिद्धेदय सिद्धक्षेत्र ट्रस्ट, नेमावर आवश्यकता- १. एक जैन मैनेजर की, जो कम्प्यूटर का जानकार हो व हिसाब अकाउन्ट लिख सके | वेतन योग्यतानुसार, रहने की व्यवस्था पानी बिजली की व्यवस्था देखेंगे! २. भोजनशाला चलाने के लिये एक जैनदम्पति की आवश्यकता है, जो यात्री के आने पर भोजन की व्यवस्था कर सकें। रहने, पानी, बिजली, बर्तन, देवेंगे। वेतन कन्डीशन के लिये- सम्पर्क करें- श्री बी.एल. (जैन महामंत्री, मु.पो.- नेमावर, तहसील- खातेगाँव, जिला-देवास, फोन नंङ ९४२५६८८३४१, ०७५७७-२२३२०३ जुलाई 2009 जिनभाषित 17

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