Book Title: Jinabhashita 2009 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 2
________________ शान्तरस का संवेदन सानंद एकान्त में आचार्य श्री विद्यासागर जी कपोल-युगल पर। क्रिया-प्रतिक्रिया की परिस्थिति प्रतिकलन किस रूप में हैपरीक्षण चलता रहता है यदि करुणा या कठोरता नयनों में झलकेगी सह-धर्मी सम कुछ गम्भीर हो आचार-विचारों पर ही रुदनता की ओर मुड़ेगा वह, इस का प्रयोग होता है अधरों की मन्द मस्कान से इसकी अभिव्यक्ति यदि कपोल चंचल स्पन्दित होते हों मृदु मुस्कान के बिना ठसका लेगा वह! सम्भव ही नहीं है। यही कारण है, कि वात्सल्य-रस के आस्वादन में प्राय: माँ दूध पिलाते समयहलकी-सी मधुरता....फिर अपने अंचल में क्षण-भंगुरता झलकती है बालक का मुख छिपा लेती है। ओस के कणों से यानी, न ही प्यास बुझती, न आस शान्त-रस का संवेदन वह बुझता बस श्वास का दीया वह! सानन्द-एकान्त में ही हो फिर तुम ही बताओ, और तब वात्सल्य में शान्त-रस का एकाकी हो संवेदी वह...! अन्तर्भाव कैसा? रंग और तरंग से रहित माँ की गोद में बालक हो सरवर के अन्तरंग से माँ उसे दूध पिला रही हो अपने रंगहीन या रंगीन अंग का बालक दूध पीता हुआ संगम होना ही संगत है ऊपर माँ की ओर निहारता अवश्य, शान्त-रस का यही संग है अधरों पर, नयनों में यही अंग! और मूकमाटी (पृष्ठ १५७-१५९) से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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