Book Title: Jinabhashita 2009 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ तेनायमर्थः स्थूलतया रत्नप्रभायां प्रथमनरकभूमौ नारकाणा- | हजार वर्ष की होती है। चकार से प्रकृत अर्थ फलित मुत्कृष्टा स्थितिरेकसागरोपमं प्रोक्तं, सा शर्कराप्रभायां | होता है। द्वितीयनरकभूमौ जघन्या वेदितव्या। शर्कराप्रभायां त्रीणि व्यन्तराणां च॥ ३८॥ सागरोपमाणि उत्कृष्टा स्थिति कथिता, सा बालुकाप्रभायां सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' तृतीयनरकभूमौ जघन्यस्थितिः वेदितव्या इत्यादि, तावत् | शब्दः प्रकृतसमुच्चयार्थः। तेन व्यन्तराणामपरा स्थितिर्दशसप्तमनरके द्वाविंशतिसागरोपमाणि जघन्या स्थितिर्भवति। | वर्षसहस्राणीत्यवगम्यते।। अर्थ- चकार से आगे-आगे पूर्व-पूर्व का अनुकर्षण | अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द प्रकृत अर्थ का समुच्चय करना चाहिये, इसका यह अर्थ है। रत्नप्रभा नामक प्रथम | करने के लिए दिया गया है। इससे ऐसा अर्थ घटित नरक भूमि में नारकियों की उत्कृष्ट स्थिति जो १ सागरोपम होता है कि व्यन्तरों की जघन्य स्थिति १०,००० वर्ष कही है वह शर्कराप्रभा नामक द्वितीय भमि में जघन्य | है। जानना चाहिये। शर्कराप्रभा में जो उत्कृष्ट आयु ३ सागरोपम श्लोकवार्तिक- अपरा स्थितिर्दशवर्षसहस्राणीति कही है, वह बालुकाप्रभा नामक तृतीय नरकभूमि में जघन्य | चशब्देन समुच्चीयते। आयु जानना चाहिये इत्यादि। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी अर्थ- व्यन्तरों की जघन्य स्थिति १०,००० वर्ष में २२ सागरोपम जघन्य स्थिति होती है। है, 'च' शब्द से इसका समुच्च हो जाता है। भावार्थ- नारकी जीवों की जघन्य आयु का क्रम तत्त्वार्थवृत्ति- व्यन्तराणां किन्नरादीनां दशवर्षसहबताने के लिए सूत्र में 'च' शब्द आया है। यथा- प्रथम | स्राणि जघन्यास्थितिर्भवति। चकारः अपरास्थितिरित्यनपृथ्वी की जो उत्कृष्ट आयु है उसमें १ समय और मिलाने | कर्षणार्थः। पर द्वितीय पृथ्वी की जघन्य आयु हो जाती है। द्वितीय अर्थ- किन्नर आदि व्यन्तरदेवों की जघन्य स्थिति पृथ्वी की जो उत्कृष्ट आयु है उसमें एक समय मिलाने | १०,००० वर्ष है। सूत्र में आये 'च' शब्द से जघन्य स्थिति पर तृतीय पृथ्वी की जघन्य आयु हो जाती है। इस प्रकार | का अनुकर्षण हो जाता है। आगे भी जानना चाहिये। भावार्थ- व्यन्तरों की जघन्य स्थिति १० हजार भवनेषु च॥ ३७॥ वर्ष की है यह चकार से जाना जाता है। श्लोकवार्तिक में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं है। ज्योतिष्काणां च॥ ४०॥ सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक- 'च' शब्द किमर्थ:? श्लोकवार्तिक में 'च' शब्द की विवेचना नहीं की प्रकृतसमुचच्यार्थः। तेन भवनवासिनामपरास्थितिर्दशवर्ष- | गयी है। सहस्राणीत्यभिसंबध्यते। सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक- 'च शब्दः प्रकृतअर्थ- शंका- सूत्र में 'च' शब्द किसलिए दिया | समुच्चयार्थः। तेनैवमभिसंबन्धः। ज्योतिष्काणां परा स्थितिः है? समाधान- प्रकृत विषय का समुच्चय करने के लिए। पल्योपममधिकमिति।' इससे ऐसा अर्थ घटित होता है कि भवनवासियों की | अर्थ- 'च' शब्द प्रकृत विषय के समुच्चय के जघन्य स्थिति १०,००० वर्ष है। लिए है। जिससे यह अभिसंबन्ध होता है कि ज्योतिषी सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति-'च' शब्दः प्रकृतसमच्चयार्थः। | देवों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक १ पल्योपमप्रमाण है। तेन भवनेषु च ये वसन्ति प्रथमनिकायदेवास्तेषां दशवर्ष- सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्दः प्रकृतसमुच्चयार्थ सहस्राणि जघन्या स्थितिरित्यभिसंबध्यते। इत्येवं तेन ज्योतिष्काणां च परा स्थितिः पल्योपमं अर्थ- 'च' शब्द प्रकृत के समुच्चय के लिए है। | सातिरेकमित्यभिसम्बध्यते। भवनों में रहनेवाले प्रथम निकाय के जो देव हैं, उनकी अर्थ- 'च' शब्द प्रकृत के समुच्चय के लिए है। जघन्य स्थिति १०,००० वर्ष है ऐसा सम्बन्ध करना चाहिये। इससे ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति १ पल्य से तत्त्वार्थवृत्ति- चकार: अपरा स्थितिरित्यनुकर्षणार्थः।। कुछ अधिक है, ऐसा सम्बन्ध हो जाता है। अर्थ- सूत्र में चकार जघन्य स्थिति का अनुकर्षण तत्त्वार्थवृत्ति- चकारः प्रकृतसमुच्चयार्थः। तेन करने के लिए है। ज्योतिष्काणां परा स्थितिः पल्योपमाधिकमिति ज्ञातव्यम्। भावार्थ- भवनवासी देवों की जघन्य आयु १० । अर्थ- चकार प्रकृत विषय का समुच्चय करने 20 जून 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36