Book Title: Jinabhashita 2009 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ निशाना जब भी मैंने किसी और को निशाना बनाया और अपने जीतने का जश्न मनाया मैंने पाया, मैं ही हारा, अनजाने ही मेरा तीर मुझसे टकराया शिकार मैं ही बना और कई रोज तक कराहती रही मेरी घायल चेतना। बासेपन का अहसास हमें विरक्त न कर सके। कुछ भी नहीं प्यासा मृग मरीचिका में उलझा और तड़प उठा हमने कहाबेचारा मृग। स्वाद की मारी मीन काँटे-में-उलझी और मर गयी हमने कहाअभागी मीन॥ एक पतंगा दीपक की जोत पर रीझा और झुलस गया हमने कहापागल परवाना।। वाह रे हम। अपनी प्यास अपनी उलझन और अपने दीवानेपन पर हमें अपने से कभी कुछ भी नहीं कहना। अहसास हमने यहाँ एक-एक चीज और अपने बीच वासनाओं के नित-नवीन/रंगीन परदे डाल रखे हैं कि रोज कुछ नया लगे जिन्दगी भ्रम में गुजर सके और 'पगडंडी सूरज तक' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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