Book Title: Jinabhashita 2008 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 11
________________ एक विद्वान् का पुत्र, उच्च शिक्षा प्राप्त करने कहीं। आज इस प्रकार अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है, इस गया था। इसके पिता किसी मंदिर में प्रवचन, पूजा आदि | प्रकार की व्याख्या सुनकर समन्तभद्र स्वामी जी की वह करते थे। एक दिन आवश्यक कार्य के आने से बाहर | कारिका मेरे सामने तैरकर आ जाती हैचले गये, और उनका जो लड़का था, उससे कह गये काल: कलिर्वा कलुषाशयो वा कि 4-5 दिन के लिए मैं बाहर जा रहा हूँ और जब श्रोतुः प्रवक्तुर्वचनाशयो वा। तक मैं वापस न आऊँ, तब तक तुम प्रवचन आदि तत्च्छासनकाधिपतित्वलक्ष्मीकरते रहना। कोई बुलाने आये तभी जाना, अपने आप प्रभुत्वशक्तरेपवादहेतुः॥ नहीं जाना। गाँव में लोग कहने लगे पंडित जी चले (युक्त्यनुशासन) गये, कोई बात नहीं, उनका लड़का बहुत होशियार है 'समन्तभद्रस्वामी' ने बिल्कुल सही लिखा है कि अभी-अभी पढ़कर आया है। यह विचार कर कुछ लोग | हे भगवन्! आपका अद्वितीय धर्म है। इसकी शरण में उसके पास गये और उससे कहने लगे कि कोई बात | आनेवाला आज तक कोई ऐसा भी नहीं है, जिसका नहीं, आपके पिताजी बाहर गये हैं, और आपको आज | उद्धार न हुआ हो, लेकिन बात ऐसी है अपवाद किसका नहीं, तो कल यह कार्य करना ही है। आप ही प्रवचन | हुआ है? अपवाद उस बात का है कि कलिकाल का करने चलिए। इस प्रकार लोगों की अनुनय-विनय देख | एक मात्र अपराध है, जो महान कलुष आशयवाला है। वह प्रवचन करने चला गया। शास्त्र में जहाँ से पढ़ना | धर्म को भी, जो अपने अनुरूप चलाना चाहता है। हंस था, वहाँ से पढ़ना शुरू कर दिया, चार-पाँच पंक्तियाँ | की उपमा श्रोता को दी है। इस प्रकार की कलुषता पढ़ने के उपरांत कहा कि देखो, 'कण भर जो माँस होने के कारण ही वक्ता अर्थ बदलता है। खाता है, वह सीधा नरक चला जाता है।' सभा में हलचल जिस वक्ता में मच गई। सब लोगों ने कहा- ये क्या पढ़ रहे हो? धन कंचन की आस उसने पुनः दोहराया 'कण भर जो माँस खाता है', वह और पाद-पूजन की प्यास इतना कह ही नहीं पाता कि लोगों ने कहा कि गलत जीवित है, पढ़ रहे हो। उसने कहा गलत नहीं बिल्कुल सही पढ़ वह रहा हूँ कि 'कण भर जो माँस खाता है वह सीधा नरक जनता का जमघट देख जाता है।' तुम यहाँ से चले जाओ, तुम्हारा यहाँ कोई अवसरवादी बनता है कार्य नहीं, तुम्हारे पिताजी को आने दो तभी दण्ड मिलेगा- आगम के भाल पर समाज के प्रमुख व्यक्ति ने कहा। और सबने उसे निकाल चूँघट लाता है दिया। कथन का ढंग पिताजी के आते ही सब लोग उनके ऊपर टूट बदल देता है पड़े। तुमने कैसे लड़के को तैयार किया। आपका लड़का था इसलिए हमने कुछ नहीं कहा, इतना पढ़कर आया, झट से फिर भी शास्त्र की छोटी सी बात नहीं समझा पाया। अपना रंग आपके संकोच से हमने कुछ नहीं कहा, नहीं तो सीधा बदल लेता है जेल भेज देते। आज से आप ही शास्त्र बाँचिये, वे आगे गिरगिट। का प्रसंग पढ़ते हैं कि 'कणभर जो माँस खाता है वह (तोता क्यों रोता से) सीधा नरक को जाता है।' पं. जी क्या बात हो गई जिस वक्ता में, धन, ऐश्वर्य, ख्याति, पूजा, लाभ आज आप चश्मा बदलकर आये हैं क्या? नहीं-नहीं | की चाह, लिप्सा रहती है, वह आगम के यथार्थ अर्थ यह ठीक लिखा है, लेकिन इसका अर्थ क्या है? जो | को परिवर्तित कर देता है। जिस प्रकार मौसम से प्रभावित कण भर भी माँस खाता है वह नरक चला जाता है, | होकर के गिरगिट अपना रंग बदलता रहता है, उसी किन्तु जो मन भर खाता है वह स्वर्ग को जाता है। ' प्रकार आजकल के वक्ता भी (असंयमी व्यक्ति) माहौल जैसे सितम्बर 2008 जिनभाषित १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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