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मुनि श्री योगसागर जी की कविताएँ
विद्या के सागर में उफान
आया उफान
अनेकों बार
विद्या के सागर में
और
तट पर
यहाँ वहाँ
बिखरे बीजों में
संयम के अंकुर
उग आये हैं।
विरागता का
परम पावन पवन अनाहत गति से
बहता है
तप का सूर्य
अपनी सहस्र
रश्मियाँ लिये
जगमगाता आता है
सुनम्य प्रकृति के
नन्हें अंकुरों पर ऐसा गहरा
प्रभाव डाला है
कि
श्रद्धा की जड़ें
अन्तस्तल तक
बढ़ती ही गई हैं
और
चारित्र के
कई-कई वृक्ष गगन को चूमने लगे
समय, नियम, योग,
क्षमा और गुप्ति सभी तो यहीं हैं।
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प्रस्तुति:
जीवन उपवन है
यह जीवन
वन नहीं,
है एक उपवन
संजीवनी सी
अमूल्य अनेक
जहाँ से गुजरा
भावनाओं का
पावन पवन
सावन सा लगता है।
आनन्द का सरगम
ये दोस्तो
गम का उद्गम है,
विषयों का है
जहाँ संगम
जिसका
दम मिटाने
एक मात्र है साधन
जो है जिनागम
जिसके अभिगम से
गम निर्गम हो जाता है
और
आनन्द का
सरगम बजने लगता है ।
: रतनचन्द्र जैन
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