Book Title: Jinabhashita 2006 08 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 7
________________ बारहवीं शतियों में इसका पतन हो गया और तदनन्तर एक अस्तु डॉ. जैकोबी के तत्सम्बन्धी गवेषणा के क्षेत्र में छोटे से गौण सम्प्रदाय के रूप में प्राचीन बौद्धधर्म का उसकी | पदार्पण करने के समय तक यह मान्यता बन चली थी कि जन्मभूमि में प्रतिनिधित्व करता हुआ रहता आया है। जैनधर्म बौद्धधर्म से स्वतंत्र है और छठी शती ईसा पूर्व में हुए जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा है, इस मत को किस | वर्द्धमान महावीर इस धर्म के संस्थापक हैं, तथा यह भी कि प्रकार बल मिला, इस बात पर प्रकाश डालते हुए डॉ. | बौद्धधर्म की भाँति जैनधर्म भी तत्कालीन ब्राह्मणधर्म के जैकोबी कहते हैं कि "संस्कृत भाषा एवं प्राच्य विद्या के विरोध में उत्पन्न हुआ एक सुधारक धर्म था। जैकोबी ने आंग्ल पंडितों में सर्वप्रमुख कोलबुक ने जैनधर्म के विषय | अपनी खोजों से यह निर्विवाद सिद्ध कर दिया कि जैनधर्म में सही जानकारी दी थी। उसने स्वयं को उन निराधार | सर्वथा स्वतंत्र एवं अत्यन्त प्राचीन धर्म है। शनैः शनैः 23वें मतवादों से भी मुक्त रखा था, जिनमें भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में | तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की भी कार्य करनेवाले उस काल के विद्वान् सहज ही ग्रस्त हो जाते ऐतिहासिकता स्वीकार कर ली गई और यह भी माना जाने थे। वस्तुतः वह ऐसा समय था जब कार्यकारी प्रतिपत्तियों, लगा कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ही इस परम्परा के प्रथम स्थापनाओं और मतों को लेकर चले बिना काम नहीं चलता | पुरस्कर्ता रहे प्रतीत होते हैं तथा यह कि उसकी प्राचीनता था। जैनधर्म और बौद्धधर्म के ऊपरी प्रत्यक्ष सादृश्य ने ही प्राग्वैदिक काल तक ले जाई जा सकती है।6 उपर्युक्त धारणा को जन्म दिया। होरेस विल्सन जैसे प्रमाणिक | पाद टिप्पणियाँ विद्वान् की तद्विषयक धारणा ने कि जैनधर्म बौद्धधर्म से 1. अंग्रेजी जैन गजट, 1914, पृ. 169 (राजकोट में अपेक्षाकृत बहुत पीछे पृथक् हुआ है, इस मत को आमतौर दिया भाषण) पर प्रचारित कर दिया। परन्तु स्वयं उसके गुरु अल्ब्रेरट वेबर 2. प्रोग्रेस रिपोर्ट, हिन्दू एंड बुद्धिस्ट मोनुमेंट्स, लाहौर ने विल्सन के मत में संशोधन करके बौद्धधर्म में से जैनधर्म 1920, पृ. 12 'के निकलने का समय चौथी शताब्दी ईसापूर्व निर्धारित किया 3. आन युवान च्वांग्स ट्रेवल्स इन इंडिया, लंदन, 1904 भाग 1 पृ. 252 था। निश्चय ही इस संशोधन का कारण यह था कि अशोक वही, दोनों भाग के शिलालेखों में, जो अब पढ़े जा चुके थे, जैन (निर्ग्रन्थ) 5. एच विल्सन, इंडियन बुद्धिज्म, सी. आर. IV, 1 धर्म का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। इसके विपरीत, पृ. 241-281 मैक्समूलर और ओल्डलबर्ग यह मानते थे कि बौद्ध ग्रन्थों के बार्थ, रिलीजन्स आफ इंडिया, पृ. 148-150 निगंठनातपुत्त ही महावीर थे और वह बुद्ध के समसामयिक एलफिन्स्टन, हिस्टरी आफ इंडिया, पृ. 121 थे।1० फ्रांसीसी विद्वान डॉ. गेरीनाट ने वर्द्धमान और गौतम जैन गजट, जनवरी 1914, पृ. 8 कोलबुक मिस. बुद्ध के बीच पाँच भिन्नताओं की ओर विद्वानों की दृष्टि एस्सेज, II, पृ. 276, वेबर-हिस्टरी आफ इंडियन आकर्षित की, यथा दोनों के जन्म-विषयक वर्णन, दोनों की लिटरेचर (1882), पृ. 296-7 जननियों का निधन कैसे हुआ, दोनों के गृहत्याग, ज्ञानप्राप्ति 9. स्मिथ - अशोक, पृ. 192-193 10. मैक्समूलर, दी सिक्स सिस्टम्स आफ फिलास्फी और निर्वाण 1 वस्ततः जैसा कि डॉ. राधाकष्णन ने कथन नेचुरल, ओल्डेन वर्ग-दी बुद्धा रिलीजन किया है, “भारतीय परम्परा तो जैन और बौद्ध-दोनों धर्मों 11. गेरिनाट - दर जेनिस्मस । को सदैव से स्पष्टतया पृथक एवं स्वतंत्र मानती आई है। 12. इंडियन फिलास्फी, भा. 1, पृ. 291 हिन्दू शास्त्रों ने कभी भी उन दोनों को अभिन्न नहीं प्रतिपादित 13. दी वे टु निर्वाण, पृ. 67, किया। उक्त शास्त्रों के साक्ष्य की गेरिनाट, जैकोबी, बहूलर 14. मिस्सलेनियस एसेज, II, पृ. 276 प्रभृति अनेक विद्वानों के अन्वेषणों से पुष्टि होती है।"12 15. सेक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, भा 22 एवं 45 की मोशियो पुशिन का तो विश्वास था कि 'जैन तो एक सशक्त भूमिकाएँ साधुसंघ था जिसका उदय अथवा पुनर्गठन शाक्यमुनि (बुद्ध) ज्योति प्रसाद जैन-जैनिजम, दी ओल्डेस्ट लिविंग के उदय के कुछ काल पूर्व ही हो चुका था। कोलबुक तो रिलीजन (वाराणसी, 1951) इस पुस्तक में जैकोबी की खोजों का तथा उससे आगे क्या बहुत पहले ही यह विश्वास प्रगट कर चुका था कि जैनधर्म प्रगति हुई, उस सबका विवेचन है। बौद्धधर्म का पूर्ववर्ती है, क्योंकि वह प्रायः प्रत्येक पदार्थ में जीव की सत्ता स्वीकार करता है। 4 'पं. सुमेरुचन्द्र दिवाकर अभिनन्दन ग्रन्थ' से साभार अगस्त 2006 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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