Book Title: Jinabhashita 2006 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 14
________________ निर्माण परम्परा में नागर शैली के शिखरमंदिरों के विकास | शिखरों को मजबूत करने की दृष्टि से कार्य किए गए। से पूर्व सर्वप्रथम सपाट छतवाले मंदिर के प्रमाण मिलते हैं । पूरे भारतवर्ष में इनकी संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है। साँची स्तूप के पास स्थित मंदिर, इस श्रेणी की प्रथम उदाहरण माना जाता है, और इस प्रकार के सभी मंदिर सम्पूर्ण भारतवर्ष में संरक्षित स्मारक हैं I किन्तु इस बीच बड़े मंदिर के परकोटे की जीर्णशीर्ण दीवारों, मंदिर के गर्भगृह तथा महामण्डप की दीवारों के उधड़े पलस्तर, टूटते स्तंभ, गिरती हुई छत की ओर ध्यान देना आवश्यक हो गया। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने क्षेत्र की प्रबंध समिति को विशेषज्ञों से सलाह लेकर बड़े बाबा मंदिर के जीर्णोद्धार की योजना बनाने की प्रेरणा दी। मूल प्राचीन मंदिर कब नष्ट हुआ कह नहीं सकते। प्राप्त मूर्तियों तथा भग्नावशेषों से स्पष्ट होता है कि ये सुनोयोजित मुस्लिम आक्रमणों के तहत नष्ट किये गये मंदिर समूह नहीं थे. ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण, उल्लेख, अभी तक अप्राप्त है । भूकंप के प्रभाव व क्षेत्र में आनेवाले कुंडलपुर ग्राम में मंदिर निश्चित रूप से भूकंप से ध्वस्त हुए। अन्यथा मूर्तियों के मुख व अंग-भंग होते, जो मुस्लिम आक्रमणकारियों का हिन्दू बुतों को नष्ट करने का तरीका था। टीले के रूप में यह मंदिर न जाने कितनी शताब्दियों तक पहाड़ी के जंगलों के बीच ध्वस्त पड़ा रहा। इसीलिए यह कुंडलपुर ग्राम अनेक वर्षों तक मंदिरटीला ग्राम से जाना जाता रहा । इसके भाग्य खुले जब 1700 ई. में आचार्य सुरेन्द्रकीर्ति के शिष्य ब्रह्मचारी ने मिसागर ने जैन समाज के श्रावकों के दान व बुंदेलखण्डकेसरी महाराजा छत्रसाल 'शिवा को सराहो सराहो छत्रसाल को ' के सहयोग से यहाँ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया, ओर बड़े बाबा की वर्षों बाद प्राणप्रतिष्ठा हुई। तीन सौ वर्षों में यहाँ अनेक मन्दिर बने, जिनमें वहीं प्राप्त प्राचीन मूर्तियों सहित 200-100 वर्ष पुरानी मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हुईं और मन्दिरों की संख्या 1 से 64 तक जा पहुँची। क्षेत्र का भी विकास हुआ और कुंडलपुर क्षेत्र मध्यप्रदेश के 'तीर्थराज' के रूप में जाना जाने लगा। जीणोद्धार की आवश्यकता 1700 ई. में बड़ेबाबा - मंदिर के निर्माण के पश्चात् काल के प्रवाह में बड़ेबाबा मंदिर की भित्तियाँ जीर्णशीर्ण हुईं, महामण्डप में लगे स्तम्भ टूटने लगे. छत के गिरने का खतरा बढ़ा तथा पलस्तर उधड़ने लगे. समय-समय पर उसमें आवश्यकतानुसार मरम्मत की जाती रही। आचार्य श्री विद्यासागर जी 1976 में जब कुण्डलपुर आए तब उनका ध्यान इस ओर गया। उनकी प्रेरणा से साहू श्रेयांसप्रसाद जैन द्वारा बड़े बाबा मंदिर के जीर्णशीर्ण शिखर का जीर्णोद्धार कांक्रीट सीमेंट का शिखर बनाकर कराया गया। 1980 और 82 में भी तत्कालीन क्षेत्र प्रबंध समिति के द्वारा बड़े बाबा के वंदना मार्ग के द्वारों तथा अनेक मंदिरों के 12 अगस्त 2006 जिनभाषित Jain Education International 1995 में देश के कई ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ, शिल्पकार, भूगर्भशास्त्री, वास्तुविशेषज्ञ आचार्य श्री के निमंत्रण पर कुण्डलपुर पधारे। केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के श्री ए. के. सिन्हा भी, आचार्य श्री विद्यासागर जी से इस विषय में मेरे साथ मिलने गए थे। आचार्यश्री ने पुरातत्त्व विभाग को उचित सुझाव देने को कहा था ओर जैन समाज की मंदिर के जीर्णोद्धार करने की भावना से अवगत कराया था। श्री नीरज जैन, सतना भी उस चर्चा के समय वहाँ उपस्थित थे। विशेषज्ञों की सलाह के अनुरूप तथा प्रख्यात वास्तुविद् आर. पच्चीकर के निर्देशन में बड़ेबाबामंदिर को उसी स्थान पर मण्डप, महामण्डप एवं सिंहद्वारयुक्त भव्य मंदिर में परिवर्तित करने की योजना पर विचारा हुआ, और इस पर क्रियान्वयन प्रारम्भ हुआ। 31 मई 95 को सिंहद्वार हेतु शिलान्यास किया गया । इसी योजना में गर्भगृह का विस्तारीकरण भी सम्मिलित था । इस योजना को कार्यरूप देने के लिए तथा विशाल सिंहद्वार निर्माण के लिए, पर्वत के निरंतर क्षरण के चलते आवश्यक था कि नींव मजबूत की जाये, अतः पत्थरों की बहुत ही मजबूत नींव बनाई गयी जो सुंदर भी थी। इससे अनेक लोगों को यह भ्रम हुआ कि यही सिंहद्वार है । वास्तविकता यह थी कि वह नींव की दीवार है जो केवल पत्थरों की सपाट दीवार न होकर एक मेहराबदार आकर्षक आकार है । इसके मेहराबों के बीच के स्थानों का उपयोग, छोटे-छोटे कमरों के रूप में साधना हेतु किया जा रहा है। नवमंदिरनिर्माण की आवश्यकता व प्रस्ताव इस समय तक कभी भी बड़े बाबा के स्थानांतरण अथवा नवमंदिरनिर्माण की बात नहीं उठी थी । किन्तु इस बीच 1997 में जबलपुर - दमोह में आये भूकंप के झटकों से बड़ेबाबामंदिर की दीवारों में आयी दरारों ने जैन समाज को चिंतित किया । क्षतिग्रस्त मंदिर से बड़े बाबा की मूर्ति को भी क्षति पहुँच सकती है। नींव के निर्माण में आयी अनेक तकनीकी परेशानियों के कारण भी पूरी योजना पर पुनर्विचार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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