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चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिरि, पंचबालयति मंदिर : 0731-2570689, ब्र. जिनेश मलैया भट्टारक कोठी, जि. दतिया (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : | :094253-51764 07522-262222
| 46. ऐलकश्री संपूर्णसागर जी। 41. आर्यिकाश्री सत्यमति जी, आर्यिकाश्री सकलमति। । चातुर्मास स्थली : श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर,
चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन आश्रम, सागवाड़ा, धामपुर, जि. बिजनौर (उ.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : अनिल डूंगरपुर (राजस्थान)। सम्पर्क सूत्र : जया कोठारी : जैन (अध्यक्ष) : 9897743075, सुभाष जैन : 9897002966-252700
20342 42. ऐलकश्री दयासागर जी।
47. ऐलकश्री नम्रसागर जी। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन महावीर विहार, | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, डेरा स्टेशन रोड, गंजबासौदा, जि. विदिशा (म.प्र.)। सम्पर्क पहाड़ी, पुराना पन्ना नाका, छतरपुर (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्रः महावीर विहार : 07594-220464, सतीश जैन : सूत्र : 07682-244915, संजीव बांसल : 248942, 221515
98267-61313 43. ऐलकश्री निशंकसागर जी।
48. क्षुल्लकश्री ध्यानसागर जी। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, जवरीबाग, | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, उस्मानपुरा, नसिया, इंदौर (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : महेन्द्र जैन अहमदाबाद(गुजरात)। सम्पर्क सूत्र : कार्यालय : 079(संयोजक): 98270-97163, राकेश जैन (सह 27559084 संयोजक) : 9826213535, कार्यालयः0731-2460989, | 49. क्षुल्लकश्री पूर्णसागर जी। 2466274
चातुर्मास स्थली : श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, 44. ऐलकश्री उदारसागर जी।
मझौली, जि. जबलपुर(म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : प्रसन्न चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, फलहोड़ी, | जैन : 07624-244845, नेमचंदजी : 244475 बड़ागाँव (धसान), जि. टीकमगढ़ (म.प्र.)। सम्पर्क | 50. क्षुल्लकश्री नयसागर जी। सूत्र : हुकुमचंद हटैया : 07583-257037
चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन पंचायती बड़ा मंदिर, 45. ऐलकश्री सिद्धांतसागर जी।
गाँधी रोड, झाँसी (उ. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : संतोष कुमार चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मंदिर, जैन : 94159-43290, अजितकुमार जैन : 94150ग्रेटर विजयनगर, श्री दिगम्बर जैन पञ्चबालयति मंदिर, 04976 बॉम्बे हॉस्पिटल के पास, इन्दौर (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : आचार्यश्री से दीक्षित - 79 मुनिश्री, 165 आर्यिकाएँ, प्रियदर्शनी जैन (अध्यक्ष) : 98260-80490, 8 ऐलकश्री, 5 क्षुल्लकजी = 257 कुल।
जो सज्जन अपने गुणों के द्वारा तीनों लोकों को आनंदित किया करते हैं, उनको देखकर स्वभाव से दुष्ट दुर्जन मनुष्य क्रोध करते हैं। The virtuous ones who, through their virtues add to the bliss of three lokas, rouse anger among those who, by nature, are wicked. क्रोध अनेक पापों का जनक है; उसका परित्याग करके जीवदया में प्रवृत्त होना चाहिए। Anger sires several sins. It must be renounced and kindness towards all the living beings adopted.
वीरदेशना
30 अगस्त 2006 जिनभाषित
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