Book Title: Jinabhashita 2006 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 12
________________ 'सागारधर्मामृत' में भी कहा गया है कि न्यायपूर्वक | ही, देश की भी इज्जत बढ़ेगी। भारत एक धर्मप्राण देश है। धन कमानेवाला, गुणानुरागी, हितमितप्रियभाषी, विवेकी, धर्म वही है, जो धारण किया जाता है। 'चारित्तं खलु धम्मो' सत्संगति-अनुरागी और जितेन्द्रिय ही श्रावक कहलाने का | के सूत्र में यही ध्वनि निहित है। नैतिक जागरण के लिए पुनः पात्र है। आचार्य कुन्दकुन्द ने दान और पूजा को श्रावक का | एक सुनियोजित अभियान चलाया जाना चाहिए। शराब तथा मुख्य कर्तव्य बताया है। पण्डित टोडरमलजी ने अपने | अन्य मादक द्रव्यों के प्रयोग, द्यूत-क्रीडा, जीवहत्या, शिकार, श्रावकाचार में लिखा है - "गृहस्थ के घर की शोभा धन से | मिलावट, भ्रष्टाचार आदि बुराइयों से अपने देश को एक और धन की शोभा दान से है। ---- कोई भी श्रावक किसी | आदर्श श्रावक बनकर ही बचाया जा सकता है। मजदूर से कसकर काम न ले, उसकी पूरी मजदूरी दे और | साधु-संगति से ही सज्जन और सदाचारी नागरिक कृपणता त्याग कर दुःखी-भूखों को सदा दान दे।" उन्होंने | बनने का मार्ग प्रशस्त होगा, ऐसा हमारा विश्वास है। एक जैन गृहस्थ के तीन चिह्न बताए हैं - (1) जिन-प्रतिमा के | अच्छा गृहस्थ या आदर्श श्रावक एक ढुलमुल साधु से लाख दर्शन किए बिना भोजन न करे, (2) रात्रि में न खाए और | दर्जे बेहतर है, करल काव्य के इस कथन से भी हम पूरी (3) अनछना पानी न पिये। आवश्यक है कि श्रावक का | तरह सहमत हैं - लक्ष्य तो ऊँचा हो ही, उसके लिए उपाय भी अच्छे अपनाये यो गृही नित्यमुधुक्तः परेषां कार्यसाधने। जायें। जैनदर्शन साध्य-साधन दोनों की पवित्रता पर समान स्वयं चाचारसम्पन्नः पूतात्मा सा ऋषेरपि।। रूप से जोर देता है। आइए, हम पहल स्वयं अपने से शुरू करें। स्वयं श्रावक या गृहस्थजन यदि उपरिलिखित आचार का | एक आदर्श श्रावक बनें। पालन करने लगें, तो इससे उनका आत्मविकास तो होगा 'चिन्तनप्रवाह' से साभार शास्त्र बने शस्त्र धरमचन्द्र वाझल्य खूटे से बँधे हुए पशु की भाँति इस संसार असार में, निस्सार जीवन जीते रहे हम। न जाने कितने युग परिवर्तन देखे, किन्तु निस्सारता का बोध कहीं गहरे पैठ नहीं पाया अब तक। तोते की तरह समयसार आता है समयसार शास्त्रों में खोजते-खोजते शास्त्रों को शस्त्र बना डाला है, किंतु एक निर्गन्थ ने भीतर ही रमण कर प्राप्त कर लिया है इसे और हम देखते रहे बस ! मोहवश निस्सार कर दिए जन्म सब। ए-92,शाहपुरा, भोपाल 10 अगस्त 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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