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मुझे भी आमंत्रित किया गया । क्षेत्र समिति का प्रतिनिधि मंडल जिलाधिकारियों तथा राज्य शासन से अनेक बार मिला। अंतिम बार 5 जनवरी 2006 को प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री को पुनः अपनी व आचार्यश्री की भावना से अवगत
कराया।
मा. श्री शिवराजसिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश ने जिला अधिकारियों व क्षेत्रसमिति, दोनों को कानून का उल्लंघन किये बिना कोई मध्यममार्ग निकालने व केन्द्र सरकार व भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक से भी चर्चा करने की सलाह दी । तदनुरूप जैन प्रतिनिधि मंडल ने जनवरी के तृतीय सप्ताह में महानिदेशक केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय से मिलने का समय मांगा था और इस आशय की जानकारी श्री के. के. मोहम्मद से मिलकर पत्र द्वारा दी और पुरातत्त्व विभाग के सहयोग की भावना जताई। इससे पूर्व दिसम्बर में केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के दावे को सही मानते हुए (जो बाद में झूठा ही सिद्ध हुआ), क्षेत्र समिति ने उन मूर्तियों को भी, पुरातत्त्व विभाग को, बावजूद आचार्य श्री की भावना के विरुद्ध इसलिये दिलवाया, क्योंकि जैन समाज पुरातत्त्व विभाग की उपेक्षा नहीं करना चाहता था और न ही छोटे विवादों में उलझकर ऊर्जा व समय नष्ट करना। सामने था बड़ा उद्देश्य
बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण का । किन्तु उसका दिन 16 जनवरी तय नहीं हुआ था । निश्चित रूप से 3 फरवरी से पहले तो नहीं। वह तो कारण व निमित्त ऐसे बन गये कि सब कुछ अप्रत्याशित रूप से हुआ।
बड़े बाबा के स्थानांतरण का निर्णय 15 जनवरी 2006 बड़े बाबा का काज निराले ढंग से होना था। इसलिए होनी को कुछ और ही मंजूर था । अनेक लोगों ने प्रश्न किया
कि जब 4 वर्ष से शांतिपूर्ण निर्माण कार्य चल रहा था, तब क्या जल्दी थी, थोड़ा और रुक जाते । विधिवत् भी यह कार्य किया जा सकता था, इसलिए जरूरी है यह पृष्ठभूमि जानना कि क्योंकर 15 से 17 तक होने वाले जप अनुष्ठान के स्थान पर 16 जनवरी को अप्रत्याशित रूप से मूर्ति स्थानांतरित करने का निर्णय लेना पड़ा।
| छावनी बना देने की धमकी दे रहे हैं। साथ ही कह रहे हैं कि इसे अयोध्या नहीं बनने दूँगा। पुलिस चौकी स्थापित करूँगा । कांची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी हो गयी, किसने क्या कर लिया ? आदिनाथ भगवान की मूर्ति भी शंकर भगवान की है। और विवादास्पद है आदि बातें कर रहे हैं। मैं आश्चर्यचकित रह गई । एक जिम्मेदार अधिकारी के मुख से, जिसके सर पर जिले की कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा प्रशासन चलाने की जिम्मेदारी थी, के द्वारा वर्तमान में भारत के महानतम तपस्वियों में से एक दिगम्बर जैन साधु श्री आचार्य विद्यासागर जी के सम्मान में ऐसे गैरजिम्मेदार बयान अविवादास्पद विषय को विवाद की ओर ले जाने के थे, तो कितने खतरनाक परिणाम हो सकते थे । यह कल्पना करना कठिन नहीं है ।
मैंने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए फोन पर ही उन्हें कहा कि आप जैसा जिलाधीश कहते हैं, वैसा करिये, कानून हाथ में न लें, निर्माण कार्य कुछ दिन बन्द करने में कोई हर्जा नहीं है । बन्द कर दें और इस आशय का पत्र लिखकर उन्हें दे दें । निर्माण व क्षेत्र समिति ने ऐसा ही किया, स्थिति सुधर गई थी।
किन्तु एक-दो घंटे के बाद वीरेश सेठ का दुबारा फोन आया कि एक दुर्घटना हो गई है। जिलाधीश के रुख से एवं पुलिस चौकी स्थापित करने की बात को लेकर आक्रोशित जैन युवकों ने जिलाधीश की गाड़ी के नीचे लेटकर अपना विरोध प्रदर्शन किया और जिलाधीश से पुलिस बल हटाने के लिए कहा, जिससे धार्मिक कार्य व जप में विघ्न न हो।
इस बीच दल के साथ गये पत्रकार का कैमरा उत्तेजित जैन युवकों ने छीन लिया था। शायद इसके साथ छीनाझपटी भी हुई। इन युवकों को वीरेश सेठ ने जोर से फटकार कर किसी तरह स्थिति सँभाल कर जिलाधीश से माफी माँगते हुए उन्हें सुरक्षित निकालने के प्रबन्ध किये। जिलाधीश अत्यन्त आक्रोश में दमोह लौट गये। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने उन्हें उत्तेजित कर दिया था । पत्रकार व प्रशासन के साथ यह घटना निश्चित रूप से निन्दनीय व गैरजरूरी थी। उसकी जितनी निन्दा की जाये कम है । किन्तु जिलाधीश जैसे जिम्मेदार व्यक्ति की भड़काऊ बयानबाजी किसी शांतिप्रिय व्यक्ति को भी विचलित व अस्थिर कर सकती थी, फिर यह तो धार्मिक भावनाओं में बह रहे युवकों का समूह था । जिलाधीश के इस कदम ने भय की भावना जैनसमुदाय
मैं उस दिन उज्जैन में थी, रविवार, 15 जनवरी स्वदेशी मेला, उज्जैन के महिला सम्मेलन में भाग लेने के लिए। अचानक कुंण्डलपुर में श्री वीरेश सेठ का फोन आया कि श्री राघवेन्द्र सिंह, जिलाधीश, दमोह दल-बल सहित 1015 गाड़ियाँ लेकर कुंडलपुर पहाड़ पर चढ़ आये हैं और तुरंत मंदिर निर्माणकार्य बंद करने अन्यथा कुंण्डलपुर को के मन में भर दी और ऐसा लगा कि वे वहाँ पुलिस चौकी
14 अगस्त 2006 जिनभाषित
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