Book Title: Jinabhashita 2004 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ सर्वनाश का साधक क्रोध क्रोध अत्यधिक अनिष्टकारी है। इस बात को सभी धर्म एवं मान्यताओं ने स्वीकार किया है। इसलिए क्रोध को वश में करना प्राथमिक आवश्यकता समझनी चाहिए। क्रोध के प्रभाव से प्राणी बुद्धि, विवेक, ज्ञान, शक्ति सब कुछ खो देता है । फिर तो उसके द्वारा जो भी कार्य होता है वह सर्वनाश करने वाला होता है । क्रोध को जीतने के लिए मनीषियों ने अनेक उपाय बताये हैं। यहाँ कुछ सरल अनुभूत प्रयोग बताए जा रहे हैं । आस्थापूर्वक अभ्यास करने से कुछ ही समय में निश्चित रूप से क्रोध की प्रवृति हटकर आपकी प्रकृति ही बदल जायेगी। क्रोध जीतने के उपाय 1. क्रोध आने की सम्भावना होते ही अपने आप को उत्प्रेरक व्यक्ति से दूर हटाकर एक घंटे के लिए पूर्णत: एकान्त में बैठ जाइये । 2. क्रोध आने पर अपना चेहरा आइने में देखिये और सोचिये कि आप कितने बुरे लग रहे हैं। 3. यह प्रतिज्ञा लेवें कि किसी पर क्रोध करना है तो एक घंटे या एक दिन बाद करेंगे। 4. यह प्रतिज्ञा करें कि किसी पर क्रोध करेंगे तो बाद में उससे अवश्य क्षमायाचना या मृदुप्रिय व्यवहार करेंगे भले ही प्रतिपक्षी की गलती क्यों न हो। 5. यह प्रतिज्ञा करें कि जब किसी पर क्रोध करेंगे तो बाद में उस दिन उस समय के पश्चात् के भोजन में अपनी अति प्रिय वस्तु का त्याग करेंगे। जैसे नमक, चीनी, दूध, दही, घी, तेल, सब्जी, दाल, फल इत्यादि । यह दंड है 1 6. बार- बार क्रोध करने का स्वभाव ही बन गया है तो दोपहर के भोजन के बाद एक घंटे मौन रहने का अभ्यास करें। जनसम्पर्क से दूर रहें। संकेत, इशारे, हूँ, हाँ, कुछ नहीं करना है। इस समय अपनी इस बुरी आदत की निन्दा, आलोचना, पश्चाताप, कुप्रभाव, लोक व्यवहार, जनप्रियता की हानि आदि के सम्बम्ध में चिन्तन करें। 7. क्रोध आया है या आ रहा है तो अपने रूचिकर विषय की पुस्तक पढ़ने लग जावें अथवा कुछ लेखन कार्य Jain Education International ब्र. शान्तिकुमार जैन करने लग जावें ताकि उपयोग एवं मस्तिष्क की क्रिया अन्यत्र होने लग जावे । 8. क्रोध में मधुर संगीत, भजन सुनें कम से कम आधे या एक घंटे तक टी.वी. नहीं देखें। 9. क्रोधी को हंसकर टाल देवें, बोल देवें कि बाद में बात करेंगे, अन्यत्र चले जावें । उसकी कोई बात का प्रत्युत्तर नहीं देवें । आरोपों को अनसुना कर देवें । 10. क्रोध कभी भी निरन्तर अधिक समय तक एक सी तीव्रता के साथ नहीं ठहर सकता, अतः समय का व्यवधान ही सरल उपाय है। उपरोक्त क्रियाओं से कुछ ही दिनों में क्रोध आने की बारी कम होती चली जायेगी। सबको आप बदले-बदले नजर आयेंगे। प्रिय लगने लगेंगे। क्रोध से होने वाली हानियाँ 1. चिकित्सा विज्ञान कहता है कि इससे हाईब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, डाइबिटीज, पाचन यंत्र में खराबी, ब्रेनहेमरेज, लकवा, केंसर आदि घातक बीमारियाँ हो सकती है। 2. क्रोध में लिये गये निर्णय सर्वदा गलत एवं विनाशकारी ही होते हैं । अर्थहानि, द्रव्यहानि, क्षेत्रहानि, भाव-भावना में विकृति निश्चित रूप से हो जाती है । 3. अपने क्रोध के पूर्व परिणामों से शिक्षा लेवें । तभी विश्वास कर पायेंगे कि वे सर्वदा अनिष्टकारी ही हुये हैं । 4. आप दूसरे किसी के भी क्रोध को अच्छा नहीं मान पाते तो फिर आपका क्रोध अन्य को भी नहीं सुहायेगा । लोक आचरण, सम्पर्क एवं प्रेम वात्सल्य नष्ट हो जाता है। 5. जिस व्यक्ति पर आपने क्रोध किया, अवसर मिलने पर वह आपका भारी नुकसान अवश्य करेगा । 6. क्रोध एक महारोग है । क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, बैर, विरोध, कलह, झगड़ा, विसंवाद, नाराजगी, रूठना, वैमनस्यता आदि क्रोध के ही कथंचित एकार्थवाची शब्द हैं। इनसे रूखापन, छिछलापन, चिड़चिड़ापन, क्रूरतावाला स्वभाव ही बन जाता है। 7. तीव्र क्रोध का बराबर होने से व्यक्ति में एकाकीपन, अन्तर संघर्ष, हताशा, निराशा, उदासी, हैरानी, परेशानी, घुटन अक्टूबर 2004 जिनभाषित 11 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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