Book Title: Jinabhashita 2004 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 24
________________ पाकिस्तान के जैन मंदिर सुधीर जैन स्वाधीनता के पूर्व जब पाकिस्तान भी भारत का ही | इसकी वास्तुकला और स्थापत्य बहुत ही सुंदर है, जो एक अंग था तब उस क्षेत्र में अनेक जैन मंदिर स्थित थे। समीपस्थ राजस्थान की मंदिर निर्माण शैली से प्रभावित हालांकि पाकिस्तान क्षेत्र में मुसलमान, सिंधी और पंजाबी था। मंदिर के अंदर सीलिंग में सुंदर चित्रकारी की गई थी। लोगों की बहुतायत थी, लेकिन थोड़ी संख्या में जैन व्यापारी गोरी में एक आश्रम भी था जो धीरे-धीरे एक जैन तीर्थ के भी वहाँ के विभिन्न शहरों में विद्यमान थे। विशेषकर रूप में प्रसिद्ध हो गया था। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में राजस्थान से लगे हुये सिंध प्रांत में तो जैन धर्मावलम्बियों सीलिंग में परियों द्वारा चित्रकारी की गई थी और आज भी की संख्या काफी थी और इसी क्षेत्र में आज भी अनेक परियाँ वहाँ आती हैं। विशाल जैन मंदिर खण्डित अवस्था में विद्यमान हैं। बोधेसर नामक शहर नगरपारकर से 3 किलोमीटर सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में सबसे अधिक जैन | दक्षिण-पश्चिममें करूनझर पहाड़ियों के नीचे बसा है। पहले मंदिर आज भी देखे जा सकते हैं। हालांकि इनमें से किसी कभी यह समृद्ध शहर था और बोधेसर नगरी के नाम से भी मंदिर में कोई पूज्यनीय मूर्ति नहीं है और न ही इनकी | जाना जाता था। यहां तीन प्राचीन जैन मंदिरों के अवशेष कोई देखभाल हो रही है। ऐसी संभावना है कि सन् 1947 | विद्यमान हैं जो सन् 1375 और 1449 में बनाये गये थे। में हुए भारत-पाक विभाजन के समय सिंध प्रांत से भारत | इनमें से दो मंदिर कंजूर और रेडस्टोन द्वारा बनाये गये थे. आते समय जैन धर्मावलम्बी अपने साथ पूज्यनीय मूर्तियाँ | जो अब जानवरों को रखने के उपयोग में लाये जाते हैं। भी मंदिरों से उठाकर ले आये होंगे। इसीलिए पाकिस्तान तीसरा मंदिर जो एक बड़े चबूतरे के ऊपर बना है वह के इन जैन मंदिरों में अब कोई मूर्तियाँ नहीं हैं। सबसे सुंदर था लेकिन अब यह उपेक्षित रहने से, खण्डित सिंध प्रांत के थारपारकर जिले के नगरपारकर तालुका होता जा रहा है। में जैन मंदिरों के सबसे अधिक भग्नावशेष पाये जाते हैं। नगरपारकर से लगभग 24 कि.मी. दक्षिण में वीरवाह नगरपारकर तालुका में इसी नाम का मुख्य शहर 24° 21° शहर स्थित है। इससे लगी हुई पुरानी बस्ती परीनगर में उत्तरांश तथा 70° 47° पूर्वांश पर छोटी पहाड़ियों की तलहटी अनेक जैन पुरावशेष अभी भी विद्यमान हैं। परी नगर में बसा है। ऐसा कहा जाता है कि बहुत पहले यह क्षेत्र पांचवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था और समृद्ध और घनी समुद्र का भाग था। जिसे पार करना पड़ता था, इसीलिये आबादी वाला कस्बा था। लेकिन बारहवीं शताब्दी में यह इसे पारकर कहा जाने लगा। यह पूर्व में भारत के जोधपुर नष्ट होने लगा। अब यहाँ केवल खण्डहर रह गये हैं। इन्हीं (राजस्थान) से जुड़ा रहा है और पहले यहाँ के व्यापारी खण्डहरों के बीच एक छोटा जैन मंदिर शेष खड़ा है। जैन थे जो जोधपुर और जैसलमेर से संबंधित थे। सफेद संगमरमर के खम्भों से बने इस मंदिर की नक्कासी पाकिस्तान के पाँच प्रमुख प्रसिद्ध जैन मंदिरों में से सुंदर है। इस मंदिर का एक बहुत ही सुंदर संगमरमर का तीन बोधेसर में, एक गोरी में तथा एक बीरवाह में है। नक्कासीदार पैनल करांची म्यूजियम में प्रदर्शित है। नगरपारकर तालुका के इस्लामकोट के समीप गोरी मंदिर __नगरपारकर शहर के मध्य बाजार में भी एक जैन सबसे अच्छा माना जाता रहा है। हालांकि पुराना हो जाने, मंदिर स्थित है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार और भीतरी खम्भों ब्रिटिश मिलिट्री अभियान के दौरान आग लगजाने और पर भव्य नक्कासी है तथा मंदिर के अंदर दीवारों पर सुंदर 26 जनवरी 2001 को आये भूकंप के कारण यह मंदिर मूर्तियां एवं चित्रकारी अंकित है। काफी क्षतिग्रस्त हो गया है। फिर भी यह अन्य मंदिरों की - जिस तरह भरत में नालन्दा प्रचीन काल में बौद्ध धर्म अपेक्षा काफी अच्छी स्थिति में है। ऐसा माना जाता है कि का प्रमुख केन्द्र रहा है, उसी प्रकार पाकिस्तान में तक्षशिला सोधा काल के स्वर्णिम दिनों में सन् 1376 के आस-पास भी एक प्रमुख बौद्ध केन्द्र रहा है। सम्राट अशोक ने यहां इस मंदिर का निर्माण हुआ। 38 मीटर लम्बा तथा 15 अनेक बौद्ध स्मारक, स्तूप, मंदिर, विद्या केन्द्र बनवाये थे। मीटर चौड़ा यह मंदिर संगमरमर से बना हुआ है और कालान्तर में जैन धर्म का भी इस क्षेत्र में काफी प्रचार 22 अक्टूबर 2004 जिनभाषित Jain Education International: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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