Book Title: Jinabhashita 2004 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 31
________________ समाचार आचार्यश्री द्वारा रचित ग्रंथ 'मूक माटी' | महाराज के सानिध्य में कटंगी से पधारे ब्र. संजीव भैया पर हो रहे शोध कार्य एवं पन्द्रह अन्य विद्वत वर्ग के निर्देशन में 13 अगस्त से 22 आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित महाग्रंथ 'मूक माटी' | अगस्त 04 तक विशाल शिक्षण शिविर संपन्न हुआ। शिविर पर लगातार शोध कार्य हो रहे हैं। अभी तक लगभग 32 में 2100 शिविरार्थियों ने छहढ़ाला/ तत्त्वार्थसूत्र/ द्रव्यसंग्रह। व्यक्ति इस महाग्रंथ पर पी.एच.डी. कर चुके हैं। और वर्ष बालबोध विभिन्न विषयों पर मनोयोग से ज्ञानार्जन किया। 2004 में 3 शोधार्थियों ने मूकमाटी पर अपना शोध प्रबंध प्रतिदिन सुबह मुनि श्री के उपदेश लाभ सभी शिविरार्थियों पूरा किया है। जैनाचार्य श्री विद्यासागर महाराज सिर्फ को प्राप्त हुआ एवं रात्रि में विद्वत वर्ग द्वारा विभिन्न विषयों अध्यात्मिक संत ही नहीं वे साधक, चिंतक, विचारक, पर व्याख्यान हुआ। तत्त्ववेत्ता, युग पुरूष हैं। आपके द्वारा रचित मूकमाटी ग्रंथ त्रिदिवसीय पाठशाला शिक्षण प्रशिक्षण एवं इस समय शोधार्थियों के लिये एक शोध का विषय बन संगोष्ठी समारोह गया है। पूरे भारत में विभिन्न विश्वविद्यालयों से मूकमाटी लगभग 90 वर्ष पूर्व पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी ने जो ग्रंथ पर शोध किये जा रहे हैं। मूकमाटी ग्रंथ जिसमें दर्शन जैन पाठशालाओं के माध्यम से जैन दर्शन पढ़ाने की अलख और आध्यात्म की जटिलतम ग्रंथियों को सहज सरल रूप जगाई थी वह धीरे-धीरे लुप्त हो गई है। उस अलख को में खोलकर रख दिया जाता है। आचार्य श्री के साहित्य में जगाने के दर्शन जैसीनगर नामक छोटे ग्राम में त्रिदिवसीय प्राचीनता, अर्वाचीनता, आध्यात्मिकता, सार्वभौमिकता, पाठशाला शिक्षण प्रशिक्षण एवं संगोष्ठी समारोह में हुए। परंपरागत दार्शनिक चिंतन की गहराई है। अहिंसा की यह शिविर पूज्य मुनिद्वय श्री 108 निर्णयसागर जी महाराज गरिमा, महिमा आयुर्वेद की महत्ता, प्रकृति का विश्लेषण एवं अजितसागर जी महाराज तथा पू. ऐलक 105 श्री ऐसे अनेक विषय हैं जो लोक जीवन से जुड़े हैं। इसलिए निर्भयसागर जी की प्रेरणा से उनके सान्निध्य में 5 सितम्बर इस ग्रंथ पर लगातार विभिन्न विश्वविद्यालयों से पी.एच.डी. 2004 से 5 सितम्बर 2004 तक सानंद सफलतापूर्वक कार्य हो रहे हैं। वर्ष 2004 में मूक माटी ग्रंथ पर 3 शोधार्थियों | सम्पन्न हुआ। इस शिविर में 300 शिक्षक एवं शिक्षिकाओं ने अपने शोध प्रबंध पूरे किये है। अब्दुल्लागंज रायसेन से | ने भाग लिया। मुनि श्री निर्णयसागर जी महाराज ने श्रीमती मीना जैन ने 'मूकमाटी' का शैली परक अनुशीलन | परिचयोपरांत प्रथम सत्र में संगोष्ठी का अर्थ एवं प्रयोजन विषय लेकर अपना शोध प्रबंध बरकतउल्ला विश्वविद्यालय प्रतिपादित करते हुए जैन पाठशालाओं के शिक्षकों एवं भोपाल से पूरा किया हैं। हिंदी महाकाव्य परंपरा में 'मूक | विद्यार्थियों की समस्या पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि माटी' का अनुशीलन शीर्षक से डॉ. श्रीमती अमिता जैन, | आजकल मां-बाप लाड़-प्यार में बच्चों को बिगाड़ देते हैं। नई दिल्ली ने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से | उनमें आत्मतत्त्व के प्रति श्रद्धान नहीं होता है। तथा दूसरे पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। आचार्य विद्यासागर जी माता-पिता शिक्षक हैं। छोटी-छोटी सी बातें बच्चों को के साहित्य में उदान्त मूल्यों का अनुशीलन विषय पर डॉ. शिक्षक किस तरीके से समझायें इसका उदाहरण देते हुए रश्मि जैन, बीना, सागर ने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय उन्होंने बताया कि चमड़े की वस्तुओं का उपयोग नहीं सागर से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। करना चाहिये क्योंकि इसमें त्रस जीव पैदा होते हैं। तथा "देशबन्धु जबलपुर से साभार त्रस जीवों की हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है। बच्चों को बैठने खड़े होने का अनुशासन सिखायें एवं प्रार्थना करायें। अशोकनगर में विशाल शिक्षण शिविर संपन्न देखकर चलने और देखकर बैठने के पीछे अंहिसा एवं जीव-दया का कारण समझायें। 5 वर्ष से 18 वर्ष तक के लौकिक शिक्षा विद्वान बनाती है पर विवेकवान बनने बच्चों को प्रज्ञा एवं उम्र के अनुसार दो ग्रुप बना लेना के लिए उसे धर्मज्ञान की भी आवश्यकता है। इसी लक्ष्य चाहिये। को लेकर आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के संघस्थ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज एवं मनि श्री भव्यसागर जी सामान्य ज्ञान की बातें भी बताना चाहिये। धर्म की अक्टूबर 2004 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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