Book Title: Jinabhashita 2004 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ जैन लॉ की आधारभूत पुस्तकें 'भद्रबाहु संहिता, अर्हनीति इन्द्रनन्दी जिन संहिता, वर्धमान नीति इत्यादि-इत्यादि हैं'। अन्य राज्यों के अल्पसंख्यक आयोग द्वारा अन्य अल्पसंख्यकों को जो अब तक लाभ दिए हैं वे जैन अल्पसंख्यक समुदाय को प्राप्त हों इस हेतु विवेकपूर्वक अपनी माँग राज्य सरकार एवं दी नेशनल कमीशन फार माईनोरिटीज एक्ट 1992 के तहत पुरजोर से उठानी होगी। जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया जाना उनका संवैधानिक अधिकार, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 में दिए हैं से प्राप्त हुए हैं, जिसके अनुसार जैन धर्म और संस्कृति की रक्षा संविधान के तहत् हो सकेगी। जैन समुदाय द्वारा स्थापित, संचालित शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ाई करने एवं कराने के लिए उन्हें भी स्वतंत्र अधिकार प्राप्त होंगे, सरकार इन पर कोई अंकुश नहीं लगा सकती। इन पर नियंत्रण के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकती, अर्थात् सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहेगी। जैन शैक्षणिक संस्थाओं में 50 प्रतिशत सीटें जैन समुदाय के छात्रों के लिए आरक्षित होगीं। जैन शैक्षणिक संस्थाओं में जैन धर्म की शिक्षा भी नैतिक शिक्षा के आधार पर पाठयक्रमों में शामिल की जा सकेगी। अनुसूचित जाति या जनजाति या पिछड़ी जाति को आर्थिक आधार पर संरक्षण देने की जो विचारधारा चल रही है, उसमें जैन समुदाय का कोई विरोध नहीं है। जैन समुदाय ने अपने लिए इस प्रकार के आरक्षण की कभी कोई माँग नहीं रखी है। जैन समाज संतुष्ट है, कि उन्हें अन्य धर्मों के समान संरक्षण और अधिकार प्राप्त है। अल्पसंख्यक आयोग जो भी सिफारिश या माँग, समयसमय पर जैन अल्पसंख्यकों हेतु या सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए करता है तो वे उनकी संतुष्टि हेतु पर्याप्त होंगी। जैनियों के अल्पसंख्यक घोषित होने का राजनैतिक पहलू किंचित मात्र भी नहीं है। वस्तुतः लाभ अर्जित करने हेतु जैन समुदाय ने यह आरक्षण कभी नहीं माँगा, दानवीर भामाशाह के वंशज समृद्ध एवं सम्पन्न हैं, वे केवल अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा चाहते हैं एवं सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखते हैं। अतः हमारा कर्त्तव्य है कि हम भ्रम पैदा न करें, न ही जनता की आकांक्षाओं को उभारें । राज्य के अल्पसंख्यक 20 अक्टूबर 2004 जिनभाषित Jain Education International आयोग को अपने विधि सम्मत अधिकारों की प्राप्ति हेतु प्रतिवेदन द्वारा सुझाव देवें और उनके द्वारा जारी की गई अनुशंसाओं को क्रिर्यान्वित कराने में सशक्त प्रयत्न करें। कानून द्वारा प्रदत्त संरक्षणों द्वारा अपनी धार्मिक संस्थाओं, ट्रस्टों, तीर्थस्थलों इत्यादि पर कानूनी प्रक्रिया द्वारा प्राप्त करना एवं नियंत्रण करना तथा उनके सुरक्षित रखरखाव हेतु प्रयासरत रहना । अल्पसंख्यक जैन समुदाय बनाम संवैधानिक सुरक्षा कवच संवैधानिक कवच जैन समुदाय के अल्पसंख्यक घोषित होने से संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 के अनुसार जैन समुदाय धर्म, भाषा, संस्कृति की रक्षा संविधान में उपबंधों के अंतर्गत हो सकेगी। * जैन धर्मावलम्बियों के धार्मिक स्थल, संस्थाओं, मंदिरों तीर्थक्षेत्रों एवं ट्रस्टों का सरकारीकरण या अधिग्रहण आदि नहीं किया जा सकेगा, अपितु धार्मिक स्थलों का समुचित विकास एवं सुरक्षा के व्यापक प्रबंध शासन द्वारा भी किए जाएंगे। समुदाय द्वारा संचालित ट्रस्टों की सम्पत्ति को, किराया नियंत्रण अधिनियम से भी मुक्त रखा जाएगा, जिससे मंदिर के मकान, दुकान आदि को आसानी से खाली कराया जा सकेगा । जैन धर्मावलंबी अपनी प्राचीन संस्कृति पुरातत्त्व का संरक्षण कर सकेंगे। शैक्षणिक विकास जैन समुदाय द्वारा संचालित स्थापित शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ाई करने या कराने के लिए जैन धर्मावलम्बियों को स्वतंत्र अधिकार प्राप्त होगा । जैन समुदाय द्वारा संचालित स्थापित शैक्षणिक संस्थाओं में जैन विद्यार्थियों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जा सकेगी। * समुदाय द्वारा संचालित स्थापित शैक्षणिक संस्थाओं में धर्म की शिक्षा को नैतिक शिक्षा के आधार पर पाठयक्रमों में शामिल किया जा सकता है। प्रतिभावान अल्पसंख्यक विद्यार्थी जिले में उत्कृष्ट विद्यालयों में प्रवेश पाते हैं तो उनमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले विद्यार्थियों को 9 वीं, 10 वीं, 11 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36