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संपूर्ण जगत में दो मूल तत्व पाये जाते हैं। जड़ और चेतन। जड़ पदार्थों को जाहिरा तौर पर भोजन की जरूरत नहीं होती किन्तु चेतनतत्त्व में अशरीरी आत्माओं (यदि होती हों) को छोड़कर सभी शरीरधारियों को जीवित रहने के लिए भोजन अनिवार्य आवश्यकता है। मजे की बात है कि उन्हें यह भोजन भी चेतनतत्त्वों से ही मिलता है ।
शाकाहार
जैन दर्शन में चेतनतत्त्वों को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। स्थावर और त्रस । आधुनिक विज्ञान में भी जीवन का अध्ययन दो हिस्सों- वनस्पति शास्त्र और जन्तु शास्त्र में किया जाता है। वनस्पति और जन्तु में कुछ मूलभूत अंतर होते हैं। मसलन जैन दर्शन वनस्पति को एक इंद्रिय जीव और जन्तु को दो से पांच इंद्रिय जीव मानता है। जीव विज्ञान की मान्यता है कि वनस्पतियों की शरीर रचना में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र नहीं होता, उनकी गतिविधियां हार्मोन्स के द्वारा नियंत्रित होती हैं। जबकि जन्तुओं में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र और हार्मोन्स दोनों प्रणालियां होती हैं। अतः वनस्पतियो को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र नहीं होने के कारण शरीरगत सुख-दुख का अहसास उतनी तीव्रता से नहीं होता जितना जन्तुओं को होता है।
मनुष्य शरीर की रचना का अध्ययन जन्तु- शास्त्र के अंतर्गत होता है। जन्तु अपना भोजन वनस्पति और जंतुओं से ही प्राप्त करता है। भोजन के मामले में जन्तु तीन प्रकार के होते हैं । सर्वाहारी, शाकाहारी, मांसाहारी । सर्वाहारी
16 अक्टूबर 2004 जिनभाषित
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श्रीमती सूरज जैन
अपना भोजन वनस्पति और जंतु दोनों से प्राप्त करता है। मनुष्य इसी श्रेणी में आता है। उसके संदर्भ में शाकाहारी होने का सीधा सादा अर्थ है- सिर्फ वनस्पति और वनस्पतिउत्पाद भोजन के रूप में इस्तेमाल करना । शाकाहारी होने के पीछे मुख्य उद्देश्य पशुवध जैसी स्थूल हिंसा से बचना है । और शाकाहार से इस उद्देश्य की पूर्ति बखूबी होती है । ऐसा करके हम 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत को साकार करके अन्य प्राणियों के जीवित रहने के अधिकार को मान्यता देते हैं। हालांकि शाकाहार में भी एक इंद्रिय जीव का घात होता है, किन्तु त्रस जीवों के वध से बचाव करके, बड़ी बुराई से छोटी बुराई की ओर आने के लिए शाकाहार ही हितकर है।
शाकाहार शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति एवं शारीरिक क्षमता में वृद्धि करता है ।
शाकाहार पर मनुष्य पूरी एवं लम्बी उम्र सरलता से जी सकता है, परन्तु मांसाहार पर नहीं । शाकाहार सात्विक आहार है, वह मानवीय गुणों को विकसित करता है । शाकाहार के अभाव में अहिंसक समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
शाकाहार विश्व की भोजन समस्या का सबसे किफायती समाधान है।
शाकाहार हमारे अनुकूल निर्दोष, निरापद, आरोग्य-वर्धक और तृप्तिकारक आहार है।
शाकाहार की एक खूबी यह भी है कि इसे सात्विक भोजन माना गया है, अतः 'जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन' कहावत के सही रहते हम क्रूर और हिंसक मनोभावों से बच सकते हैं । शाकाहार/ गैर शाकाहार के समर्थन और विरोध में अपने अपने तर्क, शोध, अवलोकन, धारणाएं और निष्कर्ष हो सकते हैं। किन्तु इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि मनुष्य शरीर को स्वस्थ और जीवित रखने के लिए जिन पोषक तत्वों की जरूरत होती है, वे सब शाकाहार में उपलब्ध हैं । शाकाहार अपना कर हम पशुवध की स्थूल हिंसा से बच सकते हैं।'
13, आनन्द नगर, जबलपुर
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