Book Title: Jinabhashita 2003 03 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 8
________________ के भावों को लेकर मरा । बस कोई विशेष फरक नहीं है। एक ने | शूली पर चढाने के लिए सुदर्शन को ले जा रहे थे। धर्म कहता है एक जीव को इसलिए मारा कि तू मेरे शिकार में बाधक है। और अभी चरम सीमा नहीं आई है। उस समय देवता आ गये जिस एक ने इसलिए मारा कि तू शिकार खेल रहा है मुनिराज के साथ। समय तलवार से सिर अलग किया जाने वाला था। उस समय एक के प्राण मुनि रक्षा में गये और एक के प्राण भक्षण के परिणाम देवता कहते हैं खबरदार! कौन सत्य है और असत्य है इसका को लेगर गये। मुनि भक्षण का परिणाम किया 6वें नर्क गया, मुनि | निर्णय हो जाता। इसी प्रकार दूसरा उदाहरण है कि जब द्रौपदी का रक्षा का परिणाम 16वें स्वर्ग गया। दाब पर लगाया जा रहा था युधिष्ठर के द्वारा, उसी समय किसी परिणामों की विचित्रता देंखों बन्धुओ, जब भी तुम्हारी | देवता को आकर हाथ पकड़ लेना चाहिए था कि खबरदार तुम जीवन में मुनि रक्षा की बात आ जाये धर्म रक्षाकी बात आ जाये तो | भाइयों को तो दाँव पर लगा चुके अब तुम्हें पराई निधि को दाँव पर रक्षा बंधन ध्यान में कर लेना। अभी रक्षा बंधन किया गया, आपकी | लगाने का कोई अधिकार नहीं है। उस समय नहीं आये देवता समाज के द्वारा किसी एक व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा गया। साहस जिस समय केश पकड़ कर खींच रहा है दुःशासन । देवता कहते किया उसने कि मैं अपने जीवन काल में जब तक घट में स्वास हैं कि अभी चरम सीमा नहीं आई है अभी देर है। आ गये उस रहेगी तब तक कभी भी रत्नत्रयधारी मुनिराजों पर उपसर्ग नहीं समय जब नारी का अंतिम गुण शील के समाप्त होने की सीमा आ आने दूंगा। प्राण निकल जाये लेकिन उसकी बात अटल है, ये | गई तो देवता आ गये। चमत्कार हो गया "खींचत खींचत चीर संकल्प किया उसने, राखी तो राखी होती है, राखी के निमित्त से दुःशासन भुजबत हारो रे!" मैं संकल्प करता हूँ कि ये मेरी काया धर्म के प्रति समर्पित हो क्यों नहीं आ गये देवता जब यज्ञ करे रहे थे चार मंत्री जाए, ऐसी भावना, भक्ति अहलाद उसकी आत्मा के अंदर से बलि, प्रह्लाद, बृहस्पति और नमोची। कोई देवता नहीं आये। वहाँ उमड़ता है। रक्षा बंधन तो निमित्त है हर साल आता है बन्धुओ। | देवताओं ने कहा कि चलने दो अभी, अभी मुनिराज पढ़ाई में चल लेकिन एक साल के लिए संकल्प हो गया कि जब मैं सुनूँ कि | रहे हैं क्लास चल रही है परीक्षा तो अन्त समय में लँगा। उस मुनि के ऊपर संकट आया है तो मैं सब कुछ छोड़कर अपने मुनि | समय किसी देवता का आसन कम्पायमान नहीं हुआ। तब प्रकृति के पास चला जाऊँ। तो ऐसा नियम कम से कम एक आत्मा ने स्वयं कहती है कि क्या हो गया इस सृष्टि के मानवों को, दानवों लिया और अनुमोदना तुम सब आत्माओं ने किया। हत तो यही | को, देवताओं को एक का भी आसन नहीं हिल रहा है, एक भी मान रहे हैं कि तुम सबने अनुमोदना की। संकल्प इन्होंने लिया | सुध नहीं ले रहा है कि पृथ्वी पर मुनिराजों का क्या हो रहा है। और अनुमोदना आप सब ने की- हम तुम्हारी साथ हैं। जब धर्म | जब देवता सो जाते हैं तो प्रकृति कहती है कि मैं जागती हूँ और की रक्षा की बात आ जाए तो तुम आगे चलना मैं पीछे चलूँगा। | प्रकृति ने अपना ऐसा प्रभाव दिखाया कि एक मुनिराज बाहर बैठे अपना कार्य पूरा करूँगा। ऐसा था वह दिन लेकिन हस्तिनापुर के हुए थे अकस्मात ध्यान से उठकर कर वे मुनिराज ने थोड़ा यूँ देखा अंदर कोई श्रावक साहस नहीं कर पा रहा है, सब मन मानकर | और देखते ही निकल गया- हाय हाय ! हाय अनर्थ हो गया ! कभी बैठे हैं और राजा पद्मराज राज्य देकर भोगों में लीन हो गया। कम्पायमान नहीं होने वाला भी यह श्रवण नक्षत्र, आज ऐसे काँप उसको पता ही नहीं कि क्या हो गया सात दिन के राज्य देने में। रहा है जैसे पौष की ठण्ड में बंदर काँपता है। कपि को सबसे भोगी विलासी व्यक्ति अगाड़ी और पिछाड़ी का विचार नहीं करता ज्यादा ठण्ड लगती है (बंदर को)। कपि के समान काँप रहा है है और अपने कार्य में लग जाता है। उसका भविष्य क्या है यह यह श्रवण नक्षत्र । जो कँपा नहीं आज तक कभी काँप नहीं सकता नहीं जाना, जाकर अन्त:पुर में लीन हो गया। लेकिन धर्मात्माओं है ऐसा ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है। नियम से कोई ना कोई के ऊपर जब जब भी कोई उपसर्ग आये तब किसी ना किसी रूप अनर्थ घटने वाला है। आकाश में कुछ घटनाएँ ऐसी घट जाती हैं में उसके संकेत जरूर सृष्टि में दृष्टिगोचर होने लग जाते हैं। धर्म जिससे सृष्टि पर क्या होने वाला है इसका पता लगा सकते हैं। रक्षा के लिए पहले नहीं अंत में आता है। परीक्षा पहले नहीं होती, | रात्रि में यदि इन्द्रधनुष दिख जाये तो शास्त्रों के अनुसार राजा का परीक्षा साल के शुरुआत में नहीं होती जब अंतिम दिन आता है | मरण निश्चित है। हम लोगों ने खुद देखा है जब भारत की लास्ट (सुदृह्यल) दिन आता है तब परीक्षा होती है। शुरु में परीक्षा | प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी का मरण हुआ था उसके पहले दो-दिन नहीं होती है। जब उपसर्ग इतनी चरम सीमा पर पहुँच जाये कि | तक निरन्तर आकाश में इन्द्रधनुष दिखता रहा है ! हम सोचते थे बस अति होने वाली है तब धर्म कहता है सावधान ! जिनते | कि ना जाने कौन सा अनर्थ होने वाला है। तीसरे दिन सुन लिया धर्मात्माओं के उपसर्ग टले हैं, वे अंतिम समय में टले हैं। सुदर्शन | कि प्रधानमंत्री का मरण हो गया है। आगम के ऊपर श्रद्धान बढ़ सेठ को सूली लगी किसी देवता ने आकर सहायता नहीं की तब | गया कि जिनवाणी में जो लिखा है वो सत्य है। और भी कई देवता क्यों नहीं आये? जब वह रानी स्मशान में से उठा कर ले जा | घटनाएँ आकाश में घटती है जिनसे पता लगा लेते हैं लोगा। उस रही थी सुदर्शन को, उस समय देवता क्यों नहीं आये जब वह | दिन श्रुत सागर महाराज खुले आकाश मे बैठे थे। वो देखकर कह रात्रि में शील भंग कर रही थी? उस समय क्यों नहीं आये जब | रहे हैं अनर्थ हो गया किन्हीं धर्मात्माओं के ऊपर उपसर्ग आ गया। 6 मार्च 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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