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आत्मदीक्षा
उड़ती चिड़ियों से मैंने पूछातुमने नीलगगन में उड़ना किससे सीखा? जब बादल बरसे मैंने पूछातुमने धरती पर आना किससे सीखा? बहती नदियों से मैंने पूछातुमने किससे बहना सीखा? सागर के तट पर आकर मैंने सागर से पूछातुमने गहरे में गहराना
और सतह पर लहराना मुझे बताओ किससे सीखा? सब मुस्काए ऐसे जैसे कहते हों हमने सीखाअपने से अपने से अपने से।
लोग हँसते हैं मैंने सूरज को बुलाया है वृक्ष भी आएँगे
माटी की गुड़िया के चिड़िया भी आएगी,
ब्याह में नदी और सागर
सभी को आना है। दोनों ने
लोग हँसते हैं, आने को कहा है,
कहते हैं धरती और आकाश
यह मेरा बचपना है। दोनों के नाम
सचमुच, प्रकृतिस्थ मैंने चिट्ठी लिख दी है,
होना कि हमारी
बचपन में लौटना है।
मुनि श्री क्षमासागर जी
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