Book Title: Jinabhashita 2003 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ होता है तथा निवृत्ति धारकों को वैयावृत्य में सहायक होकर पुण्य लाभ कराती हैं। गृहस्थ जीवन विशाल संभावना से भरा होता है। लौकिक एवं पारलौकिक विभूतियों का संग्रह गृहस्थ सुगमतापूर्वक कर सकता है, प्राणिमात्र के प्रति अनंत उपकार करने की सामर्थ्य गृहस्थ धर्म में है । पाणिग्रहण से आरंभ होने वाला गृहस्थ धर्म इतिहास के पुण्याक्षरों की अटूट गाथा है। इस पवित्र जीवन को वर वधु मिलकर चलाते हैं। तथा अग्रि की साक्षी में जीवन भर के लिए सहचारिता की शपथ लेते हैं। यह शपथ वापिस नहीं ली जा सकती, तोड़ी नहीं जा सकती और अतिचार से मलिन भी नहीं की जा सकती। मन वचन काय से इसे जीवन पर्यन्त निभाना होता है उन्हें निरन्तर यह विश्वास बना रहता है कि उनका जीवन परस्पर भारतीय साहित्य, कला, संस्कृति, समाज, स्वतंत्रता | आंदोलन, प्रशासन तथा राजनीति आदि के अभ्युत्थान में जैन समाज का सदा ही गौरवशाली स्थान रहा है। इन कार्यों में अपने जीवन को प्राणपण से आहूत / समर्पित करने वालों को राष्ट्र के द्वारा समय-समय पर गौरव प्रदान किया जाता है I 25 जनवरी 2003 को राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली के द्वारा इस वर्ष के सर्वोच्च नागरिक अलंकरणों की घोषणा की गई है। इनमें देश की 4 प्रमुख हस्तियों को पद्म विभूषण, 34 को पद्मभूषण तथा 54 को पद्मश्री अलंकरणों से अलंकृत किए जाने की घोषणा की गई है। विभिन्न विषयों में महारत रखने वाले इन महानुभावों में 4 विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी जैन बन्धु भी हैं। हालांकि कुछ और भी इनके अतिरिक्त जैन हो सकते हैं, किन्तु सेठ, फड़के, चौधरी या मित्तल आदि जैसे उपनाम लिखे होने से इनको जैन रूप में जानना / पहचानना अभी शेष हैं। जैन समाज के गौरव पुरुष सम्मानित होंगे साधु सती औ सूरमा, ज्ञानी औ गजदन्त । ते निकसै नहिं बाहुरै, जो जग जाहि अनन्त ॥ जाका गुरु है गीरही, गिरही चेला होय । कीच कीच के धोवते, दाग ने छूटै कोय ॥ पण्डित केरी पोथियों, ज्यों तीतर का ज्ञान । औरे सगुन बताव हीं, आपन फंद न जान ॥ • १. वापिस आना २. गृहस्थी में आसक्त Jain Education International समर्पित है। पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं किसी एक के बिना जीवन अपूर्ण है। जीवन को रथ की एवं पहियों को पति पत्नी की उपमा दी गई है। यदि पहिया असमान है तो जीवन रथ रुक जाता है, गति नहीं रहती । इसी को दृष्टि में रखकर समान गुणवान, कुलवान, रूपवान बुद्धिवान वर एवं कन्या का संबंध करना चाहिए। जीवन का आधार परस्पर विश्वास हैं। योग्य वर और कन्या के चयन से जीवन सुखमय बनता है। गृहस्थ जीवन के सुखपूर्वक व्यतीत करने के साथ जीवन में धर्म धारण करने का भाव निरंतर रहना चाहिए तभी सप्तपदी अर्थात् सप्तपरम स्थान प्राप्त करने की भावना सार्थक होगी। रजवाँस, सागर (म.प्र.) 470442 भारत रत्न तथा पद्मविभूषण के उपरान्त देश के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण पद्मभूषण से सम्मानित होने वाले हैं श्री सिद्धराज डड्ढा (सार्वजनिक मामले) तथा श्री हस्तिमल संचेती (चिकित्सा) । पद्मश्री सम्मान से सम्मानित होने वाले हैं श्री नेमीचन्द जैन ( कला एवं रंग मंच) तथा श्री ओमप्रकाश जैन (कला) । भारतीय पुलिस सेवा (आई.पी.एस.) के म.प्र. कैडर के आठ अधिकारियों को विशिष्ट और सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक दिए जाने की भी घोषणा की गई है। इनमें डी.आई.जी. पुलिस कल्याण, भोपाल श्री अशोक कुमार जैन भी सम्मिलित हैं। कबीर की साखियाँ इन सभी के दीर्घकाल तक मानव सेवा एवं कल्याण की कामना के साथ ही जैन समाज के इन गौरव पुरुषों को आत्मीय बधाइयाँ हंसा बगुला एक सा, मानसरोवर माँहि । बगा ढिंढौरे माछरी, हंसा मोती खाँहि ॥ हीरा तहाँ न खोलिए, जहँ खोटी है हाट। कसि करि बाँधो गाँठरी, उठि करि चालो बाट ॥ जब गुन को गाहक मिलै, तब गुन लाख विकाय । जब गुन को गाहक नहीं, कौड़ी बदले जाय ॥ For Private & Personal Use Only मार्च 2003 जिनभाषित 27 www.jainelibrary.org

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