Book Title: Jinabhashita 2003 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 12
________________ निर्वाण को प्राप्त हो गये थे। किनका पुत्र है किनके कुल में जन्मा । यदि वह मेरे ऊपर आक्रमण भी करवा दे और मुझे बंदी बना ले तो है? जिस कुल में तीर्थंकर जनमें है उस क्षत्रिय वंश में जन्मा है | बना सकता है क्योंकि राजा वह है। मैं घोषणा कर चुका हूँ कि और उनका पुत्र होकर मुनियों की ये दशा करा रहा है ! तुझे शर्म | सात दिन तक सारी सेना इनके आधीन है। विष्णु कुमार कहते हैं नहीं आती अपने कुल पर कलंक लगाते हुए? धर्म पर कलंक ठीक है अब मैं ही कुछ करता हूँ और पहुँच गये वामन का रूप लगा रहा है अपने पर कलंक लगा रहा है और अपने कुल पद लेकर के, दिखा ही माया, छोड़ दी अपनी मूलकाया, वामन का भी! अरे जो कुल-कलंकी होता है वो चाहे कितना भी धर्म कर ले अवतार लेकर पहुँच गये। लेकिन सद्गति नहीं होती है। सब के पहले कुल को उज्जवल अब यहाँ के बाद की कथा दर्शन एवं वैष्णव दर्शन में एक करो फिर बाद में धर्म को उज्जवल करो। जिस कुल में मुनि | सी चलेगी। यहाँ तक थोड़ा सा भेद था। वैष्णव दर्शन में विष्णु उत्पन्न हुए हों वो कुल महान माना जाता है । बन्धुओं जिस कुल भगवान् अवतार लेते हैं और यहाँ श्री विष्णु कुमार लेते हैं। छोटे में एक भी मुनि बन जाये वह कुल पूजनीय हो जाता है। 10 | से ब्राह्मण बन गये। और बलि जैसे ही सुबह उठ कर आया, दान (दस) पीढ़ियों तक देवता उसकी प्रशंसा करते हैं कि इस कुल में शाला में कोई यज्ञ करता है तो यज्ञ करने के पहले दान दिया जाता मुनि हुए थे और तू तो 10(दस) पीढ़ी की बात छोड़ दे वर्तमान में | है। आप लोग विधान करते हो। विधान की पूजा शुरु करने से तेरे पिता मुनि हुए हैं। यह सुनकर छोटा भाई पद्मराज हाथ जोड़ | पहले बाहर किसी को दान देकर आया करो। ये दान की परम्परा कर चला गया-मैंने वचन दे दिया और वचन देने का ये परिणाम | है भगवान् के दर्शन करने आये हो दरवाजे पर किसी भिखारी के निकला अब मैं क्या कर सकता हूँ। मैंने सोचा भी नहीं था कि कटोरे में पैसे डाल कर आया करो ये यज्ञ की परम्परा है। आप जो इसका यह परिणाम होगा "बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय" दर्शन करते हो यह भी एक छोटा यज्ञ है। छोटी सी पूजा है। कोई यहाँ ध्यान रखना कि खलों के लिए किमिच्छिक दान नहीं | भी पूजा अनुष्ठान करने से पहले उन दरिद्रों को देकर जाओ। कुछ दिया जाता। कभी खल से ये मत कह बैठना कि माँगले क्या आयतनों को देकर जाओ देव शास्त्र गुरु को कुछ देकर जाओ। माँगना है। ये तो किसी सज्जन पुरुष से कहना किसी मुनि से भी फिर भगवान् का दर्शन करो पहले दान की घोषणा करो। इसलिए कह देना । कोई मुनिराज पूछे कि किस का मकान है तो कह देना आपने देखा होगा पंचकल्याणक बाद में होते हैं दान की घोषणायें का आप ही का है तो कोई बात नहीं चल जाएगा। एक बार हुआ पहले होती हैं। ये आगम की परम्परा है। तुम लोग कहते हो कि था ऐसा, एक व्यक्ति अपने बच्चों को लेकर आया और नमस्कार ये कौन सा धर्म है पहले पैसा बाद में पूजा ! पहले पूजा तो कर लेने करा रहा था मैंने कहा किसके बच्चे हैं? महाराज आप ही के तो | दो बाद में दे देंगे। और मैं कहता हूँ कि गजरथ की फेरी में बैठने हैं। मैंने कहा जब बच्चे मेरे ही हैं तो इनको मेरे पास ही छोड़ दे न | से पहले तुमने दे दिया सो दे दिया। गजरथ की फेरी फिरी और क्यों ले जा रहा है अपने साथ? वह कहने लगा महाराज तो तुम फराए हुए। फिर तो तुम्हें अदालत से वारण्ट भी निकाल दिया सांची-सांची मान गये मैं तो ऐसे ही कर रहा था। वह कहने लगा जाए तो भी तुम पकड़ में आने वाले नहीं हो। तुम्हारी नियत, हमारे मैं तो नमस्कार कराने लाया था कि आशीर्वाद दे दें आप कि आचार्य जानते थे। क्या कहते हैंफले-फूलें और आप तो हमारा लड़का ही छुड़ाने लगे। तो ऐसी गरज परे कुछ और है गरज सरे कुछ और विपरीत स्थिति बन जाती है कभी-कभी। साधुओं से ऐसा बोल तुलसी भांवर के परे नदी सिरावें मौर दोगे तो कुछ नहीं होगा, वह तो मैंने ऐसे ही उसे चिढ़ाने के लिए आपकी गरज पड़ती है तो आज मुकुट को सिर पर उठा कह दिया तो विष्णु कुमार कहते हैं कि तुमने किमिच्छिक दान दे लेते हो। विवाह के बाद नदी में सिरा देते हो। जब मुकुट सप्तमी दिया, ये तो विचार करते कि ये परदेशी मंत्री हैं जिनके धर्म की का दिन आता है उस दिन मौर को नदी में सिरा देते हैं । तुलसीदास परीक्षा लिये बगैर तूने मंत्री पर दे दिया। मंत्री पद तो उसे दिया जी उस समय नदी में स्नान कर रहे थे उन्होंने देखा, अरे जिस के जाता है जो धर्म का आस्तिक होता है जिसके कुल परम्परा का माध्यम से राजा बना था और गरज हटी तो नदी सिरावे मौर। ऐसे ज्ञान होता है। जिसके सम्बन्ध में सारी जनता जानती है और तृने ही आप लोग हो भगवान् से यदि कुछ माँग रहे हो और अगर उसको मंत्री पद दे दिया जो परदेश से आये थे। भटकते-भटकते | तुम्हारी सट जाये तो तुम भगवान् को भी छला देते हो। ऐसी एक युद्ध तुझे जिता दिया तो तू इतना फूल गया कि किमिच्छिक स्थिति आ जाती है तो पहले दान बाद में काम। ये धर्म का नियम दान दे बैठा। इतना विवेक तूने खो दिया। खलों को कभी किमिच्छिक है। इसलिए पहले दान करो बाद में यज्ञ । बलि राजा भी यज्ञ कर दान मत देना आप लोगा ये शिक्षा ले लेना। कभी कोई खल आ रहा था। सबसे पहले दान शाला में गया। ब्राह्मण आ गया सामने। जाये तो उससे कह देना कि जितना मैं दे रहा हूँ उतना लेना है तो राजन सुना है आप किमिच्छिक दान बाँट रहे हो। राजन कहता है ले ले वर्ना जा। यदि उसने तुम्हारे ऊपर कोई उपकार किया है तो हाँ हाँ बाँअ रहा हूँ। माँग ले क्या माँगना है। पहले पक्का करो कि दान देना मगर तुम दे रहे हो उतना ले लो तो ठीक वर्ना मत लेना। | दोगे कि नहीं। अरे मैं ,गा। नहीं जलांजलि दो। ब्राह्मण बिना पद्मराज कहते हैं मैं करूँ सात दिन के लिए तो मैं राज्य दे चुका हूँ। । अग्नि साक्षी के दान स्वीकार नहीं करता है और पता तम बदल 10 मार्च 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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