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बसन्तमाला के गर्भस्थ बालक और अंजना के विषय में | "ये मेरे मामा है' यह ज्ञान होते ही अंजना मामा के गल पृच्छा की। करूणासागर गुरुराज के दोनों के भवान्तर बतलाते हुए | से लगकर बहुत देर तक रोती रही। प्रतिसूर्य ने अंजना को धर्य कहा कि "महारानी कनकोदरी की पर्याय में इसने अभिमान एवं | बंधाकर उसका मुहँ धुलवाया और पाश्वंग नाम ज्योतिषी से ग्रह सौतिया डाल के वशीभूत होकर भगवान् जिनेंद्र की प्रतिमा को घर स्थिति पूछी। पश्चात उन सबको विमान में बैठाकर हनृरूह द्वीप से बाहरी भाग में फिकवा दिया था। पश्चात संयम श्री आर्यिका | के लिए प्रस्थान किया। थोड़ी दूर जाने पर सहसा बालक माता की का सम्बोधन प्राप्त कर यह नरकों से उत्पन्न होने वाले दुःखों से | गोद से छूटकर नीचे एक शिला पर गिरा। बालक के गिरते ही भयभीत हो गई। उस समय उसने शुद्ध हृदय सम्यकत्व धारण महाशब्द हुआ और शिला के हजारों टुकड़े हो गय । विमान नीचे किया। अर्हन्त बिम्ब को वापिस उठाकर पूर्वस्थान पर विराजमान | अतरा तो सबने देखा के बालक शिला पर सुखे से चिन्न पड़ा है। किया। तथा अव्युत्साहपूर्वक जिनेन्द्र की पूजन कर पुर्योजन किया। | अँगूठा मुख में डालकर चूसते हुए अपनी मन्द मुस्कान से सुशोभित
कनकोदरी रानी आयु के अन्त में मरण कर स्वर्ग गई, वहाँ | हो रहा है। से च्युत हो राजा महेन्द्र की पुत्री हुई। पूर्वभव में इसने जिनेंद्र | इस प्रकार का अद्भुत दृश्य देखकर राजा प्रतिसूर्य ने कहा प्रतिमा को गृह से बाहर रखा था उसी के फलस्वरूप यह इस | कि "अहो! बड़ा आश्चर्य है; सद्योत्पन्न बालक ने वज्र यदृश प्रकार केदु:खों को प्राप्त हुई।
शिलाओं का चूर्ण कर दिया। इसकी इस देवातिशायिनी कि गर्भस्थ पुत्र महाभाग्यशाली, अखण्डित पराक्रम वाला एवं | तरुण होने पर क्या करेगी? निश्चित ही यह चरम शरीरी है।" चरम शरीरी हैं। तू इस पुत्र से परम विश्रुति को प्रगाप्त होगी। ऐसा जानकर उन्होंने हस्तकमल सिर से लगाये। स्त्रियों ने तान अल्पकाल में पति से मिलन होगा।" मुनिराज के सन्तापहारी, | प्रदक्षिणा दी और चरम शरीर को नमस्कार किया। तदन्तर आश्चर्य अमृत तुल्य वचन सुनकर दोनों के हृदय प्रफुल्लित हो उठे। अत्यन्त से भरी माता ने बालक को उठाकर छाती से लगा लिया। हर्षित हुए उन्होंने बार-बार मुनिराज को नमस्कार किया। निर्मल हनृरूह नगर पहुँचकर बालक को जन्मोत्सव मनाया गया। हृदय के धारी मुनिराज उन दोनों को आशीर्वाद देकर पर्वत गुफा | शिला को चूर-चूर कर देने से उसका नाम "श्री शैल' रखा गया। से उठाकर आकाश में विहार कर गये।
चूँकि उसका संवर्धन हनृरूह नगर में हुआ था, अत: "हनुमान'' दिन बीता। रात्रि का आगमन हुआ। भयावह अन्धकार नाम से प्रसिद्ध हुआ। दारुण दु:खमय, घनधार अन्धकार यक का साम्राज्य व्याप्त हो गया। तभी एक विकरात सिंह गुफा के द्वार | रात्रि का अवसान तथा सुखमय सुप्रभात हो जाने से अंजना, पनि पर आकर गर्जना करते हुए नाना कुचेष्टाएँ करने लगा। सिंह की और पुत्रादिक के साथ सुखावस्था को प्राप्त हुई। भयंकर आकृति देख, भयभीत अंजना ने निर्णय कर लिया कि भविष्यवेत्तओं ने बता दिया कि चरमशरीर, तदभव मोक्षमागा अब मृत्य अनिवार्य हैं । जिस मृत्यु की कल्पना कर लोक निरन्तर ! कामदेव हनुमान की माँ बनेगी, पर जन्म देगी मुखे तृणों और भयभीत रहता है। उस मृत्यु को साक्षात देख अंजना ने उसी क्षण कंकड-पत्थरों पर जहाँ न सोहर गाने वाली सहेलियाँ होंगी न शारीरिक मोह एवं आतं--रौद्र ध्यान कर त्याग कर दिया। उपसर्ग खुशी मनाने वाले परिवारजन्य। ऐसे यशस्वमी पुत्र की धर्मपरायण निर्वत पर्यन्त आहार जी का त्याग कर कार्योत्सर्ग में संलग्न हो | माँ दुराचारिणी का कलेंक लिए घृमें, विधि की इस भयावह गई। अंजना और सिंह के बीच मात्र तीन हाथ का अन्तर अवशेष | विडम्बना क्या होगी? अंजना की व्यथा कथा का प्रारमी व्य देख गुफावासी गन्धर्व बालक के पुण्य अथवा सती अंजना के प्रकार है। शील महात्मय से अष्टापद का रूप धारण कर सिंह का पराभव | विक्षिप्त अंजना समझ ही नहीं पाती थी कि परित्याग का किया।
क्या कारण होगा? कहे भी तो किससे? वह मन ही मन सोचनी चैत्र कृण्णा अष्टमी को प्रात: श्रावण नक्षत्र और मीन लग्न है "मुझे जीवित रहकर अब क्या करना है? इस अमर वंदलर का से उदित रहते क्रान्ति पुञ्ज पुत्र उत्पन्न हुआ। उसी क्षण गुफा का | भार अन्ततः मुझे कब तक ढोना पड़ेगा? मैं अपनी पीड़ा निधि अन्धकार नष्ट हो गया
किस दिखाऊँ अपनी व्यथित कथा किसे सुनाऊँ? मेरे जीवन की अंजना करुण विलाप किये जा रही थी। तभी आकाश | यह कटुता किसे स्वयं क्षत कर रही है?" मार्ग से जा रहे विद्याधर ने अपनी पत्नी सहित शंकित मन से गुफा | पवनजंय के हृदय पर क्या बीती होगी जब वे अंजना को ।। में प्रवेश किया। बसन्तमाला ने स्वागत किया और अंजना का पूर्ण लिवाने हनुरूद्ध द्वीप पहुँचे होंगे और वहाँ अपने से भी अधिक परिचय दिया । हृदय विदाकर वृतान्त सुनकर विद्याधर युगत अत्यन्त | कांतिमान बच्चे को खेलते देखकर पृछा होगा-बेटे ! तुम किमक दुःखी हुआ। विद्याधर बोला-- हे पतिव्रते! मैं हनृरूह द्वीप का राजा लड़के हो किसक पुत्र हो? और बच्चा कहे "हमारी मायम आँखों प्रतिसूर्य तरा मामा हूँ। चिरकाल के वियोग ने तेरा रूप बदल में देख लो।' यह पूरा परिदृश्य पर्याप्त है कि अकारण ही 22 वर्ष दिया। अत: मैं पहचान नहीं सका।
तक पति का वियोग सहने वाली, पति मिलने पर भी दुराचारिणी
-मार्च 2003 जिनभापित ।
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