Book Title: Jinabhashita 2002 10 11 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य "जिनभाषित' सितम्बर 2002, पृष्ठ 2, सम्पादकीय "वैराग्य । आचार्यश्री के चरण सान्निध्य में ही रहा। उस समय मैं सतना जैन जगाने के अवसरों का मनोरंजनीकरण" पृष्ठ-2 "भवाऽभिनन्दी | समाज का मंत्री था। अत: व्यवस्थाओं की बहुत कुछ जिम्मेदारी मुनि और मुनि-निन्दा" स्व. पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार | भी मेरी थी। "युगवीर"। उपर्युक्त लेख प्रशंसनीय हैं, अनुकरणीय हैं, | उन इक्कीस दिनों में पूज्य आचार्यश्री का स्वास्थ्य बिलकुल जिनागमोक्त हैं। परन्तु वर्तमान में क्या कोई भी इनको पालन कर | ठीक रहा, प्रायः प्रतिदिन उनके प्रवचनों का लाभ भी इस क्षेत्र की पा रहा है? यदि नहीं, तो फिर मात्र कागजी कार्यवाही ही तक जनता ने लिया था। सतना की गजरथ स्मारिका में और कुछ जैन सीमित हैं। पत्रों में मेरा एक संस्मरणात्मक लेख आचार्यश्री के विषय में छपा हजारी लाल जैन | था, उसमें इन इक्कीस दिनों के कार्यक्रम, यात्रा और अनेक प्रभावक 5/448, नाई की मंडी, आगरा घटनाओं का विस्तृत वर्णन है। हम आपकी पत्रिका के नियमित सदस्य हैं। आपकी पत्रिका आचार्यश्री पर बुखार का उपसर्ग कटनी पहुँचकर हुआ वास्तव में बहुत रोचक, धार्मिक और गुरुभक्ति से परिपूर्ण है। था, तुरंत टेलीफोन से भाईसा. नीरज जी के लिये बुलावा आया इसमें आचार्यश्री के लेख आदि सामग्री को बहुत ही अच्छे से | था, वे कई दिनों तक सेवा में रहे, मैं भी दो बार देखने के लिए समाहित किया जाता है। वहाँ गया था। उस समय और बुखार के दूसरे उपसर्ग के समय यह पत्रिका इसी वजह से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री माननीय नैनागिरि में तीव्र शारीरिक वेदना के होते भी आचार्यश्री की दृढ़ता अजीत जोगी को बहुत पसंद आई। जुलाई माह की पत्रिका जिसमें मैंने भी देखी है । रोग के तीसरे उपसर्ग के समय मैं थूबौनजी नहीं आचार्य श्री का दीक्षा दिवस विशेषांक था, उन्होंने अपने पास रख पहुँच सका, क्योंकि उस समय खजुराहो क्षेत्र पर एक महत्त्वपूर्ण ली और यह भी कहा कि यह पत्रिका मुझे नियमित भेजें। कार्यक्रम था, जिसमें माननीय साहू अशोक जी, साहू रमेशजी, अतः आपसे निवेदन है कि आप यह पत्रिका प्रतिमाह प्रदेश के मुख्यमंत्री आदि अनेक विशिष्ट अतिथि आये थे। उन "मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शासन" के नाम से अवश्य प्रेषित करें। प्रकाश मोदी अतिथियों के स्वागत और कार्यक्रम के संचालन का दायित्व श्री जयस्तम्भ चौक, भाटापारा (छ.ग.)| नीरजजी पर था परंतु वे आचार्यश्री की अस्वस्थता के समाचार आपकी विचारपूर्ण उपयोगी पत्रिका "जिनभाषित" का | मिलते ही थूबौनजी चले गये थे और उनका दायित्व मुझे निर्वहन सितम्बर अंक आज ही मिला है। इसमें विद्वान श्रेष्ठी पं. मूलचन्द्र | करना पड़ा था। मैं बाद में थूबौनजी पहुँच सका। लुहाड़िया का प्रेरणास्पद लेख ".... और मौत हार गई" पढ़ा। चौथे रोग उपसर्ग का समाचार ही मुझे नहीं मिल पाया था इस लेख में हुई एक तथ्यात्मक भूल की ओर मैं आपका और | और पाँचवाँ हरपीज रोग का उपसर्ग जब आचार्यश्री पर हुआ तो पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। मैं पूज्य आचार्य वर्धमानसागरजी के पास था, उस समय वे भी पंडितजी ने लिखा है कि "आचार्य जी पर प्रथम बार मौत अस्वस्थ थे। वह काल ही कुछ ऐसा था। उन दिनों हमारे चार का आक्रमण सतना में हुआ।" यह सही नहीं है । मुझे आचार्यश्री | आचार्य महाराज रोग के उपसर्ग सहन कर रहे थे। हरपीज रोग की के दर्शन करने और उनसे कुछ चर्चा करने का अवसर सन् 1974 पीड़ा का मैं भुक्तभोगी था, अत: आचार्यश्री की पीड़ा का अनुमान के चातुर्मास में सोनीजी की नसिया, अजमेर में मिल चुका था। मैं करते ही आँखें नम हो जाती थीं और कहीं बैठकर उनके स्वास्थ्यआचार्यश्री से बहुत प्रभावित था अतः उनके सतना प्रवेश के तीन | लाभ की कामना करते हुए णमोकार मंत्र की एक माला फेर लेता दिन पूर्व से, सतना प्रवास के आठ दिन तक और सतना से प्रस्थान के बाद भी दस दिन तक इस प्रकार कुल इक्कीस दिन मैं प्रायः निर्मल जैन, सुषमा प्रेस परिसर, सतना था। वदिता योऽथवा श्रोता श्रेयसां वचसां नरः। गुणदोषसमाहारे गुणान् गृह्णन्ति साधवः। पुमान् स एव शेषस्तु शिल्पिकल्पित कायवत्॥ क्षीरवारिसमाहारे हंसः क्षीरमिवाखिलम्। भावार्थ- जो मनुष्य कल्याणकारी वचनों को कहता भावार्थ जिस प्रकार दूध और पानी के समूह में से हंस है, अथवा सुनता है वास्तव में वही मनुष्य है, बाकी तो शिल्पकार | समस्त दूध को ग्रहण कर लेता है, उसी प्रकार सत्पुरुष गुण और के द्वारा बनाये हुये मनुष्य के पुतलों के समान हैं। | दोषों के समूह में से गुणों को ही ग्रहण करते हैं। पद्मपुराण 2 अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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