Book Title: Jinabhashita 2002 10 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ को मान्य कैसे हो सकता है? दिगम्बर जैनाचार्यों की उपेक्षा करना, | था।" उनको प्रामाणिक न मानना, क्या दिगम्बर जैनधर्म के लिए | पाठक विचार करें कि 20 मील लम्बा-चौड़ा महानगर प्रभावनाकारक हो सकता है? दिगम्बर जैन आगम को अस्वीकार | क्या गाँव था व 9 मील विस्तार वाली वैशाली के अन्तर्गत हो करने वालों का कथन दिगम्बरत्व के विरुद्ध है। क्या अनावश्यक सकता है। "प्राकृत विद्या" को स्वयं ही निर्धारण नहीं है। यद्वाबार-बार विश्वास को बदलना उचित है? क्या पूर्व से नालंदा- तद्वा निरूपण करने से तो वह मिथ्या संभाषी ही कहे जावेंगे। निकटवर्ती कुण्डलपुर विद्यमान नहीं है जिसे मानचित्र में से निकाला पृ. 53- "महावीर ने अपने आत्मबल से समस्त भूखण्ड गया है। को वैशाली के अधीन कर दिया।" इन्होंने श्री पार्श्वनाथ के मत जैनागम की प्रतीति को सम्यग्दर्शन कहा गया है। क्या | को अपनाकर उसे परिष्कृत रूप दिया। तुम्हारे इस गाँव से सटा जैनागम को नष्ट कर परिवर्तनशील इतिहास-भूगोल को स्वीकार | जो वासुकण्ड गाँव है, वही तब कुण्डग्राम कहलाता था और वहीं करना सम्यग्दर्शन है? क्या कुन्दकुन्द स्वामी की "आगम चक्खू | उनका जन्म हुआ। साहू" उक्ति की साधुवर्ग या श्रावक वर्ग उपेक्षा कर सकता है? | पृ. 47 - "कई ग्रन्थों में तो वैशाली के साथ वैशाली के क्या इस वैशाली के बहाने श्वेताम्बरों की अन्य मान्यताओं, | चेटक राजा एवं सामन्त का उल्लेख है।" उदाहरणार्थ- भगवान् महावीर का गर्भान्तरण, विवाह, कवलाहार, | पृ. 57- भगवान् महावीर के जन्म स्थान के सम्बन्ध में त्रिशला को चेटक की बहन कहना आदि को भी स्वीकार करने | अनेक रचनाएँ पढ़ने पर यह समझ में आया कि उन्होंने वैशाली तथा दिगम्बर जैन शास्त्रों को अप्रामाणिक ठहराने का छद्मवेशीय गणतन्त्र और वैशाली नगरी दोनों को एक मान लिया। इससे प्रयत्न दिगम्बर जैन समाज पर कुठाराघात नहीं होगा? विचारणीय कुण्डलपुर को उसका उप नगर कुण्डग्राम लिख दिया। वर्तमान में भी कुण्डलपुर जन्म स्थान की भूमिका अतिक्रमण से संकुचित यहाँ "प्राकृत विद्या" के प्रस्तुत अंक के कुछ उदाहरण | दिखती है। अत: वैशाली का प्रचार-प्रसार और प्रसिद्धि होने से उद्धृत करना उपयोगी होगा, जिनसे इस पत्रिका के विरोधाभास का | उसके अन्तर्गत कुण्डलपुर या कुण्डग्राम की धारणा सर्वथा गलत ज्ञान होगा। यह पूर्वापर विरोध ही स्वतः प्रमाणित करने में सक्षम है कि वैशाली या उसके अंतर्गत कुण्डग्राम भगवान् की जन्मभूमि (पाठकगण स्वयं देखें कि प्राकृत विद्या के कर्णधार अपनी नहीं है। इसके प्रस्तुत अंशों से ही इस मान्यता का खण्डन हो रहा | धारणा को स्वयं गलत कह रहे हैं। कहीं कुण्डलपुर को 20 मील है। द्रष्टव्य है : | लंबा-चौड़ा तथा कहीं पाँच सौ घर मात्र क्षेत्रगत उल्लिखित कर रहे पृ. 54- "कुण्डलपुर 20 मील की लम्बाई-चौड़ाई में | हैं। अपने पूर्व कथन को स्वयं ही खंडित कर रहे हैं। इनका वचन बसा हुआ था।" (महानगर था) “महाराज सिद्धार्थ वैभव सम्पन्न सत्य से परे है।) प्रसिद्ध पुरुष थे।" (ले. नाथूलाल शास्त्री) पृ. - 96 "यद्यपि जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर पृ. 33 - "इससे भी इतना तो सिद्ध होता है कि क्षत्रिय | श्रमण लिच्छिवि कुल में उत्पन्न हुए थे।" कुण्डपुर जहाँ से एक साथ पाँच सौ राजकुमार निकले, कोई बड़ा | पृ. - 73- "ज्ञातृकों से महावीर के पिता सिद्धार्थ का नगर रहा होगा।" सम्बन्ध था।" पृ. 92- "क्षत्रिय कुण्डग्राम के भी दो विभाग थे। इसमें पृ.-72-"यह स्पष्ट है कि महावीर वैशाली के अध्यक्ष करीब पाँच सौ घर ज्ञाति नामक क्षत्रियों के थे, जो उत्तरी भाग में | चेटक के दौहित्र थे।" जाकर बसे हुए थे। उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर के नायक का नाम पृ. -92-"चेटक की बहन त्रिशला थी", यह उल्लेख सिद्धार्थ था। वे काश्यप गोत्रीय ज्ञाति क्षत्रिय थे तथा "राजा" की | पहले किया ही है। उपाधि से मण्डित थे। वैशाली के तत्कालीन राजा का नाम चेटक | पृ. - 96- परन्तु जैन ग्रन्थों में लिच्छिवि न कहकर ज्ञात था जिनकी बहन त्रिशला का विवाह सिद्धार्थ से हुआ था। इन्हीं | पुत्र, ज्ञातृ-क्षत्रिय आदि नामों से पुकारा जाता है। त्रिशला और सिद्धार्थ के पुत्र वर्धमान थे जिनका जन्म इसी ग्राम में | द्रष्टव्य है कि किसी स्थल पर लिच्छिवि कुल बताते हैं हुआ था।" कहीं लिच्छिवि होने का खंडन करते हैं। पृ. 13 - "उस समय कुण्डग्राम वैशाली नगर में सम्मिलित प्रस्तुत विशोषांक में भगवान् महावीर को वैशालिक सम्बोधन कारण की विवेचना करते हुए लिखा हैपृ. 71 - "भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ वैशाली के पृ. 46-विशाला जननी यस्य विशालं कुलमेव च। कुण्डग्राम के शासक थे।" विशालं वचनं यस्य तेन वैशालिको जिनः ।। पृ. 74 - "विशाल नगरी होने के कारण यह विशाला अर्थात् जिनकी माता विशाला हैं, जिनका कुल विशाल है, नाम से भी प्रसिद्ध हुई। बुद्धकाल में इसका विस्तार नौ मील तक | जिनके वचन विशाल हैं इससे वैशालिक नामक जिन हुए। -अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित 23 था।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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