Book Title: Jinabhashita 2002 10 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 27
________________ 14 तक महावीर के जन्मकल्याणक को मनाने के लिए होता है।" | साहित्य संस्कृति अनुसंधान केन्द्र जमुई (बिहार)। इसी का पृष्ठ यह स्पष्ट है कि बालभद्र जी का जो मत है वह उन्होंने | 13-"सभी विवादों को नजरअंदाज कर प्राचीन इतिहास के प्रणम्य वहाँ गवेषणा करके ही लिखा है अत: नालन्दा निकटवर्ती कुंडलपुर | पं. डॉ. योगेन्द्र मिश्र ने सन् 1948 में यह स्थापित कर दिया कि ही स्वीकार करने योग्य है। | महावीर वैशाली में ही जन्मे थे।"..... डॉ. मिश्र जी के लिए यह वैशाली के समर्थक यह तर्क देते हैं कि 50 वर्ष पूर्व जब | नैतिक दायित्व था कि इन स्थानों तक आकर, इनके उन भौगोलिक वैशाली को प्रकाश में लाया गया तब से समाज चुप क्यों रहा? | परिवेश एवं अन्य आधारों की जाँच कर लेते।" इसका उत्तर यह है कि आप ही बतायें कि 900 वर्ष या उससे पूर्व | ज्ञातव्य है कि सर्वप्रथम जैकोबी, हार्नले और विसेंटस्मिथ से वह क्यों नालंदा-कुण्डलपुर को स्वीकार करते रहे। इससे तो ! पश्चिमी इतिहासविदों के मत को ही आधार बनाकर डॉ. योगेन्द्र आपका पक्ष खंडित ही हो रहा है। 50 वर्षों से समाज में कतिपय | मिश्र ने तथ्यों से आँख बन्द कर वैशाली को 1948 में मान्यता दी विद्वानों ने स्वर मुखरित किया था। परंतु समाज अपने नेताओं पर जिसे दि. जैन समाज के कतिपय प्रमुख नेताओं ने आँख बन्द कर विश्वास के कारण अथवा उद्देश्य की पूरी अभिज्ञता न होने के माना। आम जनता उसे स्वीकार नहीं करती। कारण अथवा प्रमाद के कारण मौन रहा। किंतु अब तो जाग्रत हो श्री माणिकचन्द्र जैन बी.ए. ने अंग्रेजी में एक पुस्तक गया है, वह स्मारक अथवा 'प्राकृत विद्यापीठ' का विरोध नहीं | 'Life of Mahavir' लिखी थी यह 1908 में इंडियन प्रेस इलाहाबाद करना चाहता। किंतु कुंडलपुर को मिटाने के प्रयास को अब | से प्रकाशित हुई थी जिसका Preface एम.सी. जैनी ने तथा Introकदापि स्वीकार नहीं किया जावेगा। हमने अपने आलेख भगवान् duction लंदन से जे.एल. जैनी ने लिखा था। प्रासंगिक जानकर महावीर जन्मभूमि प्रकरण : मनीषियों की दृष्टि में प्रकाशित आलेख उसके निम्न अंश उद्धृत करता हूँ। 'भगवान् महावीर का जीवन और जन्मभूमि कुण्डलपुर" में अनेकों Page-15-"make us believe that Siddhartha was a शास्त्रीय प्रमाण दिये हैं। अन्य भी अनेकों संतों ने व विद्वानों ने भी powerful monarch of his metropolis, Kundalpur, a big प्रस्तुत किये हैं व लेख भी लिखे हैं जिनसे भगवान् महावीर की popular city. जन्मभूमि के रूप में नालन्दा कुण्डलपुर ही मान्य है। इससे हमें विश्वास होता है कि सिद्धार्थ अपने समय के इस प्रकरण में भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एक शक्तिशाली सम्राट (चेटक से कम नहीं) थे और उनकी श्यामाप्रसाद को उद्धृत करना उपयोगी होगा। द्रष्टव्य हैं उनके राजधानी कुंडलपुर एक बड़ा प्रसिद्ध नगर था (गाँव नहीं)। द्वारा लिखित ग्रन्थ "महावीर का जन्म स्थान" के अंश, Page-17-"Both the Digamberas and shvetamberas पृ. 13 - "वैशाली से महावीर के संबंधों को नकारा नहीं assert that Kundalpur was the place where he was born. जा सकता। यह सत्य है कि उनकी माता त्रिशला वैशाली के राजा अर्थात् दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों मानते हैं कि कुण्डलपुर चेटक की बहिन थीं(दि. मत में पुत्री)। अतः वैशाली में उनका वह स्थान है जहाँ महावीर भगवान् का जन्म हुआ था। ननिहाल तथा मामाघर प्रमाणित है। किन्तु, वहीं उनका जन्मस्थान Page-14-(Chapter III)-"Siddhartha the father of भी है-यह अस्वीकार्य ही नहीं, निर्मूल भी है।" Mahavir... was a Kshatriya ruler of a place called पृ. 55- (आगमोल्लिखित) इन विवरणों से विदेह क्षेत्र का Kundalpur situated in that part of Northern India which was called Pavan in very ancient times and Videha or अर्थ केवल वैशाली और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों से नहीं लिया Magadha in later times." जाना चाहिए, बल्कि यह वह विदेह है जहाँ तपश्चर्या के फलस्वरूप यहाँ लेखक स्पष्ट करते हैं कि कुंडलपुर उत्तरी भातर के लोग देहातीत हो जाते हैं, तथा जो प्रदेश पर्वतों, वनों से घिरा हो उस भाग में स्थित था जिसे पावन (पवन) कहते थे बाद में जिसे और जहाँ कुंडपुर नामक महानगर (ग्राम या उपनगर नहीं) | विदेह या मगध कहा गया। अत: 'विदेहः कुंडपरे' शास्त्र वाक्य विराजमान हो।" से नालन्दा निकटवर्ती कुण्डलपुर की स्थिति में विरोध नहीं है। (ग्रन्थ प्रकाशित द्वितीय संस्करण 1997) प्रकाशक- | जन्म भूमि के रूप में वही मान्य है। इत्यलम् ! विचारणीय जो भाई-बहन वर्तमान में मुनि-आर्यिका बनने में असमर्थ । आश्रम, इसरी बाजार पूर्वी भारत में गौरवपूर्ण अद्भुत स्थान है। हैं, जिनकी पारिवारिक जिम्मेदारी पूर्ण हो चुकी है तथा जिन्हें | घर-परिवार में रहते हुए परिणामों का निर्मल रहना दुष्कर है। बहुमूल्य पर्याय का अवशिष्ट जीवन व्यतीत करने के लिए अर्थ | | अतः आश्रम में आजीवन रहने के उद्देश्य से आगामी पुरुषार्थ की आवश्यकता नहीं है 1-12-2002 से 8-12-2002 तक "चतुर्थ आत्म-साधना उनके लिए धर्म-ध्यान-पूर्वक जीवन व्यतीत करने के | शिक्षण शिविर" का आयोजन किया गया है। लिए सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर जी के पाद मूल में अवस्थित उदासीन । अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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