Book Title: Jinabhashita 2002 10 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 24
________________ 'प्राकृत विद्या' : अनपेक्षित विरोधाभास दि. जैनागम विरोधी प्रयास शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी श्री कुन्दकुन्द भारती (प्राकृत भवन), नई दिल्ली के प्रबन्ध | उल्लेख नहीं हैं, वह तो भगवान् महावीर के नाना चेटक की राजधानी सम्पादन एवं प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन तथा डॉ. सुदीप जैन के | थी। श्वेताम्बर अथवा जैनेतर साहित्य के द्वारा सिद्ध करना दिगम्बर सम्पादन के अन्तर्गत प्रकाशित "प्राकृत-विद्या" का जनवरी-जून | जैन समाज के लिए घातक ही होगा। 2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक देखा। वर्तमान में विश्ववन्द्य | (2) (अ) प्राकृत विद्या के प्रस्तुत विशेषांक के कवर पृष्ठ भ. महावीर की जन्मभूमि सम्बन्धी विवाद को दृष्टिगत करते हुए के पिछले भाग पर जो मानचित्र दिया है, वह उनके अनुसार यह विदित होता है कि यह शोध-पत्रिका अनेकों विरोधाभासों से वज्जि-विदेह जनपद का है, उसके साथ उसमें नालन्दा तो है भरी है। यह ज्ञातव्य है कि दिगम्बर जैन शास्त्रों के अनुसार तथा किन्तु पुराकाल से महावीर जन्म कल्याणक रूप में हजारों वर्षों से परम्परा से वन्दनीय होने की दृष्टि से सर्वमान्य रूप से प्रत्यक्षसिद्ध जन-जन से वन्दनीय कुण्डलपुर को नहीं दर्शाया गया है। यह धर्म कुण्डलपुर जन्म तीर्थ (नालन्दा-निकटवर्ती) ही अद्यावधि प्रसिद्ध | एवं समाज के प्रति छलावा ही है। है। वैशाली की यत्किंचित् मान्यता श्वेताम्बरों में है तथा श्वेताम्बर | (ब) प्राकृत विद्या परिवार नालन्दा -कुण्डलपुर को विदेह एवं बौद्ध आदि जैनेतर ग्रन्थों में इसका उल्लेख पाया जाता है जो | जनपद के अन्तर्गत स्थित नहीं मानता, किन्तु वह जनपद की प्रमाणबाधित एवं दिगम्बर आम्नाय के विरुद्ध है। दिगम्बर जैन | अपेक्षा पर्याप्त विशाल वृहद् विदेह राज्य के अवस्थान एवं उसके शास्त्रों में भ. महावीर की जन्मभूमि के रूप में वैशाली का उल्लेख | अन्तर्गत कुण्डलपुर की सिद्धि का बाधक प्रमाण प्रस्तुत कर सकने नहीं है, वह तो उनके नाना महाराजा चेटक की राजधानी थी। इस में असमर्थ है। मानचित्र में से हटा देने से कुण्डलपुर की सिद्धि तो सम्बन्ध में अनेकों विद्वानों द्वारा स्पष्टीकरण हेतु साहित्य प्रकाशित अबाधित ही है। जब वह वज्जि-विदेह को जनपद घोषित करता हो चुका है जिससे समाज में फैलाये जा रहे भ्रम का निवारण हो है तो विशाल विदेह का अस्तित्व तो स्वतः ही सिद्ध हो जाता है। रहा है। उसके अन्तर्गत नालन्दा-निकटस्थ कुण्डलपुर का अस्तित्व सिद्ध यह भी ज्ञातव्य है कि मुजफ्फरपुर के सन्निकट जो वैशाली | है। पुनश्च राज्यों के नाम व क्षेत्र बदलते रहते हैं। जैसे -झारखण्ड की कल्पना की गयी है, वह मात्र 60 वर्षों की देन है। कतिपय : बिहार। देशी-विदेशी शोधकर्ताओं ने दिगम्बर शास्त्रों को अनदेखा कर (स) पूर्व में सन् 1975 में भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र अन्य अपुष्ट, साधारण प्रमाणाभासों के द्वारा अनपेक्षित प्रभावना के कमेटी (हीराबाग-बम्बई) से प्रकाशित “भारत के दिगम्बर जैन चक्कर में इस आगम विरुद्ध मान्यता को स्वीकार कर नवीन विवाद तीर्थ" ग्रन्थ में अपेक्षित मानचित्र से स्पष्ट रूप से नालन्दा के पास को जन्म दे दिया है। इससे दिगम्बर जैन धर्म के शास्त्रों की कुण्डलपुर प्रदर्शित किया गया है, पाठक मानचित्रों का अवलोकन प्रामाणिकता पर प्रश्नचिह्न लगना संभव है, जिसके उत्तरदायी कर सकते हैं। स्वयं दिगम्बर धर्मानुयायी ही हैं। (द) जनता को भूगोल एवं इतिहास की जटिलताओं में "प्राकृत विद्या" भी दिगम्बर जैन धर्म की मान्यताओं के डालकर कोई सिद्धि नहीं होगी, वह भ्रमित नहीं होगी। वह तो विरुद्ध वैशाली को जन्मभूमि सिद्ध करने के प्रयास में संलग्न है। | भगवान महावीर का जन्म ठिकाना, परम्परा व दिगम्बर जैन आगम उसमें भरे विरोधाभासों से प्रकट है कि वैशाली को भगवान् महावीर से मानकर अपने विश्वास को पूर्ववत् कायम रखेगी। उसे विदेहस्थ की जन्मभूमि सिद्ध नहीं किया जा सकता। निम्न बिन्दुओं द्वारा | ही वह मानती है। सभी साधुगण तथा श्रावक उसी की वन्दना पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा, इससे वे स्वयं निर्णय | करके कृतार्थ होते हैं। कर सकेंगे। (3) पृ. 13-"प्राचीनकाल में वैशाली और कुण्डपुर दो __(1) यद्यपि वैशाली के अन्तर्गत कुण्डग्राम या क्षत्रिय | भिन्न-भिन्न नहीं माने जाते थे।" प्राकृत विद्या का उल्लेख कितना कुण्डग्राम का भी उल्लेख है तथापि उसमें पृष्ठ 6, 7, 8, 11, 14, भ्रान्तिकारक है। क्या भगवान् महावीर और उनके नाना महाराज 15,16, 68, 69 तथा अन्यों पर बहुलता से जन्म स्थान के रूप में चेटक का नगर एक हो यह संभव है? जब वैशाली और कुण्डपुर केवल वैशाली को लिखा गया है। इससे प्रकट होता है कि भविष्य | एक ही नगर थे तो दिगम्बर जैन शास्त्रों में कहीं भी वैशाली का में कुण्डपुर, कुण्डग्राम या कुण्डलपुर को भी हटाकर मात्र वैशाली | उल्लेख जन्म स्थान के रूप में क्यों नहीं? को ही जन्म स्थान के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। दिगम्बर | (4) प्राकृत विद्या के जन्मभूमि प्रकरण-परक समस्त जैन शास्त्रों में तो कहीं भी वैशाली का जन्म स्थान के रूप में | आलेखों का आधार जैनेतर अथवा श्वेताम्बर ग्रन्थ हैं। यह दिगम्बरों 22 अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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